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मोदी-शाह से भी इस नौजवान पत्रकार को डर नहीं लगता, ये तीन पोलखोल वीडियो देखकर दंग रह जाएँगे!

श्याम मीरा सिंह-

न्याय की लड़ाई लंबी है। Hashimpura नरसंहार जिसमें 41 निर्दोष मुस्लिमों की हत्या की गई। उसमें ज़िम्मेदार सिपाहियों को सजा मिलने में 41 साल लग गए। सिख दंगों के दोषी कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को सजा मिलने में 34 साल लगे। एक दिन अमित शाह और मोदी के भी केस खुलेंगे। एक ना एक दिन व्यवस्था के पीड़ितों, कमज़ोरों को न्याय मिलेगा।


मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए, गुजरात में तुलसीराम प्रजापति, सोहराबुद्दीन और कौसर बी की हत्याएँ। इस देश की न्यायव्यवस्था, पुलिस व्यवस्था और इस देश के पूरे नैतिक बल पर बड़ा सा शर्मनाक धब्बा है। इतने सबूत होने के बावजूद इस देश की न्यायपालिका आरोपियों को सजा नहीं दे पाई। ऊपर से इस मामले के आरोपी इस देश के सबसे शक्तिशाली आदमी बन गए। पूरे केस को पढ़ते हुए इस देश की न्यायपालिका में न्यूनतम विश्वास बचा है। मैं कुछ कर तो नहीं सकता। लेकिन इस सच को दोबारा से जल्द आप सबके सामने बयान ज़रूर करूँगा। लोग कहते हैं सबको सब पता है। मुझे ये सब छोड़ नए मामलों पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। सबको सब पता नहीं है। आम जनता को यकीनन नहीं पता है कि उनपर कौन राज कर रहा। नए मामले तो सबको पता हैं, नए मामलों में तो लाल क़िले से महिला सम्मान सिखाया जा रहा है। असली सच तो पुराने मामलों में है। जहां कौसर बी नाम की एक निर्दोष महिला को रेप करके पुलिस वालों द्वारा ही जला दिया गया। सत्ता और पत्रकारिता की पूरी लड़ाई इसकी ही है कि याद कैसे रखें।

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सोहराबुद्दीन शेख़ को गुजरात में ये बताकर मार दिया गया कि ये लश्कर ए तैयबा का आतंकी था जो मोदी को मारने आया है। इसके बारे में CBI ने चार्जशीट में खुलासा किया था कि ये अमित शाह का ही आदमी था जिसका उपयोग वो सालों से गुजरात के व्यापारियों-उद्योगपतियों से पैसे ऐंठने के लिए करते थे। सोहराबुद्दीन की हत्या को ऐसे प्रदर्शित किया गया कि ये मोदी को इसलिए मारने आया है क्योंकि वो हिंदुओं की रक्षा करता है। जबकि CBI की चार्जशीट कहती है कि हिंदू व्यापारियों, मार्बल व्यापारियों से लाखों रुपए चौथ ऐंठने के लिए इसका उपयोग अमित शाह और DG बंजारा द्वारा किया जा रहा था। अकेला सोहराबुद्दीन नहीं था जिसे इस प्रकार बताकर मार दिया गया कि “मोदी को मारने आया था”। साल 2002 से लेकर 2007 के बीच गुजरात में ऐसे 22 लोगों की हत्या की गई जिन्हें कहा गया कि ये इस्लामी आतंकी हैं, ये मोदी को मारने आए थे। ये खुद गुजरात सरकार के आँकड़े हैं। “मोदी की जान को ख़तरा है” वाला ये कॉन्सेप्ट बहुत पुराना है और राजनीतिक रूप से ग़ज़ब का फ़ायदा देने वाला भी। इससे मोदी की “हिंदू हृदय सम्राट” वाली इमेज बनती है कि मोदी को हिंदुओं के हित में काम करने की वजह से टार्गेट किया जा रहा है और दूसरी तरफ़ मुस्लिमों के लिए नफ़रत भी फैलती है कि मुस्लिम इतने बुरे और आतंकी होते हैं। असल में मुस्लिमों का इससे कोई सम्बंध नहीं होता। व्यापारियों-उद्योगपतियों से चौथ ऐंठने के काम में नेता, पुलिस और गैंगेस्टर्स तीनों का गठबंधन होता है जिसमें धर्म का कोई रोल नहीं है। “मोदी की जान को ख़तरा है” कहकर मारे गए अधिकतर एंकाउंटर, जाँच में फ़र्ज़ी निकले। ये पूरा एक खेल है। इमेज बिल्डिंग का। भोली भाली जनता को ये खेल पता नहीं चल पाते।


जज लोया पर बनाई सीरीज़ के पहले दो वीडियोज को 5.5 लाख से अधिक लोगों ने हमारे छोटे से चैनल पर अब तक देखा जा चुका है। रील्स के जमाने में 20-20 मिनट की बोझिल वीडियोज देख जाने में मेरी नहीं बल्कि दर्शकों की प्रशंसा है। ये एकदम Non-trending topic था जिसपर छोटे से सर्किल में ही सही लेकिन दोबारा बात हुई और पहले से कुछ अधिक तथ्यों के साथ हुई। आज रात 8 बजे इस सीरीज़ की तीसरी वीडियो आ रही है। जो सबसे महत्वपूर्ण है। इस वीडियो में आप जान पाएँगे कि “जज लोया के साथ उस आख़िरी रात में क्या हुआ?”। अगर आपने पहली दो वीडियो देखी हैं। तो आपकी बुरी भली सुनने और आगे के टॉपिक सुझाने के लिए मेरा कमेंट बॉक्स और इन्बाक्स दोनों खुले हुए हैं। आदमी पैसा कभी भी कमा सकता है लेकिन आप अगर अपना समय निकालकर दो मिनट भी मुझे देते हैं तो ये मेरे लिए बड़ी बात है। इसमें ही मेरी संतुष्टि और तरक़्क़ी है। प्यार और आशीर्वाद बना रहे। आशीर्वाद इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि अभी अपने चैनल के दर्शकों की एज देख रहा था। YouTube Creators में ऐसा विकल्प होता है कि आप अपने Viewers की उम्र और क्षेत्र भी देख सकते हैं। इस फ़ीचर के बारे में जानने के बाद मेरे लिए अचरज की बात रही कि 74 प्रतिशत से अधिक लोग 34 से अधिक उम्र के लोग हैं। ऐसा आमतौर पर नहीं होता। अधिकतर चैनलों के Viewers 25-34 की उम्र के नौजवान होते हैं। हमारे चैनल को सबसे अधिक 55 से 64 की उम्र के लोगों ने देखा। ये कुल संख्या का 21.5% थे वहीं 65 साल से अधिक उम्र के लोग दूसरे नम्बर हैं जो कुल संख्या का 18.8 प्रतिशत था। ये वो उम्र है जिसे अपना Viewer बनाना सबसे अधिक चैलेंजिंग है। हर एज के लोगों के द्वारा Videos देखी गईं। बराबर की संख्या में देखी गईं। ये बेहद अलग बात है। ऐसा पहले मैंने अपने चैनल पर भी नहीं देखा। अधिकतर देखने वाले 25 से 34 उम्र के लोग ही होते हैं। बाक़ी दस बीस प्रतिशत भर होते हैं। इसके अलावा हिंदी भाषी होते हुए भी 86% भारतीयों के अलावा हमारे Viewers दूसरे देशों में रहने वाले रहे (NRI रहे होंगे) जिनमें अधिकतर अमेरिका, सऊदी अरब और कनाडा में रहने वाले थे।खैर, मैं बस अपनी ख़ुशी शेयर कर रहा हूँ, बाक़ी इन आँकड़ों का शायद ही कोई आपकी ज़िंदगी में महत्व हो। ये फ़ीचर देखा तो नया कुछ जानने को मिला। आज रात तीसरी वीडियो आ रही है। आपका इंतज़ार रहेगा।

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अमित शाह का केस सुन रहे एक जज-बृजगोपाल लोया की बीच सुनवाई में रहस्यमयी तारीके से मौत हो गई। उनकी संदिग्ध मौत पर कई सवाल उठे। इसके पीछे रहस्यों को इन छोटी छोटी वीडियो में देखा जा सकता है।

नीचे के लिंक्स पर डबल क्लिक करें…

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पार्ट-1: जज लोया को किसने मारा? https://youtu.be/pRQN30ySx5A

पार्ट-2: जज लोया को दिया गया ड्राफ़्ट जजमेंट: साइन करो या मौत? https://youtu.be/Nu0izH7C-3E

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पार्ट-3: जज लोया के साथ आख़िरी रात में क्या हुआ? https://youtu.be/iqaSA3r9PZQ

(Brijgopal Loya, a judge hearing Amit Shah’s case, died mysteriously in the middle of the hearing. His suspicious death raised many questions. The secrets behind this can be watched in these videos.)

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आजतक समेत कई मीडिया संस्थानों में कार्यरत रहे बेबाक़ पत्रकार श्याम मीरा सिंह की एफबी वॉल से.

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