अमिताभ श्रीवास्तव-
यूसुफ किरमानी की पोस्ट से वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडेय जी के निधन की दुखद खबर मिली है। रामेश्वर जी का स्मरण करते हुए अस्सी के दशक के लखनऊ की पत्रकारिता का दौर याद आ रहा है जब हम लोग यूनिवसिर्टी में पढ़ाई के साथ शहर की सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हो रहे थे और रामेश्वर जी समेत तमाम वरिष्ठों से मिलने के संयोग बने और उन्होंने पढ़ने के साथ-साथ लिखने के लिए प्रेरित किया,हौसला बढ़ाया, मौके दिए, मदद की।

पहली बार दिल्ली आया तो ठिकाना लक्ष्मीनगर में रामेश्वर जी का घर ही बना। वहां की ढेर सारी यादें हैं। दिन में खबरों और अनुवाद के काम के लिए मशक्कत, देर रात तक तमाम विषयों पर चर्चाओं का दौर और रात के खाने में तवे वाली रोटी और अरहर की दाल के लिए शकरपुर के भजगोविंदम ढाबे पर जाना। रिजर्वेशन के लिए कड़कड़डुमा आरक्षण केंद्र का पता रामेश्वर जी ने ही बताया और यह भी समझाया कि यहां बसें बहुत तेज़ रफ्तार से चलती हैं, चढ़ते-उतरते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए।फिर जब टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकारिता संस्थान में दाखिल हो गये तब भी उनके अड्डे पर गाहे-बगाहे बैठकी का सिलसिला जारी रहा।
हम जैसे नये लोगों के लिए रामेश्वर जी का प्रिय संबोधन था – प्यारे। खुद भी बहुत प्यारे इनसान थे। उस दौर के तमाम वरिष्ठों की तरह बहुत दोस्ताना और मददगार । खाने और पीने दोनों के शौकीन। बहुत प्यारी मुस्कुराहट थी उनकी, बहुत खुल कर हंसते थे। अपने ऊपर भी हंसने का जिगर रखते थे। जिन दिनों वह लखनऊ में राजाजीपुरम में रहते थे तो एक बार उनके घर गये तो देखा बर्तन मांज रहे हैं। पूछने पर हंसते हुए अलीबाबा और मारियो पूजो को मिलाकर गुनाह छुपाने वाला किस्सा सुनाकर बोले-प्यारे , पत्नी के आने से पहले गुनाहों के निशान मिटा रहा हूं। मैं पूरा माजरा समझ गया कि भाभी जी की गैर मौजूदगी में वहां क्या क्या हुआ होगा। अपनी बात कहकर रामेश्वर जी और जोर से हंसे।
रामेश्वर पांडेय, प्रमोद झा और उपेंद्र मिश्र गहरे मित्र थे। तीनों पूर्वी उत्तर प्रदेश से थे और अस्सी के दशक में लखनऊ पत्रकारिता में सक्रिय थे और तीनों का ही मेरा और मेरी पूरी मित्र मंडली से बहुत आत्मीयता वाला रिश्ता था- वरिष्ठों के साथ-साथ बड़े भाइयों जैसा। उपेंद्र जी और प्रमोद जी जा चुके हैं। आज रामेश्वर जी के निधन से उस तिकड़ी की आखिरी कड़ी भी टूट गई।
अफसोस कि अब पत्रकारिता में ऐसे फक्कड़ मिज़ाज लोग खत्म होते जा रहे हैं। एक पूरी पीढ़ी जिसने अपने पीछे के लोगों को आगे बढ़ने में मदद की, अब खत्म होने को है।
One comment on “रामेश्वर जी के निधन से उस तिकड़ी की आखिरी कड़ी भी टूट गई!”
वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर पांडेय के निधन से पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया। आज के इस दौर में उन जैसे कलम के धनी व्यवहार कुशल, मार्गदर्शक व आदर्श पत्रकार का होना जरूरी था। वे हम जैसे कई पत्रकारों के लिए गुरु व प्रेरणा के स्त्रोत थे। उनसे हम लोगों ने बहुत कुछ सीखा है। पंजाब में उनके संपादकत्व में ‘अमर उजाला’ की शुरुआत उन्होंने बहुत ही सलीके से किया था। वे एक उच्च कोटि के प्रयोगधर्मी पत्रकार थे। उनका निधन पत्रकारिता जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। ईश्वर उन्हें श्री चरणों में स्थान दें व उनके परिवार को दुःख सहने की शक्ति दें।