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अर्णब पत्रकार नहीं बल्कि एक पार्टी का पेड प्रवक्ता है, इसलिए परेशान न होइए, ये पत्रकारिता पर कतई कोई हमला नहीं है!

-ममता मल्हार-

अगर अर्णव गोस्वामी के इस कांड को जानने के बाद भी आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई दे रहे हैं तो फिर आपकी पत्रकारिता का भगवान ही मालिक है। आपके पास पैसा होगा, चैनल होगा, आप एक पार्टी के पेड प्रवक्ता बन जाएंगे। चैनल में आने वाले वक्ताओं को हड़काएँगे, डांट डपट करेंगे। मुझे ड्रग्स चाहिये चिल्लाएंगे और भी बहुत कुछ ब्ला ब्ला टाईप।

लोग आपको सब कुछ मानेंगे पर पत्रकार नहीं मानेंगे। मानेंगे भी तो मैं लिखकर दे सकती हूं कि ऐसे लोगों को अभी अपनी पत्रकारिता में थोड़ी व्यवहारिक रिसर्च और तथ्यों को परखने पहचानने की, सही गलत को समझने, पत्रकारिय और गैर पत्रकारीय कर्मकांडों को पहचानने की समझ बढ़ाने की बहुत जरूरत है।

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आप हो हल्ले वाले एक चैनल के मालिक पत्रकार हैं इसलिए आपको बदतमीजी का हक अलिखित, अघोषित रूप में मिला हुआ है। पर जब आपको पुलिस घसीटकर ले जाती है तो आप चाहते हैं कि आपको वीआईपीज की तरह गिरफ्तार किया जाए। ऐसी घसीट टाइप गिरफ्तारियां तो भारत में रोज होती हैं।

कुछ प्रदेशों में तो पुलिस महिला और पुरूष में फर्क ही नहीं कर रही। बालों से घसीटना, मारपीट इस हद तक की रूह कांप जाती है। आप वीडियो देखकर उफ्फ कहकर काम में लग जाते हैं। अर्णव पत्रकारिता के लिये गिरफ्तार होते तो थोड़ी-बहुत संवेदना होती पर इस तरह के कांड में नहीं।

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