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हे सहला राशिद, संस्थानों की लड़ाई व्यक्तियों से नहीं लड़ी जाती!

Atul Chaurasia : सहला राशिद जिस तरह से उंगलियां नचा-नचा कर पत्रकार को लताड़ रही हैं, वह माथे पर चढ़ चुका सेलीब्रेटी नशा भी हो सकता है. संस्थानों की लड़ाई व्यक्तियों से नहीं लड़ी जाती है, यह बात शायद उन्हें समझ नहीं आ रही है. रिपब्लिक की लड़ाई को पत्रकार के साथ निपटाना शायद उन्हें सस्ता और आसान जरिया लगा हो. पर मुगालते से जितना जल्दी बाहर निकल जाएं उतना बेहतर.

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Atul Chaurasia : सहला राशिद जिस तरह से उंगलियां नचा-नचा कर पत्रकार को लताड़ रही हैं, वह माथे पर चढ़ चुका सेलीब्रेटी नशा भी हो सकता है. संस्थानों की लड़ाई व्यक्तियों से नहीं लड़ी जाती है, यह बात शायद उन्हें समझ नहीं आ रही है. रिपब्लिक की लड़ाई को पत्रकार के साथ निपटाना शायद उन्हें सस्ता और आसान जरिया लगा हो. पर मुगालते से जितना जल्दी बाहर निकल जाएं उतना बेहतर.

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उन्हें यह भी समझ लेना चाहिए कि मीडिया के जिस हिस्से को वह अपने समर्थन में समझ रही है वह जेएनयू रूपी एक संस्थान का समर्थक है किसी सहला या कन्हैया का नहीं. जिस दिन रण में उतरेंगी उस दिन समझ आ जाएगा…

पत्रकार अतुल चौरसिया की एफबी वॉल से.

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