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ज़ी न्यूज v/s ज़ीनत की लड़ाई अंदरूनी राजनीति ही सही, लेकिन FIR दर्ज करने में क्या कष्ट है भाई?

बहुत से लोग ज़ीनत की लड़ाई को ज़ी ग्रुप की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा बता रहे हैं, लेकिन एफआईआर दर्ज करने में क्या कष्ट है भाई!

यशवंत सिंह-

ज़ी न्यूज़ के गुंडों से एक लड़की लड़ रही है। पुलिस एफ़आईआर नहीं लिख रही है। उसने आर्थिक मदद की अपील की है। मैंने भड़ास की तरफ़ से फ़ौरन ढाई हज़ार रुपये भेजा। आप लोग भी मदद करें। ज़ीनत का हौसला टूटना नहीं चाहिए।

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इधर नोएडा में न्यूज़ एंकर चीख चीख कर कह रही है कि उसका शोषण उत्पीड़न हुआ है लेकिन एफआईआर दर्ज नहीं की जा रही है। क्या यही क़ानून का राज है? क्या प्रभावशाली लोगों के नाम पर क़ानून अपनी दुम दबा कर दुबक जाता है?

बहादुर लोग दुनिया में बहुत कम होते जा रहे हैं। ज़्यादातर लोग सत्ता और सुरक्षा घेरे में जीवन यापन कर रहे हैं या करने को लालायित हैं। मुझे विद्रोही पसंद हैं। ऐसे लोग पसंद हैं जिन्हें सच को ताक़त के साथ बिना डरे ज़ोर से सच सच कहना आता है।

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एक्स पर ज़ीनत को पढ़ आइये। भड़ास पर भी लगातार पब्लिश कर रहे हम लोग।

बहुत से लोग ज़ीनत की लड़ाई को ज़ी ग्रुप की अंदरूनी राजनीति का हिस्सा बता रहे हैं। मेरा कहना है कि जो भी हो, एफआईआर तो दर्ज होना चाहिए न! भास्कर के पत्रकार पर लखनऊ में फ़टाक से मुक़दमा दर्ज हो गया क्योंकि उसका ‘जुर्म’ पुलिस भर्ती में रिश्वतखोरी की खबर प्रकाशित करना था।

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भड़ास एडिटर यशवंत सिंह की फेसबुक वॉल से..

1 Comment

1 Comment

  1. Mithlesh kumar

    February 13, 2024 at 11:13 pm

    अंदरूनी राजनीति पर भी तो लिख सकते हैं चुप्पी क्यों साधे हुए हैं

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