नई दिल्ली। सुप्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह के साक्षात्कारों की नयी पुस्तक बातें हैं बातों का क्या का लोकार्पण दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में हुआ। राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में आयोजित समारोह में प्रसिद्ध इतिहासकार कृष्ण मोहन श्रीमाली, वरिष्ठ आलोचक वीरेंद्र यादव और माधव हाड़ा ने किताब का लोकार्पण किया।
वीरेंद्र यादव ने इस अवसर पर कहा कि काशीनाथ सिंह हमारे समय और समाज की नब्ज़ पकड़ने वाले लेखक हैं जिनकी कृति काशी का अस्सी हिंदी की विख्यात कृतियों में अग्रणी है। उन्होंने कहा कि काशीनाथ सिंह के साक्षात्कारों से उनके लेखक व्यक्तित्व को अधिक गहराई से देखने-समझने का अवसर मिलेगा।
यादव ने संकलन के सुन्दर प्रस्तुतीकरण के लिए राजकमल प्रकाशन को बधाई देते हुए कहा कि बनारस के जीवन को जिस समग्रता में काशीनाथ सिंह ने लिखा है वैसा कार्य हिंदी में दुर्लभ है। प्रो माधव हाड़ा ने कहा कि काशीनाथ सिंह का व्यक्तित्व आत्मीयता से भरा हुआ है और उनका लेखन भूमंडलीकरण के बाद बन रहे भारतीय समाज की प्रमाणिकता से पड़ताल करता है। हाड़ा ने काशीनाथ सिंह की भाषा की प्रशंसा करते हुए कहा कि काशीनाथ सिंह मूलत: सम्वादी हैं और उनका असम्वादी व्यक्तित्व उनके लेखन को सहज बनाता है।
पुस्तक के संपादक पल्लव ने कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि हिंदी के शीर्ष कथाकार के साक्षात्कारों को उन्हें एक जगह प्रस्तुत करने का अवसर मिला। उन्होंने इस पुस्तक को कथेतर विधाओं के महत्त्व का प्रमाण बताते हुए खा कि इन साक्षात्कारों से हमारे समकालीन समाज और साहित्य को देखने-समझने का भी रास्ता मिलता है।
अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध इतिहासकार कृष्ण मोहन श्रीमाली ने शुभाशंसा व्यक्त करते हुए हिंदी में नवाचारों की सराहना की। संयोजन कर रहे कथाकार मनोज कुमार पांडेय ने बताया कि गपोड़ी से गपशप के बाद काशीनाथ सिंह के साक्षात्कारों की यह दूसरी पुस्तक है।
लोकार्पण में प्रसिद्ध आलोचक प्रो जीवन सिंह, कवि पंकज चतुर्वेदी, आलोचक शम्भु गुप्त, डॉ कनक जैन, डॉ रेनु त्रिपाठी भी उपस्थित थे। अंत में राजकमल प्रकाशन के आमोद माहेश्वरी ने सभी का आभार ज्ञापित किया।
प्रो माधव हाड़ा की पुस्तक ‘वैदहि ओखद जाणे : मीरां और पश्चिमी ज्ञान मीमांसा’ का लोकार्पण
सुप्रसिद्ध आलोचक और मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो माधव हाड़ा की नयी पुस्तक ‘वैदहि ओखद जाणे : मीरां और पश्चिमी ज्ञान मीमांसा’ का लोकार्पण दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में हुआ। राजकमल प्रकाशन के जलसाघर में आयोजित लोकार्पण सत्र में बनास जन के संपादक पल्लव ने लेखक हाड़ा से पुस्तक पर संवाद किया। संवाद में माधव हाड़ा ने कहा कि यूरोपियन शोध में अभी तक मीरां के जीवन और कवि कर्म के बारे सम्यक विवेचन का अभाव है जिसका कारण मीरां की अपनी सांस्कृतिक पारिस्थिकी से अलग पश्चिम के मानदंडों पर मूल्यांकन करना है। इस पुस्तक में पश्चिमी विद्वता के सांस्कृतिक मानकों पर मीरां के मूल्यांकन को समझने-परखने के प्रयासों की पड़ताल की गई है़। प्रो हाड़ा ने यहां जेम्स टॉड, हरमन गोएट्ज, विनांद कैलवर्त और स्ट्रेटन हौली जैसे पश्चिमी विद्वानों के मीराँ पर किए गए अध्ययन का विश्लेषण किया गया है। हाड़ा ने कहा कि भारतीय भक्ति आंदोलन के सहज विकास में मीराँ की भी कविता है जबकि पश्चिमी विद्वानों ने अपनी औपनिवेशिक दृष्टि और पश्चिमी सांस्कृतिक बोध से इसका मूल्यांकन किया है।
पल्लव ने कहा कि मीरां की कविता को देखने समझने का यह नया अध्याय मीरां की भूमि और भाषिक समाज से हुआ है तथापि भूलना नहीं चाहिए कि प्रो हाड़ा की दृष्टि आधुनिक तथा तर्कयुक्त है। उन्होंने पुस्तक के कुछ महत्त्वपूर्ण अंशों का पाठ भी किया।
लोकार्पण में प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो कृष्ण मोहन श्रीमाली, आलोचक प्रो शम्भु गुप्त, आलोचक वीरेंद्र यादव, डॉ कनक जैन, डॉ रेनु त्रिपाठी भी उपस्थित थे। संयोजन कर रहे कथाकार मनोज कुमार पांडेय ने लेखक परिचय दिया। अंत में राजकमल प्रकाशन के आमोद माहेश्वरी ने आभार ज्ञापित किया।