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आउटलुक के मालिकों बिल्डर राहेजा ने सम्पादक कृष्ण प्रसाद को बर्खास्त कर दिया

Om Thanvi : एक और श्रेष्ठ सम्पादक को आज घर का रास्ता दिखा दिया गया। आउटलुक के सम्पादक कृष्ण प्रसाद को पत्रिका के मालिकों (बिल्डर राहेजा) ने बर्खास्त कर दिया। प्रतिष्ठित पत्रिका के पिछले ही अंक में नेहा दीक्षित की सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट “बेटी उठाओ” छपी थी। उसमें असम से 31 आदिवासी लड़कियों को उठाकर पंजाब और गुजरात ले जाने और हिंदू बनाने में संघ परिवार की भूमिका की खोजबीन की गई थी। नेहा की आगे की रिपोर्टें छपतीं, उससे पहले भाजपा प्रवक्ता और असम में वकालत करने वाले बिजोन महाजन ने नेहा और आउटलुक पर मुक़दमा दायर कर दिया।

<p>Om Thanvi : एक और श्रेष्ठ सम्पादक को आज घर का रास्ता दिखा दिया गया। आउटलुक के सम्पादक कृष्ण प्रसाद को पत्रिका के मालिकों (बिल्डर राहेजा) ने बर्खास्त कर दिया। प्रतिष्ठित पत्रिका के पिछले ही अंक में नेहा दीक्षित की सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट "बेटी उठाओ" छपी थी। उसमें असम से 31 आदिवासी लड़कियों को उठाकर पंजाब और गुजरात ले जाने और हिंदू बनाने में संघ परिवार की भूमिका की खोजबीन की गई थी। नेहा की आगे की रिपोर्टें छपतीं, उससे पहले भाजपा प्रवक्ता और असम में वकालत करने वाले बिजोन महाजन ने नेहा और आउटलुक पर मुक़दमा दायर कर दिया।</p>

Om Thanvi : एक और श्रेष्ठ सम्पादक को आज घर का रास्ता दिखा दिया गया। आउटलुक के सम्पादक कृष्ण प्रसाद को पत्रिका के मालिकों (बिल्डर राहेजा) ने बर्खास्त कर दिया। प्रतिष्ठित पत्रिका के पिछले ही अंक में नेहा दीक्षित की सनसनीख़ेज़ रिपोर्ट “बेटी उठाओ” छपी थी। उसमें असम से 31 आदिवासी लड़कियों को उठाकर पंजाब और गुजरात ले जाने और हिंदू बनाने में संघ परिवार की भूमिका की खोजबीन की गई थी। नेहा की आगे की रिपोर्टें छपतीं, उससे पहले भाजपा प्रवक्ता और असम में वकालत करने वाले बिजोन महाजन ने नेहा और आउटलुक पर मुक़दमा दायर कर दिया।

सुनते हैं वाजपेयी राज में सरकार की चोट खा चुके राहेजाओं के हाथ-पैर मुक़दमे के साथ ही फूल गए। अपने पत्रकार के साथ खड़े होने के बजाय उन्होंने सम्पादक को ही हटा दिया। नेहा की खोजबीन में ढेरों साक्ष्य, दस्तावेज़ और तसवीरें मौजूद थीं। कृष्ण प्रसाद गम्भीर और प्रतिबद्ध पत्रकार हैं। विष्णु नागर, शेखर गुप्ता, संजय नारायण (हिंदुस्तान टाइम्स), राजदीप सरदेसाई, शोमा चौधरी, कृष्ण प्रसाद … विदा होते योग्य सम्पादकों के दौर में सिमटती-घुटती आज़ादी का यह सिलसिला लोकतंत्र के लिए निश्चय ही फ़िक़्रमंद होने की घड़ी है।

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वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की एफबी वॉल से.

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