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भाजपा सरकारें छोटे-छोटे लेकिन असली पत्रकारों को अरेस्ट करती हैं, उन्होंने तो बड़े और आत्महत्या कराने वाले आरोपी पत्रकार को पकड़ा है!

-प्रभाकर मिश्रा-

कहब त लागि जाई धक् से ..

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-उन्होंने बहुत बड़े पत्रकार को गिरफ्तार किया है ..

*ये छोटे छोटे को गिरफ्तार करते हैं …

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-उन्होंने आत्महत्या के मामले में आरोपी को गिरफ्तार किया है ..

*ये ख़बर लिखने ( नून रोटी) वाले पत्रकार को गिरफ्तार करते हैं ..

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और आप इतने मासूम हैं कि उनको चौथे स्तंभ पर हमलावर बताते हैं, इनकी कार्रवाई पर बलैयां लेते हैं! हमसे तो न हो पायेगा जी!

दो लोगों ने आत्महत्या की। सुसाइड नोट में आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा।

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  • सरकार अपनी थी, पुलिस अनुकूल थी।
    अनुकूल सरकार से केस बंद करवा लिया गया।
  • प्रतिकूल सरकार सत्ता में आ गयी। प्रतिकूल सरकार के खिलाफ प्रतिकूल पत्रकारिता होती रही।
  • प्रतिकूल सरकार ने बदले की भावना से बंद मामले को दुबारा खोल दिया।
  • इस अनुकूल – प्रतिकूल सरकार और अनुकूल – प्रतिकूल पत्रकारिता के चक्कर में दो लोगों के न्याय को भूल गए जिन्होंने किसी के अन्याय से पीड़ित होकर मौत को गले लगा लिया !

…. काश हम उनके बारे में भी सोचते! उनके लिए न्याय के बारे में! अपनी पसंद और नापसंद को छोड़कर!

एक बात और, केस के तथ्य और पुलिस की जांच पर बड़े सवाल हैं। उस समय के संबंधित पुलिस अधिकारियों से भी पूछताछ होनी चाहिए कि किसके कहने पर केस बंद हुआ था?

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