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सियासत

आरएसएस को चाहिए 2024 के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बदल दे!

संजय कुमार सिंह-

आख़िरकार देश के साथ क्या कर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ!

इसमें कोई दो राय नहीं है कि नरेन्द्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार स्वयं या अपनी योग्यता से नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पसंद होने के कारण बने। भले ही यह संभव है इसमें जीत सकने की उनकी योग्यता ही देखी गई हो। इससे पहले, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल राजधर्म निभाने की अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह के साथ संघ परिवार की जानकारी में था और उन्हें इसके बावजूद प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया। कहने की जरूरत नहीं है कि कम से कम नीतिश कुमार ने इसका विरोध किया था पर उनकी दाल नहीं गली। इस तरह, बहुत साफ है कि बहुत अच्छा रिकार्ड नहीं होने के बावजूद संघ परिवार ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार बनाया।

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चुनाव जीतने या कुर्सी हासिल करने के लिए उन्होंने जो सब किया वह किसी से छिपा नहीं है और उसमें झूठ का योगदान कम नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि संघ परिवार ने ना इसका विरोध किया और ना उन्हें कोई संकेत-निर्देश दिया। अगर संघ या परिवार के स्तर पर अघोषित रूप से कुछ कहा गया हो तो वह सार्वजनिक नहीं है और इसलिए मानना पड़ेगा कि उन्होंने जो भी किया उसे संघ परिवार का समर्थन था। इसमें जीएसटी के लिए यू-टर्न और नोटबंदी शामिल है। नोटबंदी की असलफलता से ज्यादा आपत्तिजनक उसे लागू करने का तरीका था। वैसे तो जीएसटी पर यू-टर्न अपने आप में कम महत्वपूर्ण नहीं है। पर संभव है, संघ परिवार के लिए उसका फायदा-नुकसान समझना मुश्किल हो या उसे फायदे समझा दिये गए हों। इसलिए उसे छोड़ता हूं पर नोटबंदी तो बाकायदा त्रासदी थी। पर संघ परिवार ने ना सरकार की निन्दा की ना जनता से सहानुभूति में कुछ कहा और ना घर में शादी है … वाले घोर आपत्तिजनक बयान पर कुछ कहा। 

इन सब और ऐसी तमाम बातों से एक राजनीतिक पार्टी और तमाम संगठन चलाने वाले संघ परिवार की कमजोरी के साथ-साथ चयन पर भी सवाल उठता है और परिवार ने हर मौके पर चुप्पी साधकर अपना और अपने संगठनों का भविष्य खराब किया। मेरा मानना है कि अब जब नरेन्द्र मोदी की कमजोरियां या अक्षमताएं या अयोग्य अथवा असफल कार्यशैली जगजाहिर है तो संघ को चाहिए कि 2024 के लिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बदल दे। और यह उन्हीं के बनाये मार्गदर्शक मंडल में डालकर आसानी से किया जा सकता है। इससे एक संगठन के रूप में उसके पास योग्य लोगों की उपलब्धता के साथ-साथ उसकी सक्रियता का भी पता चलेगा और संभव है यह रणनीति आगे के लिए फायदेमंद रहे पर भाजपा ऐसा करती हुई नजर नहीं आ रही है जबकि देश में पहली बार गैर कांग्रेसी बहुमत की सरकार का प्रदर्शन आगे गैर कांग्रेसी सरकार के चुनाव के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है।

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मेरा मानना है कि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी के प्रयोग और उसकी असफलता से भारत में गैर कांग्रेसी राजनीति को भारी झटका लगा और भाजपा को पूर्ण बहुमत पाने में 35 साल से ज्यादा लग गए। उसके बाद के पांच साल का शासन निश्चित रूप से अच्छा नहीं था और पुलवामा नहीं हुआ होता तो शायद भाजपा को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलता। पुलवामा के बाद मिल गया तो कार्यकाल इतना बुरा रहा कि मेरे जैसा व्यक्ति मानता है कि एक कार्यकाल और मिल जाए तो भारत में विपक्ष की राजनीति का भारी नुकसान होगा। दूसरी ओर, कांग्रेस के विरोध में नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ चाहे जो कहा और प्रचारित किया गया है कांग्रेस टूटती बिखरती रही जो बची हुई है वह गांधी नेहरू परिवार की ही और उसकी ओर से विदेशी सोनिया गांधी भी जीत चुकी हैं। भले भाजपा ने उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया पर जो विकल्प दिया वह बहुत ही बुरा साबित हुआ। दूसरी ओर, कांग्रेस से अलग हुए तृणमूल कांग्रेस या राष्ट्रवादी कांग्रेस की स्थिति कांग्रेस के मुकाबले बहुत कमजोर है। 

कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार के पास चुनाव लड़ने और अपनी तारीफ के लिए अपना काम नहीं है और 10 साल सरकार में रहने के बाद भी उसे विपक्ष की आलोचना का ही सहारा लेना पड़ रहा है और उसमें भी दम नहीं है। मणिपुर में जो हुआ या किया गया वह गुजरात से बुरा है। गुजरात में भले ज्यादा लोग मरे पर  बदनामी कम हुई, मणिपुर में कम लोग मरे और बदनामी ज्यादा हुई। बाद की स्थिति को संभालने में पूरापरिवार नाकाम रहा है। मणिपुर के साथ दूसरे राज्यों को जोड़ना बहुत ही फूहड़ रहा पर हालत यह है कि मणिपुर पर कार्रवाई करने के लिए कहने वाले मुख्य न्यायाधीश को भी ट्रोल किया जा रहा है। मतलब मणिपुर में शासन नहीं, ढाई महीने से ज्यादा हिंसा जारी रहना, रोकने की कोई कोशिश नहीं, कोई दौरा नहीं, कोई बयान नहीं और बयान की मांग पर भी सन्नाटा। संसद में चर्चा की मांग पर अलग नैरेटिव बनाने की कोशिश और यह सब उसी काठ ही हांडी को फिर से चढ़ाने जैसा लग रहा है। 

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कुल मिलाकर यह साफ हो चुका है कि प्रधानमंत्री या गुजरात के मुख्यमंत्री हिंसा की स्थिति में सुरक्षाकर्मियों को काम करने से रोकने के लिए ही उपयुक्त हैं। ना उनकी टीम सक्षम है और ना सब मिलकर टीम के रूप में काम करते या काम करते दिखते हैं। ऐसे में भाजपा और उसके साथ पूरे संघ परिवार की कांग्रेस के बहुत ही कमजोर विकल्प के रूप में छवि बन रही है और यह भविष्य के लिए नुकसानदेह है। इसका असली नुकसान देश के लोकतंत्र को भी होगा। यह स्पष्ट हो चला है कि भाजपा इस बार भी जीत गई तो अगली बार या तो चुनाव नहीं होंगे या उसका प्रदर्शन और खराब होगा। दोनों स्थितियों में उसका भविष्य और खराब होगा। इसलिए भाजपा के समर्थक और देश में लोकतंत्र के समर्थक भी चाहेंगे कि भाजपा इस बार हार जाए ताकि फिर चुनाव जीतने लायक बन सके वरना भारत गैर कांग्रेसी विकल्प के बिना हो जाएगा और देश की हालत वही हो जाएगी जो मजबूत विपक्ष के बिना कांग्रेस और मिली-जुली सरकारों के समय में रही है। दूसरी ओर, लगता नहीं है कि संघ परिवार को इन बातों की चिन्ता या समझ है।

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1 Comment

1 Comment

  1. सतीश झा

    July 31, 2023 at 8:46 am

    तब तो नरेंद्र मोदी को ही उम्मीदवार रखना चाहिए, आपके हिसाब से तभी भाजपा हारेगी। बकौल आपके प्रधानमंत्री का कार्यकाल बहुत ख़राब है, तो यह तो अच्छी बात है कि विपक्षी को जीतने का मौका मिलेगा। आप क्यों चाहते हैं कि भाजपा उम्मीदवार बदल कर फिर जीत पक्की कर ले? क्या आप नहीं चाहते कि विरोधी दल को मौका मिले? मैं भाजपा और संघ से अनुरोध करूंगा कि मोदी को ही उम्मीदवार रखना चाहिए।

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