पलवल : देश में भूमि भ्रष्टाचार के कारण करोड़ों ग्रामीण परिवार भूमिहीन और आवासहीन है तथा विकासीय परियोजनाओं के कारण करोड़ों आदिवासी भूमि अधिकार से बेदखल हुए। लाखों दलितों के लिए भूमि अधिकार सुनिश्चित नहीं हो सका है। लाखों हेक्टेयर कृषि और वनभूमि गैर-कृषिवनीय कार्यों के लिए उद्योगों को स्थानांतरित हुई है और गरीबों, मजदूरों, आदिवासी व दलितों के लिए भूमि न होने के सरकारी बहाने बनाये जाते हैं। इसके उदाहरण उत्तरप्रदेश में गंगा एक्सप्रेस-वे, यमुना एक्सप्रेस-वे और हरियाणा का गुड़गाँव जैसे इलाके हैं जहाँ पर किसानों की जमीनों को सरकार ने अधिग्रहित कर निजी कम्पनियों को बेचा है। जिन लोगों की निर्भरता खेती और खेती से जुड़ी आजीविका पर है वे सरकार की इन नीतियों का खामियाजा भुगत रहे हैं। पलवल, जहां दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी ने सबसे पहली गिरफ्तारी दी थी, वहां से गांधी को याद करते हुए विभिन्न भूमि आंदोलनों के जनक राजगोपाल पीवी के नेतृत्व में शुरू हुई यह भूमि अधिकार चेतावनी यात्रा इस संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है कि अगर सरकार ने भूमि अध्यादेश को वापस नहीं लिया तो फिर अण्णा हजारे के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जाएगा।
इन विषम परिसिथतियों से छुटकारा पाने के लिए एकता परिषद और साथी संगठनों के द्वारा किये गये जनसत्याग्रह 2012 जनआंदोलन के परिणामस्वरूप 11 अक्टूबर 2012 को आगरा में भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री श्री जयराम रमेष और जनसत्याग्रह के नेतृत्वकर्ता श्री राजगोपाल पी.व्ही. के बीच भूमि सुधार के लिए 10 सूत्रीय समझौता हुआ था जिसके आधार पर भूमि और कृषि सुधार का कार्य प्रारंभ हुआ और राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति तथा आवासीय भूमि का अधिकार कानून का मसौदा तो तैयार किया गया किन्तु उसको संसद से पारित नहीं कराया जा सका। उम्मीद थी कि वर्तमान केन्द्र सरकार आगरा समझौते के अनुरूप कार्य करेगी किन्तु ठीक इसके उलट भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में किसानों के हितों को ताक पर रखते हुए भूमि अधिग्रहण संषोधन अध्यादेष 2014 लाया गया। एकता परिषद और सहयोगी संगठन भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश का विरोध किया है।
भारत सरकार को चेतावनी देने के लिए देश के तमाम संगठनों के द्वारा एकता परिषद के संस्थापक और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के सदस्य गांधीवादी श्री राजगोपाल पी.व्ही. के नेतृत्व में जनसत्याग्रह पदयात्रा 20 फरवरी 2015 को पलवल से प्रारंभ हो गयी है। इस यात्रा को अन्ना हजारे ने हरी झंडी दिखाकर रबाना किया। यह यात्रा 24 फरवरी 2015 की शाम तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर पहुँचेगी और वहाँ पर धरना शुरू होगा। इस पदयात्रा और धरना में पूरे देश के हजारों किसान, आदिवासी, दलित और मजदूर भाग ले ले रहे हैं, जिसका खामियाजा भूमि अधिग्रहण अघ्यादेश 2014 के कारण भुगतना पड़ेगा।
अन्ना हजारे ने कहा कि जल, जंगल और जमीन किसानों की संपत्ति है और बिना उनकी इजाजत के कैसे सौंपी जा रही है। असली आजादी की लड़ाई लड़ने का समय आ गया है। देश के मालिक यहां के जनता हैं। सरकार के नाक को जब बंद करेंगे स्वत: मुंह खुल जाएगा। कानून में है कि सिंचित भूमि नहीं लेनी है तो फिर कैसे उनसे भूमि ली जा रही है। अन्ना ने कहा कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से ‘सिर्फ उद्योगपतियों के अच्छे दिन आए’ हैं। उन्होंने दावा किया कि इन नीतियों का पालन करने से भारत का भविष्य उज्ज्वल नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि यह चेतावनी यात्रा है। भूमि अधिग्रहण अघ्यादेश क्या है, इस गांव के लोगों को बताना होगा। फिर जंतर—मंतर आकर जेल भरो होगा। यह निर्णायक लड़ाई होगी।
इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता और एकता परिषद के संस्थापक पीवी राजगोपाल ने कहा कि अगर भूमि अधिग्रहण अघ्यादेश वापस नहीं लिया गया तो अन्ना हजारे के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया जाएगा। राजगोपाल ने हम चाहते हैं कि सरकार इस किसान विरोधी अध्यादेश को वापस ले। अन्ना जी और हम लोग देश भर में घूमकर इस मुद्दे पर किसानों को एकजुट करने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि वे लोग इस मामले पर सरकार के साथ बातचीत करने को तैयार हैं। अगर सरकार हमें बातचीत के लिए बुलाती है तो हम लोग जरूर जाएंगे।
सभा को संबोधित करते हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटेकर ने कहा कि दिल्ली की सरकार को सही धक्का देने का समय आ गया है। देश के पांच सौ से अधिक सांसदों को विना विश्वास में लिए राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर अनेकों ऐसे करार किए गए, जो जन विरोधी है। उन्होंने कहा कि बड़ें बांधों की आड़ में उसका पानी किसानों को देने की जगह बड़े औधोगिक घरानों को दिया जा रहा है। सरदार सरोवर का 30 लाख लीटर पानी कोका कोला को दिया जा रहा है। उन्होंने देश की ग्राम पंचायतों से अपील की कि वे भूमि अधिग्रहण अघ्यादेश के खिलाफ घिक्कर प्रस्ताव परित करें। वहीं मजदूर किसान शक्ति संगठन की अरूणा राय ने कहा कि पिछले आठ माह से गरीबों के हक हमला हो रहा है। पिछली सरकार ने आगरा में समझौता किया था। इसके आधार पर एक समिति बनी थी,लेकिन इस सरकार ने उस पर कुछ नहीं किया। सवालिया लहजे में उन्होंने कहा कि अघ्यादेश क्यों? छतीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा नक्सलबाद की चपेट में है। जो शांतिपूर्ण और अहिसंक ढंग से अपनी बात करना चाहते हैं। सरकार उनकी बात नहीं सुनती।
जलपुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि मौजूदा सरकार की नीतियों के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर गुजर करने वाले के अस्तिव पर खतरा उत्पन्न हो गया है। सरकार पर दवाव बनाने का एक मात्र रास्ता आंदोलन है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य ने सवालिया लहजे में कहा कि देश मिटेगा तो बचेगा कौन? इस पर गौर करना होगा। इंडस्ट्रियल कॉरिडोर को विकास की सूची में शामिल करना सरकार के नीति और नीयत पर सवाल खड़े करती है।
इस मौके पर विनोवा भावे के सहयोगी रहे बाल विजय ने कहा कि विनोवा भावे ने स्पष्ट किया था कि— सवै भूमि गोपाल की, नहीं किसी की मालिकी।’ वाबजूद इसके यह सब हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर किसानों को उनके हक से वंचित किया जा रहा है। सभा के आरंभ में सुप्रसिद्ध गांधीवादी एस.एन सुब्बा राव ने कहा कि सरकार को जगाने का समय आ गया है। आंदोलन ही एक मात्र रास्ता है। सभा को पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान, एकता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणसिंह परमार, किसान नेता सुनीलम्, राकेश रफीक विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। सभा का संचालन एकता परिषद् के राष्ट्रीय समन्वयक रमेश शर्मा ने किया।
पदयात्रा में बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, असम, मध्यप्रदेश, केरल, तमिलनाडु, मणिपुर के पांच हजार लोग एक वक्त भोजनकर यह नारा लगाते चल रहे हैं कि —’ हमें भूमि अध्यादेश नहीं, भूमि अधिकार चाहिए। एकता परिषद के अनीश तिलंगेरी ने बतया पदयात्रा में शामिल लोगों की मांग है कि भारत सरकार देश के सभी आवासहीन परिवारों को आवासीय भूमि का अधिकार देने के लिए ‘राष्ट्रीय आवासीय भूमि अधिकार गारंटी कानून घोषित कर उसको समय सीमा के अंतर्गत क्रियानिवत करे, देश के सभी भूमिहीन परिवारों को खेती के लिए भूमि अधिकार के आबंटन के लिए ‘राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति कानून घोषित कर क्रियानिवत करे, वन अधिकार मान्यता अधिनियम 2006 तथा पंचायत विस्तार विषेष उपबंध अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विषेष कार्यबल का गठन करें और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए ‘भूमि अधिग्रहण कानून के संषोधन अध्यादेश 2014 को रदद करें।