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उत्तर प्रदेश

‘मनुष्यता के लिए क्यों जरूरी हैं स्मृतिया’ विषय पर मऊ में संगोष्ठी छह सितंबर को

स्मृतियाँ ही सभ्य समाज का निर्माण करती हैं। स्मृति विहीन समाज क्रूर, हिंसक और दुस्साहसी हो जाता है। पूंजी निरंतर हमें हमारी स्मृतियों से काटने का षड्यन्त्र कर रही है। मनुष्य बचा रहे, इसके लिए स्मृतियों का बचे रहना जरूरी है। मनुष्यता के लिए क्यों जरूरी हैं स्मृतियां,  इस विषय पर छह सितम्बर 2017, बुधवार  को अपराह्न दो बजे से एस आर प्लाजा भुजौटी, मऊ में एक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।

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स्मृतियाँ ही सभ्य समाज का निर्माण करती हैं। स्मृति विहीन समाज क्रूर, हिंसक और दुस्साहसी हो जाता है। पूंजी निरंतर हमें हमारी स्मृतियों से काटने का षड्यन्त्र कर रही है। मनुष्य बचा रहे, इसके लिए स्मृतियों का बचे रहना जरूरी है। मनुष्यता के लिए क्यों जरूरी हैं स्मृतियां,  इस विषय पर छह सितम्बर 2017, बुधवार  को अपराह्न दो बजे से एस आर प्लाजा भुजौटी, मऊ में एक संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।

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चर्चा में शामिल होंगे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आई आई टी के प्रोफेसर और विज्ञान एवं साहित्य के अध्येता प्रो आर के मंडल, काहिविवि में अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर एवं साहित्य के विद्वान प्रो संजय कुमार, पत्रकारिता विभाग झांसी विवि के पूर्व विभागाध्यक्ष बंशीधर मिश्र तथा प्रख्यात कथाकार शिवशंकर मिश्र। बीज वक्तव्य प्रस्तुत करेंगी युवा कवयित्री और कथाकार सोनी पांडेय। अध्यक्षता करेंगे अभिनव कदम के सम्पादक और निरंतर अपने सार्थक हस्तक्षेप के लिए चर्चित  लेखक और चिंतक जयप्रकाश धूमकेतु।

इस अवसर पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित और मुम्बई विश्वविद्यालय में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एम फिल कर रहे  प्रखर और प्रतिभासम्पन्न युवा गायक देवेश सिंह (राजा बाबू) को सम्मानित किया जायेगा। उन्हे प्रशस्ति पत्र और ११ हजार रुपये की राशि सम्मान स्वरूप प्रदान की जायेगी। यह आयोजन रामगोविंद राय, रामायण राय स्मृति संस्थान, बड़ागांव, मऊ के तत्वावधान में होने जा रहा है। संस्थान के संयोजक राजेंद्र राय के अनुसार पूरा समारोह दो चरणों में आयोजित किया जायेगा। पहले चरण में सम्मान कार्यक्रम और विचार गोष्ठी होगी और दूसरे चरण में देवेश अपना संगीत प्रस्तुत करेंगे। 

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जिनकी स्मृति में यह आयोजन हो रहा है, वे रामगोविंद राय और रामायण राय साधारण आदमी थे। सच बसत यह है कि  हर   साधारण में कुछ असाधारण  जरूर होता  है।  रामगोविंद राय और रामायण राय के व्यक्तित्व में जो कुछ असाधारण रहा होगा, वही हमारी धरोहर है, वही हमारी स्मृति में ठहरने योग्य है, वही और सिर्फ वही याद किया जाना चाहिए। ये दोनों ही बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में मऊ से लगभग दस किलोमीटर दूर बड़ा गाँव में जन्मे। उनके स्मरण में उस आदि मनुज का भी स्मरण है, जिसकी हम सब संतानें हैं और इस तरह अपने मनुष्य होने का भी स्मरण है।

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