सबसे तेजी के साथ पनप चुके टीवी चैनलों के धंधे के दौर में एक और नए टीवी चैनल को लांच करने की योजना बनी। कुछ माफिया किस्म के लोगों ने सोचा, चैनल की दुनिया में भी हाथ आजमाया जाए। इससे उनकी छवि भी बनी रहेगी और अंदर अंदर गोरखधंधे भी चलते रहेंगे।
उन्हें कुछ एंकरों की जरूरत थी । अख़बारों में विज्ञापन भी दे दिया गया।
जैसे ही यह विज्ञापन दिखा, पत्रकारिता की पढ़ाई करके निकले युवक गदगद हो गए। डिग्री पाने के बाद भी बेरोजगार घूम रहे थे बेचारे। कुछ युवकों ने आवेदन कर दिया। नया चैनल था । अनेक एंकरों की जरूरत थी । संख्या लिखी नहीं थी विज्ञापन में । इतना ही लिखा था, “फौरन ही अनेक एंकरों की जरूरत है। ऐसे प्रतिभाशाली एंकर जो हमारे चैनल को जीआरपी बढ़ा सकें, फौरन आवेदन करें।”
डिग्रीधारी युवक खुश होकर उन दिनों के सपने देखने लगे, जब वह एंकर के रूप में लाखों लोगों के सामने आएंगे और देखते- ही- देखते स्टार बन जाएंगे । लाखों में खेलेंगे।
इंटरव्यू के दिन सारे युवक अपनी- अपनी फाइलों के साथ पहुंच गए। वे हाईटेक समय में थे इसलिए कुछ लोगों ने अपने मोबाइल में अपनी एंकरिंग की बानगी भी सूट करके रखी थी। क्या पता दिखानी पड़ जाए।
सबसे पहले राहुल का नंबर आया । उसने अंदर घुसकर बड़े अदब के साथ सबको नमस्ते करने के बाद अपनी जगह ले ली । उसके सामने चैनल का मालिक बैठा हुआ था। उसने राहुल को ऊपर से नीचे तक घूर कर देखा और बगल वाले व्यक्ति से कहा, ” नहीं, यह शायद नहीं चल सकेगा। फिर भी देखते हैं , क्या हो सकता है ।”
मालिक की बात सुनकर राहुल नर्भसा गया। मन – ही – मन सोचने लगा कि कहीं उसकी कमीज पर कोई दाग तो नहीं रह गया। उसने अपनी दाढ़ी भी टटोली । घर से यहां तक आते-आते कहीं बढ़ तो नहीं गई! उसने अपने शरीर को ऊपर से नीचे तक देखा। सब कुछ ठीक-ठाक नजर आया। तो फिर इस मालिक के बच्चे ने कैसे उसके बारे में गलत कमेंट कर दिया ? राहुल को गुस्सा तो आया लेकिन वह खामोश बैठा रहा । नौकरी का सवाल था भाई। मालिक ने ही कुटिल मुस्कान के साथ बात शुरू की, “तो आप एंकर बनने आए हैं?”
राहुल का पारा काफी ऊपर जा रहा था। वह बोलने वाला ही था कि “नहीं, यहां मैं झक मारने के लिए आया हूँ”, लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया । बड़ी विनम्रता के साथ बोला, “इसीलिए तो आया हूं ।”
मालिक के बगल में बैठे व्यक्ति ने पूछा, “तुम्हारी डिग्री तो हमने देख ली, बायोडाटा भी देख लिया । अच्छा, अब यह बताओ कि तुम हमारे चैनल की टीआरपी बढाने के लिए क्या कर सकते हो?”
राहुल ने कहा, “आपकी जैसी पॉलिसी होगी, उस हिसाब से हम काम करेंगे । अगर आप भारतीय जनता पार्टी को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो हम कांग्रेस को गालियां देंगे और अगर आप कांग्रेस वाले हैं, तो हम भाजपा को गरियाएंगे। आप अपनी चॉइस बता दीजिए। मैं अपने आप को मैसेज कर लूँगा क्योंकि हमारी कोई विचारधारा नहीं है।”
मालिक ने कहा,” तुम में एक कमजोरी नज़र आ रही है। तुम बाहुबली टाइप के नजर नहीं आ रहे हो । हमें ऐसे एंकर चाहिए जो थोड़ा दबंग टाइप के हों। मौका आने पर डिस्कशन में शामिल किसी व्यक्ति के साथ मारपीट भी कर सकें। उन को धक्का दे सके । उनको बहुत जोर-जोर से चिल्लाकर आतंकित कर सकें। तुम तो सभ्य और सुशील टाइप के नजर आ रहे हो। ऐसे में तुम एंकरिंग क्या खाक करोगे?”
राहुल अचकचा गया । उसने कहा, ” हमें तो यही पढ़ाया गया था कि एंकर को सभ्य और सुशील होना चाहिए। उसे तमीज से बात करनी चाहिए। सामने वाला जो बोल रहा है पहले उसकी पूरी बात सुननी चाहिए।”
मालिक के बाएं तरफ बैठा चम्मच नंबर दो बोला, ” यह सब नहीं चलने वाला । एंकर को भयंकर होना चाहिए। बोले तो दबंग। उसे बहुत जोर -जोर से बोलने वाला होना चाहिए। सामने वाला जब बोल रहा हो ठीक उसी समय उसको बीच में टांग अड़ा देनाचाहिए। एंकर को वक्त पड़ने पर डिस्कशन में शामिल किसी व्यक्ति को पीटने की कला भी आनी चाहिए। उसमें धक्का-मुक्की के गुण होने चाहिए । उसमें इतना बलशाली होना चाहिए कि किसी दबंग नेता से भी टक्कर ले सके । क्या तुम ऐसा कर सकते हो?”
राहुल को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या जवाब दे । उसे लगा टीवी चैनल के लिए नहीं, किसी सुपारी किलर गैंग में शामिल होंने के लिए साक्षात्कार देना पड़ रहा है। वह उठ गया और हाथ जोड़ कर और कहा, ” अच्छा, चलता हूँ।”
मालिक ने पूछा, “अरे, अचानक कहां चल दिए?”
राहुल ने कहा, “कुछ दिन तक दूध का सेवन करता हूं। जिम जाता हूं। और अपनी सेहत बना लेता हूँ। कुछ गालियों का भी अभ्यास कर लेता हूँ। देना भी सीख लेता हूं। आपने एक महान एंकर के जो जो गुण बताए हैं, उनको पूरी तरह से आत्मसात करने के बाद फिर आऊंगा। धन्यवाद।”
इतना बोल कर राहुल बाहर निकल गया। उसके बाद हर युवक से सेठ जी के वही सवाल होते। जैसे, “क्या तुम एंकरिंग करते वक्त चीख-चीखकर बोल सकते हो ?” ….जब सामने वाला कुछ बोल रहा हो, ठीक उसी समय तुम भी कुछ – न -कुछ बोलने की कला में माहिर हो न? …क्या तुम मौका पड़ने पर किसी से मारपीट भी कर सकते हो ?” आदि -आदि।
पत्रकारिता की पढ़ाई करके निकले सीधे-साधे लड़के बेचारे इंटरव्यू में फेल होते गए। लेकिन पढ़ाई के समय गुंडागर्दी करने वाले कुछ दबंग किस्म के युवक चुन लिए गए। और उसके बाद चैनल शुरू हुआ । फिर तो कमाल ही हो गया। चैनल की टीआरपी धीरे-धीरे बढ़ने लगी । क्योंकि जितने भी एंकर थे, वे सब-के-सब बाहुबली किस्म के थे । चर्चा में शामिल लोगों से वे फुल बदतमीजी के साथ पेश आते थे। हालांकि ऐसा करने के पहले वह वार्ताकारों को बता भी देते थे कि “माफ कीजिएगा अगर कुछ अभद्रता हो जाए । उसे आप बर्दाश्त कर लीजिएगा क्योंकि नौकरी का सवाल है। सेठ को दबंग किस्म के एंकर चाहिए । “
लोग भी टीवी पर अपना थोबड़ा दिखाने के शौक के कारण एंकर की फटकार भी सुन लेते थे। उसे भरपूर सहयोग करते और एंकर की फटकार को हाथ जोड़कर स्वीकार लेते थे।
वह दिन और आज का दिन, चैनल बहुत शान से चल रहा है । उसे विज्ञापन भी खूब मिल रहे हैं । क्योंकि विज्ञापन देने वाली कंपनियां देखती है कि जैसे ही उस चैनल के एंकर किसी मुद्दे पर चर्चा शुरू करते हैं, तो धूम मच जाती है। एंकर किसी को बोलने नहीं देते। अपनी-अपनी ठेले रहते हैं और समय-समय पर सामने बैठे लोगों को फटकारते रहते हैं. चैनल का मालिक बड़ा गदगद है। उसने अपने तीन चार एंकरों की सैलरी भी कुछ और बढ़ा दी है। बाकी चैनलों के एंकर सिर पीट रहे हैं। अपने आप को कोस रहे कि हाय हम इतने सज्जन क्यों हैं। क्यों हमारे संस्कारों या खून में बदतमीजी शामिल नहीं हो पाई ।
इस व्यंग्य के लेखक गिरीश पंकज वरिष्ठ पत्रकार और जाने-माने व्यंग्यकार हैं. वे रायपुर से प्रकाशित ‘सद्भावना दर्पण’ मैग्जीन के संपादक हैं. वे साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने अब तक कुल साठ किताबें लिखी हैं जिसमें से 8 उपन्यास हैं और 16 व्यंग्य संग्रह हैं. गिरीश पंकज से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.