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आयोजन

…जब ‘विकास संवाद’ वाले सचिन कुमार जैन ओरछा में दर्जनों मीडियाकर्मियों के समक्ष फफक पड़े!

इस बार ओरछा के मशहूर होटल ‘अमर महल’ में विकास संवाद के राष्ट्रीय मीडिया कानक्लेव का आयोजन हुआ.

‘विकास संवाद’ अब किसी परिचय का मोहताज नहीं. एक लाइन में कहें तो यह संगठन हर साल देश भर के सैकड़ों मीडियाकर्मियों को एक जगह किसी एक टापिक पर इकट्ठा कर उनकी बौद्धिक समझ और चेतना को अपग्रेड करने का काम करता है, देश-समाज को समझने की नई दृष्टि प्रदान करने का काम करता है. इस ‘विकास संवाद’ को संचालित करने में जिन कई लोगों का हाथ है, उनमें एक सचिन कुमार जैन भी हैं. एक अदभुत संगठनकर्ता, एक शानदार श्रोता और एक सरोकारी व्यक्तित्व. सचिन कुमार जैन को राकेश दीवान और चिन्मय मिश्र से अलग-थलग करके नहीं देख सकते. सचिन ने राकेश और चिन्मय के संरक्षण और दिशा-निर्देशन में ही विकास संवाद को लगातार तेवर दिया. यह तिकड़ी एक छोटे-से प्रयोग को कहां से कहां तक पहुंचाने में सफल हो गई, इसके गवाह वो सारे मीडियाकर्मी हैं जो ‘विकास संवाद’ के सालाना मीडिया कानक्लेव का अनवरत हिस्सा बनते रहे हैं.

इस बार ओरछा के मशहूर होटल ‘अमर महल’ में विकास संवाद के राष्ट्रीय मीडिया कानक्लेव का आयोजन हुआ.

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‘विकास संवाद’ अब किसी परिचय का मोहताज नहीं. एक लाइन में कहें तो यह संगठन हर साल देश भर के सैकड़ों मीडियाकर्मियों को एक जगह किसी एक टापिक पर इकट्ठा कर उनकी बौद्धिक समझ और चेतना को अपग्रेड करने का काम करता है, देश-समाज को समझने की नई दृष्टि प्रदान करने का काम करता है. इस ‘विकास संवाद’ को संचालित करने में जिन कई लोगों का हाथ है, उनमें एक सचिन कुमार जैन भी हैं. एक अदभुत संगठनकर्ता, एक शानदार श्रोता और एक सरोकारी व्यक्तित्व. सचिन कुमार जैन को राकेश दीवान और चिन्मय मिश्र से अलग-थलग करके नहीं देख सकते. सचिन ने राकेश और चिन्मय के संरक्षण और दिशा-निर्देशन में ही विकास संवाद को लगातार तेवर दिया. यह तिकड़ी एक छोटे-से प्रयोग को कहां से कहां तक पहुंचाने में सफल हो गई, इसके गवाह वो सारे मीडियाकर्मी हैं जो ‘विकास संवाद’ के सालाना मीडिया कानक्लेव का अनवरत हिस्सा बनते रहे हैं.

मप्र में पहाड़ों की रानी पचमढ़ी से होता हुआ यह सफर चित्रकूट, बांधवगढ़, महेश्वर, छतरपुर, पचमढ़ी, छतरपुर, केसला, चंदेरी, झाबुआ और कान्हा में हो चुका है. इस बार ओरछा में मीडियाकर्मियों का मजमा जुटा, ‘विकास संवाद’ के बैनर तले. विषय था- ‘बच्चे’. इस टापिक पर पीयूष बबेले अदभुत बोले. उन्होंने जो कुछ कहा, उसका वीडियो या आडियो या टेक्स्ट या तीनों ही ‘विकास संवाद’ को जल्द पब्लिक डोमेन में डालना चाहिए. किसी बच्चे को कैसे समझा जा सकता है, यह पीयूष बबेले से समझना चाहिए. बच्चों को अगर आपने बच्चों जैसे मन से नहीं समझा-बूझाा तो बच्चे आपके लिए हमेशा ना-समझ बने रहेंगे. दरअसल सच्चाई यही है कि बच्चे हमारे बाप हैं. पीयूष बबेले को सैल्यूट. पत्रकारिता में ऐसी सोच-समझ और संवेदना वाले कम पत्रकार मैंने देखे हैं.

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पीयूष के बाद सबसे ज्यादा भावुक किया सचिन कुमार जैन ने. तीन दिन के आयोजन में लगातार सबको सुनते रहने वाले, हर किसी की बात-सलाह-दर्शन को नोट करते रहने वाले और पूरे आयोजन को बिना शोर-शराबा किए स्मूथ संपन्न कराने वाले सचिन जब तीसरे दिन सबसे आखिर में बोलने उठे तो सुनने वाले उन्हें सुनते सुनते न सिर्फ दंग हुए बल्कि भावुक होकर रोने लगे. सचिन ने साफ कहा- ”हां, हम पक्षधर हैं. हम आम जन के प्रति पक्षधर हैं. हम बच्चों के प्रति पक्षधर हैं. हम किसी भी किस्म की जातिवादी और धार्मिक राजनीति करने वालों के खिलाफ लिखने-पढ़ने-लड़ने वालों के प्रति पक्षधर हैं.” सचिन को यह बात इसलिए कहनी पड़ी क्योंकि कई वक्ताओं ने पक्षधरता बनाम निष्पक्षता के नाम की जलेबी छानकर ‘विकास संवाद’ के विजन को धुंधलाते हुए मीडियाकर्मियों के बीच गफलत फैलाने की कोशिश की. सचिन जब ‘विकास संवाद’ की यात्रा और इस आयोजन के सुख-दुख की बात कर रहे थे तो वे अपने साथ सतत खड़ी दो विभूतियों राकेश दीवान और चिन्मय मिश्र का उल्लेख करते हुए, इनके प्यार और निर्देशन का जिक्र करते हुए इस कदर भावुक हुए की फफक कर रो पड़े.

चट्टानी व्यक्तित्व वाले सचिन के इस बच्चे-सरीखे रूप को देखकर कानक्लेव में आए ज्यादातर साथी भावुक हो गए और रो पड़े. खुद मैं अपना आंसू न रोक पाया. बाद में मैंने सचिन से अकेले में कहा- ”इतनी बड़ी खोपड़ी वाला आदमी ऐसा संवेदनशील दिल भी रखता है, आज यकीन आया!”. यह सुन सचिन अपनी बड़ी-बड़ी आंखें चमकाते हुए अपने स्वभाव के अनुरूप मुस्करा पड़े. समर अनार्या यानि अविनाश पांडेय समर जब विकास संवाद के मीडिया कानक्लेव में होते हैं तो सब लोग एक स्पार्क सा फील करते हैं. बेहद उर्जावान समर की तीक्ष्ण समझ उनके मंच से दिए गए भाषण से हर किसी तक पहुंची. मैंने समर के आखिरी दिन दिए लेक्चर को पूरा रिकार्ड किया अपने मोबाइल कैमरे से और तुरंत अपलोड कर दिया यूट्यूब पर.

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सचिन कुमार जैन और चिन्मय मिश्र.

टीम, विकास संवाद.

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समर अनार्या का लेक्चर और यशवंत की मोबाइलबाजी! लेक्चर सुनने के लिए उपरोक्त तस्वीर पर क्लिक कर वीडियो पर पहुंचिए….

विकास संवाद का ओरछा आयोजन जिस अमर महल होटल में रखा गया था, वह अपने आप में एक अदभुत किस्म का आयोजन स्थल. आयोजन में शरीक लोग सोच रहे थे कि इस बार का यह आयोजन सबसे ज्यादा महंगा यानि एलीट है, लेकिन जब सचिन जैन ने बताया कि इस बार का आयोजन अब तक का सबसे कम दाम वाला साबित हुआ है तो हर कोई आश्चर्य चकित हो गया. प्रति व्यक्ति बारह-तेरह सौ रुपये एक दिन का खर्च पड़ा, रहने-खाने समेत सारे खर्च उठाकर. असल में होटल अमर महल के संचालक जो खुद एक राजनेता हैं, ने आयोजन के लिए अपनी तरफ से बेहद उदारता से छूट दे दी जिसके कारण रेट काफी कम हो गया. हम जैसे दर्जनों पत्रकारों के लिए सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र रहा होटल का स्वीमिंग पूल. एक दिन में चार-चार दफे नहाते थे, ऐसे जैसे जनम से स्वीमिंग पूल में न नहाएं हों 🙂

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विकास संवाद के आयोजन में शरीक होकर जब वापस दिल्ली लौटता हूं तो हमेशा खुद को सोच-समझ के लेवल पर पहले से ज्यादा समृद्ध पाता हूं. इस आयोजन में मीडिया वाले न सिर्फ किसी एक टापिक के समस्त पहलू से वाकिफ होते हैं बल्कि वे मीडिया में काम करते हैं, उसके कारपोरेट और जनविरोधी चेहरे से भी रूबरू होते हैं. मीडिया किस तरह पिछले डेढ़ दो दशकों में जनता से दूर होता चला गया है, यह कोई बताने वाली बात नहीं रही. मीडिया का एजेंडा बदल गया है. मीडिया का मकसद बदल गया है. मीडिया के सरोकार बदल गए हैं. ऐसे ही माहौल में विकास संवाद का जन्म होता है और मीडिया में काम कर रहे संवेदनशील लोगों को साल में एक बार एक जगह बिठाकर विस्तार से समझाया जाता है कि पार्टनर, आपकी असल ‘पालिटिक्स’ ‘वो’ नहीं, ‘ये’ होनी चाहिए. यानि पूंजी घरानों और भ्रष्ट तंत्र के साथ खड़े होने की जगह जनता का पक्षधर होना चाहिए.

उदारीकरण और बाजारवाद के प्रभावों के चलते जब मीडिया पर इसका असर गंभीर रूप से दिखाई देने लगा और वंचित और हाशिए के लोगों के सरोकारों का दायरा लगातार सिमटता नजर आया तब मध्यप्रदेश के कुछ पत्रकार साथियों ने एक प्रयोग की शुरूआत की. ‘विकास संवाद’ का यह प्रयोग मीडिया के माध्यम से जनसरोकार के मुद्दों को उठाने और उन्हें परिणाम तक पहुंचाने की कोशिश के रूप में है. यह कोशिश पिछले 15 सालों से लगातार जारी है. विकास संवाद इस कोशिश के लिए देश में समान सोच वाले पत्रकारों को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहा है. इसके तहत मीडिया फैलोशिप प्रोग्राम, मीडिया फोरम्स, शोध एवं जमीनी स्थितियों का विश्लेषण, स्रोत केंद्र और मैदानी सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ जुड़ाव के लिए काम किया जाता है.

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ओरछा के आयोजन का शानदार संचालन चिन्मय मिश्र ने किया. अनुशासनप्रिय और संवेदनशील व्यक्तित्व वाले चिन्मय ने जाने-माने शायरों की रचनाओं के जरिए मौका देख चौका मारते रहे जिसका असर ये हुआ कि माहौल कतई बोझिल नहीं हुआ और लोग वाह वाह कर तालियां गड़गड़ाते रहे. अरविंद मोहन, आनंद प्रधान, अरुण त्रिपाठी आदि हमेशा की तरह लाजवाब रहे. इस बार के खास आकर्षण थे एचटी वाले विनोद शर्मा और द वायर वाले सिद्धार्थ वरदराजन. न्यूज18इंडिया वाले सुमित अवस्थी भी युवा पत्रकारों के लिए आकर्षण का केंद्र बने रहे. मंच से बोलने का मौका उन सबको मिला, जिन जिन ने कोई बात उठानी चाही, कोई सवाल रेज करना चाहा, कोई प्रश्न पूछना चाहा, किसी छूट रहे आयाम का उल्लेख जरूरी समझा. इससे हुआ ये कि कई दफे बड़े संपादक घेरे गए, उनकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाया गया. मीडिया पिछले डेढ़ दो देशक में जो बदला तो इसके संपादकों का चाल चरित्र भी बदल गया. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है.

सिद्धार्थ वरदराजन माइक संभाले और मंचासीन विनोद शर्मा.

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आनंद प्रधान की बारी.

सेल्फी हो जाए.

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अबकी तो चार-पांच फंस गए इस सेल्फी के फ्रेम में…

आ जा मेरी सेल्फी में आ जा…

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अरविंद मोहन बोलते हुए.

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यशवंत ने भी निकाली भड़ास.

समर और संदीप नाईक के बीच इन दोनों का वर्षों पुराना एक मित्र जो इन दिनों टीकमगढ़ में सीनियर अफसर के रूप में तैनात है.

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आयोजन खत्म होते ही यशवंत एंड टीम (ड्राइविंग सीट पर दतिया वाले पत्रकार इमरान भाई, पीछे दाएं आलोक रंजन सिंह और पीछे बाएं मनीष चंद्र मिश्रा) दतिया की ओर रवाना. यहां एक रात डेरा डाला गया.

तीन दिन के आयोजन में ढेर सारे लोग पहले या दूसरे दिन की शाम चले गए, जिसकी जैसी व्यस्तता रही. लेकिन जो तीनों दिन टिके वही इस ग्रुप फोटो में दिख रहे.

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अपन लोगों का देश पिछले ढाई दशकों से खासतौर पर बहुत तेज और असरकारी बदलावों के दौर से गुज़र रहा है. लगता तो ऐसा ही है कि आर्थिक नीतियों ने समाज और सामाजिक ताने-बाने पर बहुत गहरा असर डाला है. ऐसे में उम्मीद थी कि मीडिया इन बदलावों पर नज़र रखेगा, उनकी आलोचनात्मक समीक्षा करेगा और बुरे असर डालने वाली नीतियों-व्यवस्थाओं पर लगाम लगाएगा; पर ऐसा हुआ नहीं. वह खुद भी नए ताने-बाने का हिस्सा बन गया और अपने हित साधने में जुट गया.

नब्‍बे के दशक से जारी इन नीतियों को लागू करने से समाज के बड़े हिस्से को चोट ही पहुंची है. जो किसान आर्थिक रूप से कमजोर रहने के बाद भी आत्महत्या करने को कभी मजबूर नहीं हुआ था, अब अपनी जान दे रहा है. विकास के नाम पर सबसे ज्यादा दलित और आदिवासी विस्थापित किए गए और उन्हें हर बिंदु, हर कोने से बाहर धकेला जाने लगा. एक प्रतिशत लोग देश की कुल 58 प्रतिशत सम्पत्ति के मालिक हो गए.

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बच्चों और महिलाओं के खिलाफ़ हिंसा-शोषण के मामले तेज़ी से बढ़ते गए. एक तरफ शिक्षा के अधिकार और शिक्षा के महत्व पर प्रवचन होते हैं, वहीँ दूसरी और ऐसी नीतियां बनती हैं, जो पढ़ने वाले बच्चों को आत्महत्या की तरफ धकेलती हैं. यह उल्लेख करना जरूरी है कि भारत में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण “बीमारियाँ और अवसाद” है. ये बीमारियाँ और अवसाद कहीं “विकास” का सह-उत्पाद तो नहीं है? विकास के नाम पर हम “निर्भरता और परतंत्रता” के भंवरजाल में तो नही फँस गए?

हर दिन उजागर होते इन नतीजों के बावजूद हमारी राज्य व्यवस्था उन्‍हीं नीतियों को लागू करने के लिए उत्‍सुक रही. इसी दौर में आर्थिक नीतियों से आगे जाकर सामाजिक भेदभाव, साम्प्रदायिकता और राजनीति से प्रेरित हिंसा को समाज में बहुत विस्तार दिया गया. इसके दो कारण नज़र आते हैं; एक – जो नीतियों लागू की जा रही हैं, उन पर से समाज का ध्यान हट जाए और सम्पदा-सम्पत्ति की लूट जारी रह सके, दो – समाज पर तात्कालिक रूप से किसी एक धार्मिक मतावलंबियों का प्रभुत्व कायम किया जा सके. ये दोनों कारण केवल भारत तक ही सीमित नहीं हैं, इनका दायरा और असर वैश्विक है.  समाज और देश में व्याप्त माहौल, राज्य की नीतियों और लगातर बदलते अपने चरित्र से जोड़ कर मीडिया की भूमिका और कामकाज की पड़ताल करते रहना चाहिए. चुप रहना या पीछे हटना कोई विकल्प नहीं है. विकास संवाद के इस बार के आयोजन में भी यही बात नजर आई.

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अब कुछ बात आयोजन स्थल ओरछा को लेकर. ओरछा वैसे तो मध्‍यप्रदेश का एक प्रमुख पर्यटन स्‍थल है लेकिन यह यूपी वाले झांसी के रेलवे जंक्‍शन से मात्र 17 कि‍मी की दूरी पर बसा है. ओरछा असल में एक कस्बा है, कहानियों से भरपूर एक छोटा लेकिन ऐतिहासिक कस्बा. यह जिला नीमचगढ़ में पड़ता है. ओरछा में रामराजा मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है. यहां सुबह शाम आरती के लिए जब राम राजा का कपाट खुलता है तो पुलिस के लोग गार्ड आफ आनर पेश करते हैं. इस लिहाज से यह देश का इकलौता और अदभुत मंदिर है. विदेशी पर्यटक हर समय ओरछा में पाए जाते हैं.

तीन दिन के विकास संवाद के आयोजन में सुबह शाम वक्त निकालकर मीडियाकर्मी साथी ओरछा के सारे किले मंदिर नदी नाले घूम आए. इस बार का विकास संवाद का आयोजन जेहन में हमेशा कायम रहेगा क्योंकि इसके माध्यम से सीखने-गुनने को तो मिला ही, एक खूबसूरत जगह में झांकने का मौका भी मिला, देश भर से आए खूबसूरत दिल-ओ-दिमाग वाले सैकड़ा भर से ज्यादा मीडियाकर्मियों से रूबरू होने का अवसर मिला.

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देखें वीडियो : https://www.youtube.com/watch?v=LiGGC94nm-Q

धन्यवाद विकास संवाद.

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अलविदा ओरछा.

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के संपादक यशवंत सिंह की रिपोर्ट. संपर्क : [email protected]

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