मीडिया वही, घोटाले वही। कुछ नहीं बदला। बदला तो सिर्फ हरियाणा के रेवाड़ी जिले का मीडिया है, जिसे अचानक कथित घोटाले उजागर करने का जैसे ठेका ले लिया है। ये कथित घोटाले हैं सरकारी जमीन और रेवाड़ी नगर परिषद से जुड़े हुए। मीडिया इन्हें खुद उजागर नहीं कर रहा है। भाजपा के जिला अध्यक्ष सतीश खोला बधाई के पात्र हैं, जो इस काम में लीड कर रहे हैं। इसके पीछे मकसद क्या है यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा, लेकिन यह साफ नजर आ रहा है कि मीडिया उनकी ‘नेकनियती’ में खुलकर साथ दे रहा है।
प्रमुख समाचार पत्रों में आजकल इन्हीं दो मुद्दों को लेकर कुछ इस तरह से समाचार प्लान किए जा रहे हैं, जैसे मीडिया को इन घोटालों के बारे में पहले कुछ भी पता नहीं था। किसी समाचार पत्र में बाइलाइन स्टोरी, तो किसी में नेताओं से लेकर अफसरों तक के वर्जन के साथ समाचार प्रकाशित होना अपने आप में किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं है। जिले के प्रमुख समाचार पत्रों में आए दिन इसी तरह के समाचार लीड के रूप में प्रकाशित हो रहे हैं। दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और पंजाब केसरी दिल्ली में इन दोनों ही मुद्दों पर लीड न्यूज प्लान करने की होड़ सी लगी हुई है।
पंजाब केसरी दिल्ली के मालिक को जब इन खबरों की हकीकत का पता चला, तो एक ‘विशेष संवाददाता’ का पत्ता साफ कर दिया। एक का नाम बंद कर दिया। दिलचस्प बात यह है कि इन दोनों मामलों में सवाल कांग्रेस की सरकार रहते हुए भी उठते रहे। इसके बावजूद अचानक रेवाड़ी के मीडिया को आखिर इन दोनों ही मामलों में ज्यादा दिलचस्पी कैसे हो गई। यहां दो बातें प्रमुख रूप से बताने के लायक हैं। भाजपा की सरकार बनने के बाद जहां इस जिले के कई वरिष्ठ भाजपा नेता ‘निष्क्रिय’ से बने हुए हैं, वहीं सतीश खोला शायद जिले में भाजपा की सरकार चला रहे हैं। जिस सरकारी या वक्फ बोर्ड की जमीन को लेकर इस समय उनका ‘आंदोलन’ चल रहा है, वह उनके अपने कार्यालय से कुछ गज की दूरी पर ही है।
यह जमीन अरबों रुपए की बताई जा रही है। इस जमीन के ठीक पास ही भाजपा के इस ‘कद्दावर’ जिलाध्यक्ष का कार्यालय है, जो उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व ही एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार के ब्यूरो चीफ से खरीदा था। कितने में खरीदा था और वास्तविक कीमत क्या थी, यह कोई बड़ा सवाल नहीं है। इसे लेकर भी पूर्व में चर्चाएं होती रहीं। इसी जमीन के आसपास दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और अमर उजाला के कार्यालय रेजिडेंशियल एरिया में धड़ल्ले से चल रहे हैं। जिस जमीन को लेकर घमासान चल रहा है, उस पर कई लोगों की नजरें कांग्रेस के शासनकाल से ही लगी हुई हैं। शायद हर किसी की इच्छा यही है कि जमीन का छोटा सा टुकड़ा भी मिल जाएगा, तो बैंक बैंलेंस लाखों रुपए में बढ़ जाएगा। शायद मामला कुछ अखबारों के संपादकों तक भी पहुंच चुका हो। उन्हें भी शायद यह संदेश दे दिया गया हो अगर ‘गंगा बही’ तो उनके भी हाथ धुला ही दिए जाएंगे।
अब बात करते हैं नगर परिषद की। नगर परिषद के चुनाव होने में अभी काफी समय है। परिषद के एक अधिकारी अपना काम इमानदारी से कर रहे हैं। एक प्रभावशाली नेता की नजर अब प्रधानी पर है। नगर परिषद प्रधान को चलता करने व ईमानदार अधिकारी को यहां से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए वे तमाम प्रयास किए जा रहे हैं, जिनकी शायद इस समय जरूरत भी है। मीडिया ‘माल’ ‘मालदार’ और ‘असरदार’ और ‘सरकार’ तीनों ही हाथों में खेलकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को दागदार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। कुछ अधिकारी भी इस समय मीडिया के दबाव में ऐसे नेताओं के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं, जिनके पास विधायक तो क्या किसी गांव का पंच बनने तक बनने का जनादेश भी नहीं है। मुबारक हो रेवाड़ी के मीडिया को।
लेखक नरेंदर वत्स से ई-मेल संपर्क : nk.vats1973@gmail.com
Comments on “मालदार, असरदार और सरकार का वफादार रेवाड़ी का मीडिया”
Vats ji, well done
🙂 बहुत बढ़िया और हकीकत लिखी है भाई नरेन्द्र वत्स जी ।