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वेब मीडिया को विज्ञापनों पर हंगामा क्यों? दूसरा पहलू भी आये सामने

सिर्फ सनसनी पैदा करने के लिये अपनी ही बिरादरी के लोगों को नीचा दिखाने पर उतारू न हो जायें। मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र तो सामान्य हंगामेदार रहा लेकिन असली हंगामे की एक जड़ छोड़ गया भोपाली मीडिया में। इस बहाने कांग्रेस विधायक बाला बच्चन भी अच्छे—खासे चर्चा में आ गये हैं। उन्होंने सवाल ही कुछ ऐसा पूछ डाला। इसके कारण एक और काम सबसे अच्छा हुआ है कि सबकी असली मानसिकता और असली चेहरे सामने आ गये। सोशल मीडिया में ये बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है कि लोगों के असली चेहरे और उनकी असली मानसिकता जल्दी सामने आ जाती है।

<p>सिर्फ सनसनी पैदा करने के लिये अपनी ही बिरादरी के लोगों को नीचा दिखाने पर उतारू न हो जायें। मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र तो सामान्य हंगामेदार रहा लेकिन असली हंगामे की एक जड़ छोड़ गया भोपाली मीडिया में। इस बहाने कांग्रेस विधायक बाला बच्चन भी अच्छे—खासे चर्चा में आ गये हैं। उन्होंने सवाल ही कुछ ऐसा पूछ डाला। इसके कारण एक और काम सबसे अच्छा हुआ है कि सबकी असली मानसिकता और असली चेहरे सामने आ गये। सोशल मीडिया में ये बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है कि लोगों के असली चेहरे और उनकी असली मानसिकता जल्दी सामने आ जाती है।</p>

सिर्फ सनसनी पैदा करने के लिये अपनी ही बिरादरी के लोगों को नीचा दिखाने पर उतारू न हो जायें। मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र तो सामान्य हंगामेदार रहा लेकिन असली हंगामे की एक जड़ छोड़ गया भोपाली मीडिया में। इस बहाने कांग्रेस विधायक बाला बच्चन भी अच्छे—खासे चर्चा में आ गये हैं। उन्होंने सवाल ही कुछ ऐसा पूछ डाला। इसके कारण एक और काम सबसे अच्छा हुआ है कि सबकी असली मानसिकता और असली चेहरे सामने आ गये। सोशल मीडिया में ये बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है कि लोगों के असली चेहरे और उनकी असली मानसिकता जल्दी सामने आ जाती है।

जैसा कि सबको ज्ञात है माननीय विधायक महोदय ने पूछा था कि वर्ष 2012 से अभी तक वेबसाईट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, समाचार पत्र—पत्रिकाओं को सरकार की तरफ से कितना विज्ञापन दिया गया उसकी सूची बताई जाये। तो साहब बाला बच्चन को तो फिर भी देर लगी होगी उस सूची को लेने में लेकिन कुछ फुरसतिये पत्रकारों ने इसे सबसे पहले निकाला। इनमें वे लोग शामिल थे जो एनजीओ आदि चला रहे हैं। इस सूची में इलेक्ट्रॉनिक चैनल,समाचार पत्र—पत्रिकाओं सबको छोड़कर निशाना बना वेबमीडिया। वेबमीडिया सरकारी विज्ञापनों को लेकर हमेशा निशाने पर रहा है क्यों इसका असली मतलब अब समझ आ रहा है।

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दरअसल वेबमीडिया को जो विज्ञापन सालों से जारी किये जा रहे हैं उनके भुगतान की राशि एकमुश्त चार साल की दिखाई जा रही है। ऐसे में जाहिर है कि अगर एक वेबसाईट को मासिक 25 हजार भी मिलता है तो चार साल का क्या आंकड़ा हो सकता है और इसमें भी साल में एकाध महीने का गैप भी हो जाता है। तो साहब लोगों के झगड़े की जड़ ये है कि फलां पत्रकार की वेबसाईट को इतना मिला तो उनको उतना मिला। इसमें ये बात स्पष्ट कहीं नहीं दशाई जा रही खबरों में कि ये कितने सालों का है। इसको पेश ऐसे किया जा रहा है ​जैसे किसी एक वेबसाईट को एक—दो महीने में एकमुश्त रकम दे दी गई।

इस मामले में एक जो गंदी मानसिकता का परिचय सामने आ रहा है कि पत्रकारों की पत्नियों और उनके परिवार को लेकर अच्छी टिप्पणियां नहीं की जा रही हैं। वेबसाईट संचालक पत्रकारों को तमाम तरह की पत्रकारिय गालियों से नवाजा जा रहा है। सबको पता होता है कि एक पत्रकार जब नौकरी करता है तो अपने नाम से कुछ और नहीं कर सकता ऐसे में परिवार के किसी सदस्य के नाम से उसने कोई वेबसाईट शुरू कर ली और विज्ञापन ले लिये तो क्या गुनाह कर दिया। ठीक यही काम तो साप्ताहिक और मासिक केे माध्यम से किया जा रहा है फिर उस पर सवाल क्यों नहीं? वैसे यह नौबत न आती अगर वेबसाईट संचालक पत्रकार खुद इस बारे में सामने आकर लोगों को जवाब देते लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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सवाल यह भी है कि चारों ओर से घेरा वेबसाईट्स पर ही क्यों? एक बड़े संस्थान के कई उपसंस्थान होते हैं तो क्या वो एक ही व्यक्ति के नाम पर होते हैं? जाहिर ​है परिवार के ही अलग—अलग लोगों के नाम से होतें हैं तो पत्रकार नौकरी करते हुये अगर ऐसा कर रहा है तो गलत क्या है? अगर यह मीडिया का दोमुंहापन या दलाली है तो यह उस धंधे से कहीं अच्छी है जिसे शुद्ध शब्दों में ब्लैकमेलिंग कहा जाता है।

और एक बात तो जाहिर है कि कोई भी मीडिया माध्यम बिना विज्ञापन के नहीं चलता है।वेबसाईट्स पर छपना भी है,उनकी खबरें भी चुराना है, जिस खबर को अखबार न छापें उसे वेबसाईट में छपवाना है और जब उसे आमदनी होने लगे तो उसे दोमुंहा,दलाल और कोई महिला हो तो उसके चरित्र पर उंगली भी उठाना है यह कैसी पत्रकारिय नैतिकता है।

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खबरनेशन वेबसाईट ने इस सूची को लेकर खबर प्रकाशित की वह बधाई का पात्र है लेकिन बेहतर होता अगर सारे मीडिया को इसमें लिया जाता। और भी बेहतर होता अगर खबरनेशन स्पष्ट करता कि वास्तविक स्थिति है क्या? क्यों खबरनेशन ने सिर्फ पत्रकारों को निशाने पर लिया? क्यों खबरनेशन ने इंट्रो में यह लिखने के बावजूद कि ऐसी मात्र 25 वेबसाईट हैं जो पत्रकारिता कर रही हैं उनके नाम स्पष्ट नहीं किये। क्यों यह स्पष्ट नहीं किया कि किसकी कितनी वेबसाईट चल रही हैं?कयों एक जमात में सबको खड़ा कर दिया गया?

क्यों उनके नाम सामने नहीं लाये गये जिनके बारे में लोग मुंहजबानी बातें करते नहीं थकते कि फलां नेता की इतनी वेबसाईट्स हैं और फलां उसका रिश्तेदार है? और एक आपत्तिजनक बात खबरनेशन की खबर मेें यह थी कि एक विवादित महिला पत्रकार को भी विज्ञापन जारी हुये तो सवाल सीधा कि विवादित कौन नहीं है और जो विवादित है वह चाहे महिला हो या पुरूष उसे यह अधिकार है कि नहीं? एक पत्रकार होने के नाते मल्हार मीडिया खबरनेशन से ये उम्मीद करता है कि वो ये सारी चीजें बातें स्पष्ट करे।

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दिलचस्प बात यह रही कि जिस दिन यह सवाल पूछा गया उस दिन से अभी तक कई फोन मल्हार मीडिया को कर दिये गये सवालों पर सवाल। इनमें वो लोग शामिल थे जो भोपाल में हैं भोपाल से बाहर हैं और कुछ की वेबसाईट बंद पड़ी हैं जो सरकार के पास विज्ञापन मांगने जाने में इसलिये शर्माते हैं क्योंकि दूसरे मदों से पैसा बटोरने में लगे हैं। एक अपील भोपाली मीडिया से कि नजर चारों तरफ दौड़ायें और सोचें कि असली नैतिकता की जरूरत कहां पर है और हम अपनी क्या छवि प्रस्तुत कर रहे हैं एक—दूसरे को नीचा दिखाकर।

ममता यादव भोपाल की प्रतिभाशाली पत्रकार हैं और मल्हार मीडिया नाम से अपना डिजिटिल मीडिया उपक्रम संचालित करती हैं. उनसे संपर्क 7566376866 या 9826042868 के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. pankaj

    January 2, 2016 at 1:42 am

    bahut sahi likha hai mamtaji aap ne.

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