भोपाल : मध्य प्रदेश में इन दिनों बड़ा चैनल घोटाला चर्चा में है जिसकी अंतर्कथा व्यापम से जोड़कर देखी जा रही है। खबर यह है की वर्ष 2012 से उन चैनलस पर मेहरबानी की जो अधिकांश जीरो टीआरपी वाले चैनल्स हैं या बंद पड़ी हैं जबकि बड़ी चैनल्स अपने प्राइम टाइम के समाचारों के विज्ञापन के लिए तरस रहीं हैं यहाँ तक की प्रधानमंत्री मोदी की पसंद दूरदर्शन को छ अंकों की राशि में भी शामिल नहीं किया गया है, कुल १०० करोड़ के इस घोटाले में उन चैनल मालिकों की पौ बारह हो गयी है जो या तो जेल में बंद हैं या उन पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं|
Tag: vigyapan ghotala,
एमपी में तीन सौ करोड़ के विज्ञापन घोटाले में आईएएस समेत कई के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की तैयारी
भोपाल. 300 करोड़ के विज्ञापन घोटाला एवं एक ही परिवार के कई सदस्यों को करोड़ो रुपये देकर शासन को आर्थिक हानि पहुंचाने पर जनसंपर्क आयुक्त अनुपम राजन, सीएम के सेकेट्री एसके मिश्रा और दो अन्य के खिलाफ धारा 420, 467, 468, 120बी की एफआईआर दर्ज करने का परिवाद सीजेएम कोर्ट में एडवोकेट यावर खान ने विनय डेविड की ओर से पेश किया. कोर्ट ने बयान के लिए 02 /03 / 16 पेशी नियत की है. मध्यप्रदेश का जनसम्पर्क विभाग पत्रकारिता के नाम पर भाई-भतीजावाद, कमीशन आधारित विज्ञापनवाद, चहेतों को आर्थिक लाभ पहुंचाने तथा एक ही परिवार के कई सदस्यों को मीडिया अथवा पत्रकारिता के नाम पर विज्ञापन देने के लिए कुख्यात है.
मध्य प्रदेश में चैनलगेट के आगे पानी भरता दिखाई देता है वेबगेट
मध्यप्रदेश में इन दिनों न्यूज वेबसाईट को दिये विज्ञापनों पर हंगामा जारी है। इसे बकायदा वेबगेट घोटाला कहा जा रहा है। लेकिन अगर सूची पर नजर डालें और प्रमुख सचि के हालिया आदेश पर नजर डालें तो वेबगेट के आगे चैनल गेट कहीं नहीं लगता। आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि वेबगेट घोटाला यानी वेबसाईटों का विज्ञापन घोटाला चैनल विज्ञापन घोटाले के आगे पानी भरता नजर आ रहा है। पिछले एक महीने से मचे हंगामे और उठा—पटक के बीच वेबसाईट्स के विज्ञापन बंद कर दिये गये हैं। सूची के अनुसार गड़बड़ है तो गड़बड़ियों को पकड़ने के बजाय मध्यप्रदेश की बदनामी कराने से क्या मिला?
मध्य प्रदेश में सौ करोड़ रुपये का TV चैनल विज्ञापन घोटाला
जीरो TRP वाले चैनल्स पर मेहरबान शिवराज सरकार
भोपाल : मध्य प्रदेश में इन दिनों बड़ा चैनल घोटाला चर्चा में है जिसकी अंतर्कथा व्यापम से जोड़कर देखी जा रही है। खबर यह है की वर्ष 2012 से उन चैनलस पर मेहरबानी की जो अधिकांश जीरो टीआरपी पर हैं या बंद पड़ी हैं जबकि बड़ी चैनल्स अपने प्राइम टाइम के समाचारों के विज्ञापन के लिए तरस रहीं हैं यहाँ तक की प्रधानमंत्री मोदी की पसंद दूरदर्शन को छ अंकों की राशि में भी शामिल नहीं किया गया है, कुल १०० करोड़ के इस घोटाले में उन चैनल मालिकों की पौ बारह हो गयी है जो या तो जेल में बंद हैं या उन पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं.
विज्ञापन घोटाला : क्या सिर्फ वेबसाईट संचालक ही घोटालेबाज हैं, दूसरी तरफ नजर टेढ़ी क्यों नहीं?
मध्यप्रदेश में मचे विज्ञापन घोटाले के हंगामे के बीच निशाने पर सिर्फ और सिर्फ वेब मीडिया यानी समाचार वेबसाईट्स हैं। वेबसाईट्स को दिये गये विज्ञापनों को लेकर एक हद तक काफी चीजें सही भी हैं जो बताती हैं कि गड़बड़ तो हुई है लेकिन सवाल ये है कि क्या गड़बड़ सिर्फ वेबसाईट्स को लेकर ही है? सुना है किसी मीडिया सन्घ के पदाधिकारी द्वारा कोर्ट में विज्ञापन घोटाले को लेकर सीबीआई जांच की मांग की गई है इस पूरे मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि एकतरफा खेल खेला जा रहा है हर तरफ सिर्फ वेबसाइट्स की चर्चा है। जताया ऐसा जा रहा है कि सबसे बड़े घोटालेबाज सिर्फ और वेबसाईट संचालक पत्रकार ही हैं। वेबसाईट संचालक पत्रकारों पर सबकी टेढ़ी नजर है मगर क्यों?
मध्य प्रदेश विज्ञापन घोटाले के बहाने उघड़ती असलियत को कोई दिन के उजाले में भी नहीं देखना चाहता
एक घोटाला मध्यप्रदेश का जिसे विज्ञापन घोटाला कहा जा रहा है। बहरहाल इस घोटाले के बहाने कई और भी परतें उधड़ रही हैं और कुछ असलियतें सामने आ रही हैं जिनकी तरफ कोई दिन के उजाले में भी देखने को तैयार नहीं है। इस मामले की लिखी गई खबर में वेबसाईटस की संख्या लिखी 235 जबकि सूची में वेबसाईटस हैं 259 । गिनती फिर से करिये। दे कॉपी पेस्ट दे कॉपी पेस्ट किये जा रहे हैं। सूची के अनुसार जितना पूरी वेबसाई्टस को विज्ञापन को नहीं दिये गये उससे कहीं ज्यादा तो सिर्फ एक चैनल को पकड़ा दिये गये। बाजी मार गईं तमाम तरह की सोसयटीज और क्षेत्रीय प्रचार कंपनियां इनमें कई करोड़पतिये हैं।
वेब मीडिया को विज्ञापनों पर हंगामा क्यों? दूसरा पहलू भी आये सामने
सिर्फ सनसनी पैदा करने के लिये अपनी ही बिरादरी के लोगों को नीचा दिखाने पर उतारू न हो जायें। मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र तो सामान्य हंगामेदार रहा लेकिन असली हंगामे की एक जड़ छोड़ गया भोपाली मीडिया में। इस बहाने कांग्रेस विधायक बाला बच्चन भी अच्छे—खासे चर्चा में आ गये हैं। उन्होंने सवाल ही कुछ ऐसा पूछ डाला। इसके कारण एक और काम सबसे अच्छा हुआ है कि सबकी असली मानसिकता और असली चेहरे सामने आ गये। सोशल मीडिया में ये बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है कि लोगों के असली चेहरे और उनकी असली मानसिकता जल्दी सामने आ जाती है।
मध्य प्रदेश में व्यापमं के बाद विज्ञापन घोटाला!
रतलाम। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजपुर विधायक बाला बच्चन को विधानसभा में उठाए सवाल के जवाब में मिली जानकारी ने प्रदेश के पत्रकारों के कान खड़े कर दिये हैं। विधायक बाला बच्चन द्वारा जनसंपर्क विभाग के मंत्री राजेन्द्र शुक्ल (जो कि ऊर्जा मंत्री भी है) से जनसंपर्क विभाग की विज्ञापन नीति विषय से जुड़े चार सवाल पूछे गए। इन सवालों के जवाब में जो जानकारी विधानसभा में जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई, उसके मुताबिक विभाग द्वारा 235 वेबसाईट/वेबपोर्टलों को साढ़े चार साल में लगभग सवा बारह करोड़ रूपए के विज्ञापन बांट दिए गए। 70 न्यूज चैनलों को लगभग 72 करोड़ रूपए और क्षेत्रीय प्रचार के नाम पर लगभग 58 करोड़ रूपए दे दिए गए।
शिवराज सरकार ने मध्य प्रदेश के पत्रकारों के रिश्तेदारों पर 150 करोड़ रुपये उड़ाया, देखें लिस्ट
मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग द्वारा 150 करोड़ के विज्ञापन पत्रकारों को मनमाने तरीके से बांटे जाने का मामला प्रकाश में आया है. 235 वेबसाईट / वेबपोर्टलों को साढ़े चार साल में लगभग सवा बारह करोड़ रुपए के विज्ञापन नियमविरूद्ध तरीके से बांट दिए गये. इसी प्रकार 70 न्यूज चैनलों को लगभग 72 करोड़ रूपए और क्षेत्रीय प्रचार के नाम पर लगभग 58 करोड़ फूँक दिए गये. 235 वेबसाईट में से मात्र 25 वेबसाईट ऐसी हैं जो नियमित पत्रकारिता कर रही हैं. 210 वेबसाईट के संचालक नामी गिरामी पत्रकारों के रिश्तेदार या जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, जिन्हें भारी भरकम विज्ञापन दिए गये हैं. कुछ डमी पत्रकारों के तौर पर भाजपा के प्रभावशाली नेताओं से जुड़े लोग भी हैं.
वेबमीडिया के नाम पर बूढ़ी बुआओं का विलाप…! बाला बच्चन दिखायें साहस ये सवाल पूछने का
कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने एक सवाल क्या पूछा भोपाली मीडिया के पत्रकार एक—दूसरे के कपड़े फाड़ने पर उतारू हो गये। खुराफाती लोग पड़ गये वेबसाईटों को दिये गये विज्ञापनों के पीछे। इस सब में जो दिग्गज नाम गिरामी लोग थे उनका तो कुछ नहीं लेकिन जो नये काम करने वाले पत्रकार थे उनका सारे मध्यप्रदेश के पत्रकारों ने फोन मैसेज करके जीना मुश्किल कर दिया। ऐसे में मल्हार मीडिया ने वो सवाल उठाये हैं जो वास्तव में पत्रकारिता के हित में खुद पत्रकारों को पूछने चाहिए और बाला बच्चन से उम्मीद की जाती है कि वे इन्हें विधानसभा के अगले सत्र में जरूर उठायेंगे। सारे मीडिया साथी इसे जरूर पढ़ें…
संवाददाता समिति ने दी वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र सिंह के परिजनों को 55 हजार की मदद
लखनऊ। उत्तर प्रदेश मुख्यालय मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति ने लम्बे समय से गंभीर बीमारी से जूझ रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र सिंह के परिजनों से आज मुलाकात कर उनके इलाज के लिए 55 हजार की फौरी मदद प्रदान की। इसी के साथ समिति ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि वह श्री सिंह के इलाज के लिए दस लाख रूपये देने की उसकी मांग पर शीघ्र निर्णय करे।