बाजार के नाम पर हिन्दी समाचार पत्रों में अंग्रेजी का थोपा जाना ठीक नहीं, माधवराव सप्रे संग्रहालय में ‘आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी फैलोशिप’ अवार्ड समारोह संपन्न… भोपाल। बाजार का दबाब या पाठकों विशेषकर युवाओं की पसंद के नाम पर हिन्दी समाचार पत्रों में अंग्रेजी का थोपा जाना ठीक नहीं। वास्तविकता तो यह है कि औपनिवेशिक काल …
Tag: mamta yadav
जनसंपर्क से लेकर मकान, दुकान हर सुविधा तक अपात्र पत्रकारों की भरमार है
Mamta Yadav : आज के पत्रिका में 4 नम्बर पेज पर छपी इस खबर पर नज़र डालिये। इस खबर में जहां गोला लगा है वहां पर गौर करिये। इसमें कोई शक नहीं कि जनसंपर्क से लेकर मकान, दुकान हर सुविधा तक अपात्र पत्रकारों यानी ग़ैरपत्रकारों की घुसपैठ औऱ भरमार है। लेकिन सवाल ये है कि …
लुटेरी मोबाइल कंपनियां सोची समझी साजिश के तहत बना रहीं कस्टमर्स पर दबाव!
Mamta Yadav : क्या 4जी के हल्ले के बीच हम मोबाइल कंपनियों की चालाकी समझ पा रहे हैं? सिर्फ अपने अनुभव से नहीं लिख रही हूं और भी कई लोगों से बात की तो एक ही बात सामने आ रही है। जो 2 जीबी का 3जी मोबाइल डाटा पूरे महीने चलता था अब 10 दिन भी नहीं चल पा रहा है। स्पीड खराब हुई है वह अलग। 3 जी महंगा कर दिया गया है 4जी सस्ता है।
मध्य प्रदेश में चैनलगेट के आगे पानी भरता दिखाई देता है वेबगेट
मध्यप्रदेश में इन दिनों न्यूज वेबसाईट को दिये विज्ञापनों पर हंगामा जारी है। इसे बकायदा वेबगेट घोटाला कहा जा रहा है। लेकिन अगर सूची पर नजर डालें और प्रमुख सचि के हालिया आदेश पर नजर डालें तो वेबगेट के आगे चैनल गेट कहीं नहीं लगता। आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि वेबगेट घोटाला यानी वेबसाईटों का विज्ञापन घोटाला चैनल विज्ञापन घोटाले के आगे पानी भरता नजर आ रहा है। पिछले एक महीने से मचे हंगामे और उठा—पटक के बीच वेबसाईट्स के विज्ञापन बंद कर दिये गये हैं। सूची के अनुसार गड़बड़ है तो गड़बड़ियों को पकड़ने के बजाय मध्यप्रदेश की बदनामी कराने से क्या मिला?
विज्ञापन घोटाला : क्या सिर्फ वेबसाईट संचालक ही घोटालेबाज हैं, दूसरी तरफ नजर टेढ़ी क्यों नहीं?
मध्यप्रदेश में मचे विज्ञापन घोटाले के हंगामे के बीच निशाने पर सिर्फ और सिर्फ वेब मीडिया यानी समाचार वेबसाईट्स हैं। वेबसाईट्स को दिये गये विज्ञापनों को लेकर एक हद तक काफी चीजें सही भी हैं जो बताती हैं कि गड़बड़ तो हुई है लेकिन सवाल ये है कि क्या गड़बड़ सिर्फ वेबसाईट्स को लेकर ही है? सुना है किसी मीडिया सन्घ के पदाधिकारी द्वारा कोर्ट में विज्ञापन घोटाले को लेकर सीबीआई जांच की मांग की गई है इस पूरे मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि एकतरफा खेल खेला जा रहा है हर तरफ सिर्फ वेबसाइट्स की चर्चा है। जताया ऐसा जा रहा है कि सबसे बड़े घोटालेबाज सिर्फ और वेबसाईट संचालक पत्रकार ही हैं। वेबसाईट संचालक पत्रकारों पर सबकी टेढ़ी नजर है मगर क्यों?
वेब मीडिया को विज्ञापनों पर हंगामा क्यों? दूसरा पहलू भी आये सामने
सिर्फ सनसनी पैदा करने के लिये अपनी ही बिरादरी के लोगों को नीचा दिखाने पर उतारू न हो जायें। मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र तो सामान्य हंगामेदार रहा लेकिन असली हंगामे की एक जड़ छोड़ गया भोपाली मीडिया में। इस बहाने कांग्रेस विधायक बाला बच्चन भी अच्छे—खासे चर्चा में आ गये हैं। उन्होंने सवाल ही कुछ ऐसा पूछ डाला। इसके कारण एक और काम सबसे अच्छा हुआ है कि सबकी असली मानसिकता और असली चेहरे सामने आ गये। सोशल मीडिया में ये बहुत अच्छा प्लेटफॉर्म मिला है कि लोगों के असली चेहरे और उनकी असली मानसिकता जल्दी सामने आ जाती है।
वेबमीडिया के नाम पर बूढ़ी बुआओं का विलाप…! बाला बच्चन दिखायें साहस ये सवाल पूछने का
कांग्रेस विधायक बाला बच्चन ने एक सवाल क्या पूछा भोपाली मीडिया के पत्रकार एक—दूसरे के कपड़े फाड़ने पर उतारू हो गये। खुराफाती लोग पड़ गये वेबसाईटों को दिये गये विज्ञापनों के पीछे। इस सब में जो दिग्गज नाम गिरामी लोग थे उनका तो कुछ नहीं लेकिन जो नये काम करने वाले पत्रकार थे उनका सारे मध्यप्रदेश के पत्रकारों ने फोन मैसेज करके जीना मुश्किल कर दिया। ऐसे में मल्हार मीडिया ने वो सवाल उठाये हैं जो वास्तव में पत्रकारिता के हित में खुद पत्रकारों को पूछने चाहिए और बाला बच्चन से उम्मीद की जाती है कि वे इन्हें विधानसभा के अगले सत्र में जरूर उठायेंगे। सारे मीडिया साथी इसे जरूर पढ़ें…
मल्टी टैलेंटेड विजुअली चैलेंज्ड मोनिका-अंकिता पर कोई मां-पिता क्यों न करे गर्व…
मोनिका और अंकिता के साथ करीब 4 घंटे का समय बिताने का मौका मिला और उस समय उनसे बातचीत कर अहसास हुआ कि हम जैसे रोशन आंखों वालों की दुनिया से कहीं ज्यादा रोशनी है उनकी दुनिया में। मासूमियत, सच्चाई, इंसानियत की रोशनी। ये हमसे कहीं ज्यादा संवेदनशील हैं समाज के प्रति, इंसानियत के प्रति। हम लोग हर दर्जे में इनसे कमतर हैं। पढिय़े मोनिका और अंकिता की रोचक, सुरीली और साहसी कहानी मध्य प्रदेश की पत्रकार ममता यादव की जुबानी….
मिस्टर पुरुष, बदल लो सिंगल रहने वाली लड़की के प्रति सोच
Mamta Yadav : लडकी सिंगल रहती है, जरूर परेशान होगी, मजबूर होगी, पैसों की तंगी होगी। मदद कर देते हैं, कुछ न कुछ तो मिलेगा। इस ‘कुछ न कुछ’ की हद एक लडकी के मामले में कहां तक जा सकती है, इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। दिमागों के जाले वक्त से पहले साफ कर लिये जायें तो सरेबाजार बेपर्दा होने का डर कभी नहीं सतायेगा। या तो जो मुखौटा है उसे कायम रखा जाये या असली थोबडे के साथ घूमिये तथाकथित भैया, अंकल, दोस्त। उन लडकियों को थोडी नहीं, बहुत आसानी होगी जो आपकी नजर में कमजोर बेचारी हैं।