हेमंत शर्मा-
हमारे आमरण संपादक राहुलदेव जी का आज जन्मदिन है। वे मेरे अनन्य हैं। भाषा में शुद्धता के जघन्य हैं। ट्विटर के मूर्धन्य हैं। सौन्दर्य में लावण्य हैं। अवध के सौजन्य हैं। टीवी के चैतन्य हैं।
वे पत्रकारिता के बोधिसत्व हैं। सौन्दर्य के उपासक हैं। शालीनता सौम्यता और स्नेह की प्रतिमूर्ति है। दिल्ली में लखनवी तहज़ीब की ढहती हुई “रेजीडेन्सी’ हैं। ट्वीटरजीवी ऐसे की हर रोज़ ‘आ बैल मुझे मार’ का उदारता से एलान करते है। सेमिनार प्रेमी ऐसे की इस काम के लिए टिम्बकटूं भी जा सकते हैं।
वे मेरे संपादक रहे हैं। अब वृहत्तर परिवार के सदस्य और अग्रज श्रेष्ठ हैं। ज्ञान के लिहाज़ से नहीं पर बालों के रंग के लिहाज़ से ज़रूर मैं उनकी बराबरी कर लेता हूँ। उम्र को बुढ़ापे से जोड़ा जायगा तो संपादक जी के लिए यह गणित गलत है। वे चिर युवा है।सिर्फ़ स्त्री पुरूष नहीं तीसरे जेण्डर में भी वे उतने ही लोकप्रिय है। उनके हक़ों की लड़ाई सेमिनार ही नहीं सड़कों पर भी लड़ते है।
उनकी झक सफेद दाढ़ी और बाल केवल उनके धवल विचारों और घोर तज़ुर्बे का ऐलान हैं। आती हुई अवस्था और “जाते” हुए लोग उन्हें अप्रिय नहीं अपितु प्रिय लगते हैं। संबंधों के लिये उनका आग्रह और निष्ठा ऐसी, कि रिश्तों का व्यापक वृत्त होने का बाद भी निरापद रहने का उनका कौशल अनुकरणीय है। हिंदी के लिये उनका आग्रह ऐसा कि विदेशियों को भी हर तरह के “प्रस्ताव” वे हिंदी में दे डालते हैं और व्यक्तित्व का प्रभाव इतना कि हिंदी से अनजान विलायती भी उनका भाव देख कर ही हां कह डाले।
भाषा को जीवन का अन्तिम सत्य मानने वाले राहुल जी गहरे यार बाज है। आप में उदारता उसी प्रकार भरी है जैसे रज़ाई में रूई। आज ही के दिन 67 बरस पहले जब रसिक शिरोमणि शुक्राचार्य, शनि महराज और धर्म ध्वजा धारक केतु समभाव से बैठे थे तभी आपका जलन्धर में अवतरण हुआ। आप जीवन के हर क्षेत्र में ऊँचाई पसदं करते है। यह सिलसिला आज कल सुनने तक पहुँच गया है।
तो सम्पादकाचार्य ,भाषाचार्य, ट्विटराचार्य और तमाम आचार्य, गुड़गाँव पीठाधीश्वर राहुल देव जी को जन्म दिन की अनेक मंगलकामनाएँ। जीवन के इस उत्तर काल में आपकी चढ़ती जवानी का राज अगर होते तो चरक च्यवन और पॉंतजलि भी नहीं जान पाते। यह राज सिर्फ़ मैं जानता हूँ। इस उतरती उम्र में भी आप नवयौवन में प्रवेश करें। ऐसी महर्षि ययाति और च्यवन से प्रार्थना है। आपके जन्मदिन पर मुझे आज उतना ही हर्ष हो रहा है, जितना बड़े भाई के विवाह, लड़के के जनेऊ और पोते के मुण्डन में होता है। हर्ष के इस अतिरेक में भी मैं आपकी जवानी का राज़ नहीं खोलूंगा।
सादर सविनय आपका
ज़रूरी – हाथ में तरल देख आप भ्रमित न हों। ये हाथी के दॉंत है। खाने पीने के नहीं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार, लेखक व tv9 भारतवर्ष के न्यूज डायरेक्टर हैं।