यशवंत सिंह-
ये उपेंद्र सिंह हैं। मेरे जान पहचान वालों की लिस्ट में सबसे बड़े स्ट्रगलर! इनसे आठ दस साल से परिचय है। साल के एकाध बार ये मिलने आ जाते हैं। इनकी कहानी सुन कर दुखी हो जाता हूँ। उपेन्द्र जबरन कोई बात नहीं बताते। वे अपने दो भारी झोले से भाँति भाँति के प्रिंटिंग के आइटम दिखाते रहते हैं। सैंपल। चाभी का छल्ला कप टीशर्ट ट्रॉफी सब कुछ पर कुछ भी प्रिंट करवा लो। यही काम है इनका। अपनी बाइक से ये पूरा एनसीआर इस चक्कर मारते हैं डेली। आज़मगढ़ में इनके दबंग पट्टीदार ने सारा कुछ कब्जा कर रखा है। फ़र्ज़ी मुक़दमा अलग से ठोक रखा है। वारंट हुआ पड़ा है। चले गये उधर और विरोधी पार्टी देख ले तो जान ले ले। पुराना ख़ानदानी रगड़ा झगड़ा है। इनका परिवार कभी झुका नहीं तो अब प्रतिशोध लिया जा रहा है। हर दरवाज़ा न्याय की गुहार लगा कर ये थक गए तो एक दिन इलाक़ा छोड़ कर दिल्ली भाग लिये। छोटा भाई तनाव झेलते झेलते गाँव में मानसिक रूप से गड़बड़ा गया।
उपेन्द्र भाई के चेहरे पर कोई तनाव दबाव भय निराशा नहीं देख पाता। वे ख़ुद के जीवन की बुरी से बुरी बातें सहज से सहज भाव में बता जाते हैं। वे कहते हुए आपसे कोई ख़ास आशा और उम्मीद भी नहीं करते। वे बस कह जाते हैं। जैसे उनमें और नियति में समझौता हो चुका हो कि कोई किसी के प्रति असंतोष नहीं ज़ाहिर करेगा। कोई गिला शिकवा नहीं रखेगा।
उपेन्द्र जी ने सबसे ग़रीब वाला फ्लैट के लिये लाटरी में अप्लाई किया और निकल आया। आधे पैसे जमा हुए और आधे दे न पाये। एलआईजी फ्लैट न उगलते बन रहा है न निगलते।
एक बार बीमार पड़े तो आनन फ़ानन में घर वाले अस्पताल ले गये। जान बच गई लेकिन इलाज इतना तगड़ा हुआ कि बिल दे पाने में ये असमर्थ हो गये। बंधक बना लिए गए। बैठे रहे बेचारे भीतर। हम लोगों ने कुछ रिपोर्टर चुपके से भेजा अंदर, इनका इंटरव्यू चुपचाप रिकॉर्ड कर जारी किया, हो हल्ला मचाया तो ये बरी किए गए।
उपेन्द्र जी कल भी मिलने आये। नौ दस सालों से वही दुख वही संघर्ष वही दिनचर्या और वही बातें। वे सारे सैंपल फिर से दिखाए। कलम डायरी गिफ्ट किया। भड़ास लिखे दो टीशर्ट ख़ुद से बना कर लाये थे।
मैं सोच में पड़ गया। इस आदमी के जीवन में कभी कोई चमत्कार भगवान कब घटित करेगा। उफ़्फ़! इतना स्ट्रगल! दर्द ही दवा बन गया है। ये मान चुके हैं मेरे हिस्से ऐसा ही जीवन है। उपेन्द्र को देर तक गले लगाने का मन करता रहा लेकिन पहल नहीं कर पाया। बस इतना कह पाया- निराश न होना मित्र, उदास न होना साथी, टूटना मत भाई… कुछ न कुछ कभी न कभी तो थोड़ा सतरंगी उथलपुथल होगा तेरे इस बेहद नीरस और थकाऊ जीवन में!
उपेन्द्र की जेब में पाँच पाँच सौ के दो नोट डालने की कोशिश की। वे दुख बताते हुए कभी नहीं घबराए लेकिन दो नोट डाले जाते देख घबरा गये। भइया मैं प्यार से सब लाया था आपके लिये। आप क़ीमत लगाने लगे।
मैंने आँय बाँय साँय कह कर उन्हें बहलाने फुसलाने की कोशिश की लेकिन मुझे पता था अंदर से मैं ज्यादा घबराया हुआ और कमजोर महसूस कर रहा था।
होंगे बहुत से स्ट्रगलर। लेकिन उपेन्द्र मेरी ज़िंदगी के सबसे कूल स्ट्रगलर हैं। उनके स्ट्रगल का डेप्थ और रेंज इतना गहरा व व्यापक है कि उसमें बहुतों का संघर्ष समा जाए।
उपेन्द्र पत्नी बच्चों के साथ दिल्ली में कहीं रहते हैं। एक दिन उनके घर जाने की सोच रहा हूँ।
उपेन्द्र के जीवन में थोड़ा रस आ जाये, थोड़ा वो मुस्कुरा लें, थोड़ा वो चमत्कृत फील करें, इसके लिए आप क्या कर सकते हैं, सोचियेगा!
मुझसे उनका मोबाइल नंबर ले सकते हैं। और क्या कहूँ!
उपेन्द्र जी का नंबर : 97112 95127
सौजन्य : फेसबुक