Awadhesh Kumar : काटजू के खुलासे का अर्थ… मार्कण्डेय काटजू को मैं अंग्रेजी में कहूं तो पर्सनैलिटी डिसॉर्डर का शिकार मानता हूं। हालांकि वे आक्रामक होकर कई बार अपने तरीके से जो उन्हें सच लगता है बोल जाते हैं, जिनसे अनेक सहमत होना कठिन भी होता है। इस समय उन्होंने एक न्यायाधीश के बारे में जो विस्फोट किया है वह अंदर से हताश और चिंतित कांग्रेस के लिए भारी पड़ गया है। इससे भाजपा सरकार की मदद भी हो गई है, क्योंकि कांग्रेस ने अपनी नासमझ राजनीति से एक महीने के भीतर ही सरकार पर हमला आरंभ कर दिया है तथा संसद को बाधित कर रहे हैं।
अगर काटजू के कथन में सच्चाई है कि जस्टिस अशोक कुमार को मनमोहन सरकार बचाने के लिए भ्रष्ट होेने के बावजूद तरक्की दी गई थी तो इससे पता चलता है कि हमारी पूरी व्यवस्था कितनी क्षरित हो चुकी है। हालांकि यह सवाल पैदा होता है कि काटजू ने उस समय क्यों नहीं अपनी जुबान खोली? हम जानते हैं कि अपने यहां पद रहते हुए सब अपना पद बचाने की चिंता में चुप रहते हैं। उसके बाद वे स्वयं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बने, कुछ नही बोला, उसी सरकार के तहत प्रेस परिषद के अध्यक्ष का पद स्वीकार किया।
काटजू ने इसमें मद्रास उच्च न्यायालय के आठ जजों की टिप्पणी की बात की है, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश लोहाटी द्वारा आईबी से जांच कराने पर आरोप सही पाने का भी खुलासा किया है। ये सब तो रिकॉर्ड पर होंगे। केन्द्र संरकार आईबी की रिपोर्ट देख सकती है। लेकिन एक व्यक्ति ,जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप हों, उन्हें सीधे जिला जज बनाना और फिर मद्रास उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बना दिया जाए तो फिर हम किससे न्याय की उम्मीद करेंगे। हालांकि द्रमुक ने मनमोहन सिंह पर सरकार गिराने की धमकी देकर उसकी प्रोन्नति करवाई इसे साबित करना संभव नहीं होगा। ऐसा कहते हुए काटजू उच्च्तम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों, जो कि बाद में मुख्य न्यायाधीश बने, उनको कठघरे में खड़ा कर दिया है, जो कोलेजियम के सदस्य थे। यह ऐसा वीभत्स सच है जिसके बाद न्यायपालिका अन्यायपालिका लगने लगता है।
अभिषेक मनु सिंघवी की बहुप्रचारित ब्लू फिल्म सरीखी सीडी में उस महिला वकील से पूछना कि कब जज बन रही हो, इस भयावह सच का खुलासा कर देता है। लेकिन प्रोन्नति के बाद भी अगर आईबी तक की जांच में भ्रष्ट आचरण पाया गया तो फिर उसे हटाया जाना चाहिए था। मुझे काफी चीजें याद हैं जब इसे लेकर विवाद आरंभ हुआ था। उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका भी दायर हुई थी, जो अस्वीकृत हो गई। यह अकेली घटना नहीं हो सकती। यह दुर्भाग्य है कि हमारी राजनीति मूल्यों से परे सत्ता के समीकरण तक संकुचित हो गई, प्रशासन कामचोरी और भ्रष्टाचार तथा राजनीतिक नेतृत्व की चमचागिरी का शिकार है और न्यायपालिका भी इसी श्रेणी में। तो फिर देश बचेगा कैसे?
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.