भारत के न्यूज चैनलों में मची नम्बर वन की होड़ और सबसे पहले खबर दिखाने की कोशिशों पर अब पानी फिरने वाला है. मोदी सरकार बहुत जल्दी कुछ ऐसे दिशा टनिर्देश जारी करने वाली है जिससे आतंकी और देश विरोधी घटनओं के सीधे प्रसारण और कवरेज पर रोक लग सकती है.
हालांकि मोदी सरकार और उनके भारी-भरकम मंत्री मीडिया पर सेंसरशिप लागू किये जाने की आशंकाओं को नकारते हैं.लेकिन वित्त और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के भार दबावों की वज़ह से सरकार कुछ विशेष घटनाओं के प्रकाशन और प्रसारण के लिए नियम-कानून बना सकता है. सूचना प्रसारण मंत्री के इस सार्वजनिक बयान पर मीडिया के बड़े-बड़े अलम्बादारों के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी है.
मीडिया, खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कंटेट पर पूर्ववर्ती सरकारों ने भी नियंत्रण लगाने की कोशिशें की गयी थीं. उस वक्त काफी बवाल मचा था. फिर यह कहा गया कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया स्वतः नियमन करे. इसके बाद इंडियन ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन जैसी संस्थाएं भी बनी. इसके बावजूद न्यूज चैनलों की भेड़ चाल अभी तक चालू है. देश की सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि ब्रेकिंग न्यूज और एक्सक्लूसिव न्यूज के नाम पर भारत के चैनल टीवी स्क्रीन्स पर आतंकवादी घटनाओं और मुठभेड़ों की लाइव कवरेज और देश विरोधी तत्तवों का इंटरव्यू दिखाना-चलाना और छापना एक फैशन बन गया है. जिसका फायदा देश विरोधी तत्वों को लाभ मिलता है और सुरक्षा एजेंसियों की योजना में बाधा आ रही है.
यहां गौरतलब यह है कि मीडिया फ्रेंडली वाली छवि बनाने में जुटे राजनाथ सिंह का मंत्रालय खबरों के प्रसारण-प्रकाशन पर सरकारी नियमन के लिए रक्षा मंत्रालय से भी जादा दवाब बना रहा है. भारतीय मीडिया के विश्लेषकों का कहना है कि अगर खबरों के प्रसारण-प्रकाशन पर किसी भी तरह का सरकारी नियमन लागू हुआ तो वो सेंसरशिप का बदला हुआ स्वरूप होगा. हो सकता है कि सरकार उसे पहले सीमित दायरे में लागू करे लेकिन इस बात की क्या गारंटी कि सरकार अपने निहित स्वार्थो के लिए इस नियमन का दुरुपयोग नहीं करेगी.
सबसे अहम बात है कि अरुण जेटली के सार्वजनिक बयान के कुछ अंशों को ही प्रमुखता से प्रकाशित और प्रसारित किया गया है. खबरों पर सरकारी नियमन के बयान को छुपा दिया गया है. टीवी चैनलों पर अभी तक इस भावी सरकारी नियमन पर बहस-मुहाबिसे भी नहीं हो रहे हैं. इंडियन ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड जैसी संस्थाओं को तो जैसे सांप सूंघ गया है.