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दिल्ली

दिल्ली में सरकार गठन को लेकर जारी है भाजपा की ‘तोल-मोल’ की रणनीति

राष्ट्रीय राजधानी में जोड़-तोड़ के जरिए सरकार गठन के मुद्दे पर भाजपा नेतृत्व खासे राजनीतिक ऊहापोह में फंस गया है। इस प्रकरण में पार्टी के नेतृत्व में आपसी मतभेद गहराने लगे हैं। एक धड़े का दबाव है कि विधानसभा चुनाव में दोबारा जाने का जोखिम नहीं लिया जाए। क्योंकि, यहां पर भाजपा के खिलाफ लामबंदी करने के लिए कांग्रेस का नेतृत्व टीम केजरीवाल के साथ हाथ मिला सकता है। ये लोग मिलकर मोदी सरकार और पार्टी के खिलाफ अनर्गल प्रलाप अभियान तेज कर सकते हैं। इसका नकारात्मक असर केंद्र सरकार की छवि पर पड़ने का खतरा। ये लोग स्थानीय मुद्दों को बढ़ा-चढ़ा कर भाजपा के खिलाफ राजनीतिक माहौल खराब करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस जोखिम को देखते हुए ‘जुगाड़’ की सरकार का गठन ज्यादा लाजिमी नहीं रहेगा। लेकिन, पार्टी का यह प्रभावशाली धड़ा सरकार गठन के विकल्प के खिलाफ खड़ा हो गया है। इस गुट को संघ के कई वरिष्ठ नेताओं का साथ भी मिल गया है। इसी के चलते नई सरकार की संभावनाओं को लेकर दुविधा की स्थिति बन गई है। लेकिन, इससे भी तोल-मोल की रणनीति पर एकदम विराम नहीं लगा है।

राष्ट्रीय राजधानी में जोड़-तोड़ के जरिए सरकार गठन के मुद्दे पर भाजपा नेतृत्व खासे राजनीतिक ऊहापोह में फंस गया है। इस प्रकरण में पार्टी के नेतृत्व में आपसी मतभेद गहराने लगे हैं। एक धड़े का दबाव है कि विधानसभा चुनाव में दोबारा जाने का जोखिम नहीं लिया जाए। क्योंकि, यहां पर भाजपा के खिलाफ लामबंदी करने के लिए कांग्रेस का नेतृत्व टीम केजरीवाल के साथ हाथ मिला सकता है। ये लोग मिलकर मोदी सरकार और पार्टी के खिलाफ अनर्गल प्रलाप अभियान तेज कर सकते हैं। इसका नकारात्मक असर केंद्र सरकार की छवि पर पड़ने का खतरा। ये लोग स्थानीय मुद्दों को बढ़ा-चढ़ा कर भाजपा के खिलाफ राजनीतिक माहौल खराब करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस जोखिम को देखते हुए ‘जुगाड़’ की सरकार का गठन ज्यादा लाजिमी नहीं रहेगा। लेकिन, पार्टी का यह प्रभावशाली धड़ा सरकार गठन के विकल्प के खिलाफ खड़ा हो गया है। इस गुट को संघ के कई वरिष्ठ नेताओं का साथ भी मिल गया है। इसी के चलते नई सरकार की संभावनाओं को लेकर दुविधा की स्थिति बन गई है। लेकिन, इससे भी तोल-मोल की रणनीति पर एकदम विराम नहीं लगा है।

यूं तो भाजपा के राजनीतिक हल्कों में यह उम्मीद की जा रही थी कि ब्राजील दौरे से वापस लौटने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस मामले में निर्णायक फैसला कर लेंगे। लेकिन, अब इसके आसार लगातार क्षीण होते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी 17 जुलाई को देर शाम वापस लौट आए थे। वे पार्टी अध्यक्ष अमित शाह सहित संगठन के कई वरिष्ठ नेताओं से विमर्श भी कर चुके हैं। लेकिन, दिल्ली में सरकार गठन को लेकर वे निर्णायक रणनीति नहीं तय कर पाए हैं। इसकी मुख्य वजह यही मानी जा रही है कि इस मुद्दे पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में गहरे मतभेद उभर आए हैं। सूत्रों का दावा है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज व नितिन गडकरी जैसे दिग्गज ‘जोड़-तोड़’ की सरकार बनाने के पक्ष में नहीं हैं। इन लोगों ने इस तरह की सरकार को जोखिमपूर्ण ज्यादा माना है। यही तर्क दिया जा रहा है कि टीम केजरीवाल सहित यहां विपक्ष के तमाम नेता पहले से ही यह प्रचार करने लगे हैं कि सरकार बनवाने के लिए भाजपा का नेतृत्व विधायकों की खरीद-फरोख्त में जुट गया है।

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यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो बिना सबूतों के आरोप लगाने लगे हैं कि कांग्रेस के 6 विधायकों को 20-20 करोड़ रुपए में खरीदने की तैयारी है। इस आशय के पोस्टर भी दिल्ली भर में लगा दिए गए। कांग्रेस के नेता भी आरोप लगा रहे हैं कि धनबल के चलते उनके विधायकों को तोड़ने की साजिश चल रही है। विपक्ष के इन आक्रामक तेवरों को देखते हुए सरकार गठन की जोड़-तोड़ की राजनीति कुछ थम गई है। लेकिन, इस मुद्दे पर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच पोस्टर जंग तेज हो गई है। इन पोस्टरों की भाषा शालीनता की मर्यादाएं भी लांघने लगी है। कई पोस्टरों में भड़काऊ किस्म की बातें लिखी गई हैं। एक ऐसे ही विवादित पोस्टर को लेकर अब कानूनी जंग शुरू हो गई है। दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस विधायकों की शिकायत पर आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता दिलीप पांडे को गिरफ्तार किया। उनके साथ ही दो और लोग गिरफ्तार हुए। भड़काऊ पोस्टर लगाने के आरोप में तीनों को स्थानीय अदालत ने शनिवार को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।
 
केजरीवाल के खास सिपहसालार समझे जाने वाले मनीष सिसोदिया ने पोस्टर प्रकरण में कहा कि उनके कार्यकर्ताओं को तंग करने के लिए एक गहरी राजनीतिक साजिश रची गई है। इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों की भूमिका है। जबकि, कांग्रेस के विधायक आसिफ मोहम्मद का दावा है कि वोट बैंक की राजनीति के लिए ‘आप’ ने सांप्रदायिक दंगा कराने की नीयत से भड़काऊ पोस्टर लगवाए हैं। इन पोस्टरों में उनके नाम का भी उल्लेख किया गया है। कांग्रेसी विधायक ने मांग कर दी है कि इस खतरनाक राजनीतिक साजिश की तहकीकात राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से कराई जाए। क्योंकि, इस साजिश के पीछे भाजपा और टीम केजरीवाल की मिलीभगत हो सकती है। ताकि, कांग्रेस को बदनाम किया जा सके।

उल्लेखनीय है कि पिछले दो-तीन दिनों से राजनीतिक हल्कों और मीडिया में यह चर्चा रही है कि सरकार गठन के लिए भाजपा नेतृत्व कांग्रेस के 8 में से 6 विधायकों को तोड़ने की कोशिश में है। इन लोगों को पटाने के लिए 20-20 करोड़ रुपए का सौदा भी हो गया है। यह भी कहा गया कि हारुन युसूफ और अरविंदर सिंह लवली को छोड़कर बाकी सभी कांग्रेसी विधायक पाला बदलने के लिए तैयार हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली कहते हैं कि भाजपा का प्रचार तंत्र इस तरह की झूठी अफवाहें लगातार फैला रहा है। ताकि, कांग्रेस विधायकों के बारे में भ्रम फैल जाए। लवली ने शनिवार को पार्टी के सभी विधायकों को मीडिया के सामने हाजिर किया। उन्होंने दावा किया है कि उनके विधायक पूरी तरह एकजुट हैं। जबकि, केजरीवाल और भाजपा के लोग इनके बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैला रहे हैं।

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भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं दिल्ली के पूर्व वित्तमंत्री जगदीश मुखी का नाम जोड़-तोड़ की सरकार के नेतृत्व के लिए सबसे आगे बताया गया। मुखी ने मीडिया से कहा भी कि गेंद तो उपराज्यपाल के पाले में है। यदि वे सबसे बड़ी पार्टी के नाते भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता देते हैं, तो पार्टी इस पर निर्णायक विचार जरूर करेगी। प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष सतीश उपाध्याय नई सरकार की संभावनाओं को लेकर इधर लगाता सक्रिय रहे हैं। वे पिछले दिनों पार्टी विधायकों के साथ भी मंत्रणा कर चुके हैं। उन्होंने तो यह भी दावा किया है कि यदि उपराज्यपाल भाजपा को न्यौता देते हैं, तो सरकार गठन करने में कोई दिक्कत नहीं है। इन चर्चाओं के बीच ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने जोड़-तोड़ की सरकार बनवाने की मुहिम के खिलाफत शुरू कर दी। सूत्रों के अनुसार, उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को अगाह किया कि ऐसा कुछ किया गया, तो मोदी सरकार की छवि पर बट्टा लग जाएगा।
 
माना जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी भी मौजूदा स्थितियों में सरकार गठन के खिलाफ हैं। उन्हें लग्ता है कि इससे केंद्र सरकार की छवि पर आंच आ सकती है। क्योंकि, आरोप लगेगा कि सत्ता के लालच में भाजपा का नेतृत्व भी कांग्रेस संस्कृति वाले हथकंडे अपनाने से परहेज नहीं करता। जबकि, राजनीतिक शुचिता के एजेंडे पर पार्टी लोकसभा का बड़ा जनादेश लेकर आई है। ऐसे में, महज दिल्ली सरकार के लिए लोगों के विश्वास को भंग करना अकलमंदी नहीं होगी। कहा जा रहा है कि पिछले दिनों संघ के मुख्यालय नागपुर में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इस संदर्भ में विमर्श किया है। नागपुर में शाह ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से लंबी चर्चा की। संघ नेतृत्व ने दिल्ली सरकार के संदर्भ में क्या सलाह दी है? इसके बारे में औपचारिक तौर पर भाजपा के नेता कोई खुलासा करने को तैयार नहीं हैं। लेकिन, सूत्रों का दावा है कि संघ के कई बड़े नेता जोड़-तोड़ के जरिए सरकार बनाने के विकल्प को अच्छा नहीं मानते। उनकी सलाह है कि दो-चार महीने बाद नया चुनाव कराने का विकल्प ज्यादा ठीक रहेगा।

लोकसभा में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली का बजट पेश किया। इसमें कई ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो कि लोक लुभावन शैली के हैं। वित्त मंत्री ने आम जनता को राहत देने के लिए बिजली में भारी सब्सिडी का प्रावधान किया है। ताकि, बिजली की बढ़ी दरों का बोझ आम आदमी पर न पड़े। ऐसे में, इस बजट को चुनावी बजट भी कहा जा रहा है। पार्टी के अंदर चर्चा यह भी है कि जल्दी ही विधानसभा भंग करने का फैसला हो सकता है। उल्लेखनीय है कि यहां पर 17 फरवरी से राष्ट्रपति शासन लागू है। ऐसे में, सवाल है कि क्या भाजपा नेतृत्व हरियाणा और महाराष्ट्र के साथ दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव कराना चाहेगा? इसको लेकर भी अभी निर्णायक रणनीति नहीं बनी। क्योंकि, अमित साह की लॉबी अभी भी ‘तोल-मोल’ की रणनीति की थाह लेने में लगी है। उसकी कोशिश है कि यदि कम से कम राजनीतिक जोखिम में भाजपा की सरकार बन सकती है, तो फिर इस मौके को क्यों खोया जाए? भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को भी हैरानी है कि इस मामले में प्रधानमंत्री मोदी की क्या मंशा है? वे इसकी भनक भी लगने नहीं दे रहे। ऐसे में, पार्टी के अंदर इस मसले पर घोर दुविधा की स्थिति बरकरार है। पार्टी का कोई वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर दो टूक अंदाज में खुलकर बात करने को भी राजी नहीं दिखाई पड़ता।

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लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।

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