Connect with us

Hi, what are you looking for?

बिहार

औरंगाबाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथियों ने लंगूराही गांव की मदद के लिए बढ़ाया हाथ

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहयोग से गाँव में लगाया गया चापाकल, साफ़ पानी पीने को लेकर तरस रहे थे लोग… औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड से 13 किलोमीटर दूर कई पहाड़ियों के बीच बसा अति नक्सल प्रभावित लंगुराही गांव आज भी बुनियादी सुविधा के लिये तरस रहा है। सीआरपीएफ और जिला पुलिस के द्वारा चलाये जा रहे सामुदायिक पुलिसिंग का लाभ इन्हें तो मिलता ही है परन्तु वो भी उंट के मुंह में जीरा के समान है। ग्रामीण सुरेन्द्र सिंह भोक्ता बताते हैं कि आज तक इनके गांव में प्रशासन का एक भी अदना कर्मचारी नहीं आया। ऐसे में स्वास्थय, शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं से वंचित इस गांव के लोगों के जीवन में व्याप्त कष्ट को आसानी से समझा जा सकता है।

<p>इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहयोग से गाँव में लगाया गया चापाकल, साफ़ पानी पीने को लेकर तरस रहे थे लोग... औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड से 13 किलोमीटर दूर कई पहाड़ियों के बीच बसा अति नक्सल प्रभावित लंगुराही गांव आज भी बुनियादी सुविधा के लिये तरस रहा है। सीआरपीएफ और जिला पुलिस के द्वारा चलाये जा रहे सामुदायिक पुलिसिंग का लाभ इन्हें तो मिलता ही है परन्तु वो भी उंट के मुंह में जीरा के समान है। ग्रामीण सुरेन्द्र सिंह भोक्ता बताते हैं कि आज तक इनके गांव में प्रशासन का एक भी अदना कर्मचारी नहीं आया। ऐसे में स्वास्थय, शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं से वंचित इस गांव के लोगों के जीवन में व्याप्त कष्ट को आसानी से समझा जा सकता है।</p>

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के सहयोग से गाँव में लगाया गया चापाकल, साफ़ पानी पीने को लेकर तरस रहे थे लोग… औरंगाबाद जिले के मदनपुर प्रखंड से 13 किलोमीटर दूर कई पहाड़ियों के बीच बसा अति नक्सल प्रभावित लंगुराही गांव आज भी बुनियादी सुविधा के लिये तरस रहा है। सीआरपीएफ और जिला पुलिस के द्वारा चलाये जा रहे सामुदायिक पुलिसिंग का लाभ इन्हें तो मिलता ही है परन्तु वो भी उंट के मुंह में जीरा के समान है। ग्रामीण सुरेन्द्र सिंह भोक्ता बताते हैं कि आज तक इनके गांव में प्रशासन का एक भी अदना कर्मचारी नहीं आया। ऐसे में स्वास्थय, शिक्षा एवं अन्य सुविधाओं से वंचित इस गांव के लोगों के जीवन में व्याप्त कष्ट को आसानी से समझा जा सकता है।

ग्रामीण विनय भोक्ता बताते हैं कि आजादी के बाद भी ऐसा लगता है कि हम आजाद नहीं है क्योंकि जीने के लिये जिन साधनों का होना अनिवार्य होता है वो आजतक इन्हें नसीब नहीं हो सका है। सबसे बड़ी परेशानी उस वक्त हो जाती है जब नक्सली आते हैं और जबरन इनसे खाने की मांग करते हैं। यहां के बच्चे स्कूल न होने के कारण पढ़ाई से वंचित हैं। हालाकि ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुये औरंगाबाद पुलिस कप्तान बाबू राम ने इनकी दशा को सुधारने की पहल तो की है और जिला पदाधिकारी को यहां की समस्याओं को पत्र के माध्यम से अवगत कराया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह गाँव १०० घरों  की आबादी वाला गाँव है, लेकिन यहां पीने के पानी को लेकर चापाकल (हैंडपंप) तक नहीं था. यहाँ के लोग एक कुआँ के भरोसे जीवन यापन कर रहे थे. यदि कोई जंगली जानवर इस कुआँ में मर जाता है तो तो दो तीन दिन तक लोग पानी नहीं पी सकते थे. गाँव की दशा को देखकर औरंगाबाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एसोसिएशन के नेतृत्व में एक चापाकल लगाया गया ताकि गाँव वालों को साफ़ पानी पीने को मिले. इलेक्ट्रॉनिक मिडिया एशोसिएशन [एमा] के अध्यक्ष प्रियदर्शी किशोर, उपाध्यक्ष अभिनेश कुमार सिंह, संरक्षक संजय सिन्हा ने खुद उपस्थित रहकर चापाकल लगवाया. संगठन के प्रवक्ता सह मीडिया प्रभारी धीरज पाण्डेय ने कहा कि समय के साथ हर जगह विकास हो रहा है, मगर लंगूराही गाँव जो बीच जंगलों में बसा है, वहां विकास आज तक वहां नहीं पहुंचा. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने चापाकल लगवाकर सामाजिक दायित्व का निर्वहन किया है. वहीँ इस प्रयास की प्रशंसा करते हुए औरंगाबाद पुलिस कप्तान बाबू राम ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया औरंगाबाद का सामाजिक दायित्व देखकर मन गदगद हो जाता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement