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उत्तर प्रदेश

टिकट कटने से नाराज वरिष्ठ पत्रकार उपमन्यु ने बसपा से नाता तोड़ा

हुजन समाजवादी पार्टी से पहले मथुरा लोकसभा प्रत्याशी बनाए गए पंडित कमलकांत उपमन्यु ने तमाम गंभीर आरोप लगाते हुए पार्टी का साथ छोड़ दिया है. उन्होंने कहा कि उनकी टिकट कटने से ब्राह्मण समाज में नाराजगी है.

टिकट कटने से आहत छावनी परिषद के पूर्व वाईस चेयरमैन कमलकांत उपमन्यु ने आज बसपा की सक्रिय राजनीति से संन्यास भी ले लिया.

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पत्रकारों से हुई बातचीत में उपमन्यु ने कहा कि, मुझे जिले के सभी क्षेत्रों से सभ्रांत नागरिकों के विशेष कर अपनी समाज के जिम्मेदार लोगों के फोन आ रहे हैं. सभी का एकमत कहना है.. बसपा ने ब्राह्मण को टिकट दी फिर काट भी दी.. क्यों इससे ब्राह्मण समाज का अपमान हुआ है और उसके सम्मान को ठेस पहुंची है. इसका उत्तर में आज तक वह लोगों को नहीं दे पा रहे हैं.

साथ ही उन्होंने कहा कि, मजे की बात यह भी है कि जो बसपा प्रत्याशी घोषित किए गए हैं उन्होंने आज तक ना मुझसे संपर्क किया है. इसलिए मेरा बसपा की सक्रिय राजनीति में रहने का अब कोई औचित्य शेष नहीं रहा और मैने बसपा की सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय लिया है.

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मेरा राजनीतिक कैरियर 1998 से शुरू हुआ जब मैं छावनी परिषद का पार्षद चुना गया था. इसके बाद निर्विरोध वाईस चेयरमैन और छावनी परिषद सिविल एरिया और फाइनेंस कमेटी का भी अध्यक्ष र्निविरोध चुना गया था. 1999 में मुझे बसपा के संस्थापक अध्यक्ष मान्यवर कांशीराम साहब एवं बहन कुमारी मायावती ने मथुरा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया था उस समय ट्राई एंगल में कुछ हजार वोटों से हार गया था.

ठीक 25 साल बाद बहन जी ने घर से बुलाकर मुझे पुनः मथुरा संसदीय क्षेत्र से 24 के चुनाव में लोकसभा प्रत्याशी बनाया. एक हफ्ते में मैंने पूरे जिले में सघन दौरा करके एक अलख जगाकर माहौल क्रिएट किया, किंतु अचानक कुछ लोगों को मैं अखरने लगा तो ऊपर गलत बातें बताकर मेरी टिकट कटवाई गई. मैने फिर भी पार्टी के निर्णय को शिरोधार्य किया किंतु उस दिन से आज तक जो पार्टी प्रत्याशी घोषित हुए हैं उन्होंने मुझसे दूरभाष तक पर संपर्क नहीं किया. पार्टी के जो लोग कैंडिडेट को लेकर जगह-जगह सभाएं कर रहे हैं उन लोगों ने भी मुझसे पार्टी प्रत्याशी के लिए कोई बात नहीं की. इतना ही नहीं जो लोग पार्टी के संस्थापक हैं उनको भी संपर्क नहीं किया जा रहा है और उनकी उपेक्षा की जा रही है इसलिए मुझे लगता है कि मुझे बसपा की सक्रिय राजनीति से दूर रहकर सन्यास ले लेना चाहिए.

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