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मोदी के डर से ‘तहलका’ समेत कोई अखबार, पत्रिका, चैनल यह स्टोरी करने को तैयार नहीं हुआ : राणा अय्यूब

लखनऊ । गुजरात के अनेक वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों तथा राजनेताओं के स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित बहुचर्चित पुस्तक ‘गुजरात फ़ाइल्स’ की लेखिका राणा अय्यूब ने कहा कि अगर इस किताब में सामने आई बातों की निष्पक्ष जांच करके कार्रवाई हो तो देश की राजनीति बदल जाएगी। लेखिका जनचेतना तथा अनुराग ट्रस्ट की ओर से आयोजित ‘गुजरात फ़ाइल्स’ पर चर्चा के कार्यक्रम में बोल रही थीं। युवा पत्रकार राणा अय्यूब ने 2010 में करीब 8 महीने तक अपनी पहचान बदलकर की गई जांच में गुजरात के ऐसे अनेक वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बयान गुप्त रूप से रिकॉर्ड किए थे जो 2001 से 2010 के बीच महत्वपूर्ण पदों पर थे।

लखनऊ । गुजरात के अनेक वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों तथा राजनेताओं के स्टिंग ऑपरेशन पर आधारित बहुचर्चित पुस्तक ‘गुजरात फ़ाइल्स’ की लेखिका राणा अय्यूब ने कहा कि अगर इस किताब में सामने आई बातों की निष्पक्ष जांच करके कार्रवाई हो तो देश की राजनीति बदल जाएगी। लेखिका जनचेतना तथा अनुराग ट्रस्ट की ओर से आयोजित ‘गुजरात फ़ाइल्स’ पर चर्चा के कार्यक्रम में बोल रही थीं। युवा पत्रकार राणा अय्यूब ने 2010 में करीब 8 महीने तक अपनी पहचान बदलकर की गई जांच में गुजरात के ऐसे अनेक वरिष्ठ पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के बयान गुप्त रूप से रिकॉर्ड किए थे जो 2001 से 2010 के बीच महत्वपूर्ण पदों पर थे।

उन्होंने गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी स्टिंग किया था। इन बयानों के आधार पर राणा ने गुजरात दंगों, इशरत जहां तथा अन्य फर्जी एन्काउंटरों, गृहमंत्री हरेन पांड्या की हत्या आदि में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके विश्वासपात्र मंत्री अमित शाह की संलिप्तता का दावा किया है। अय्यूब के अनुसार उन्होंने ‘तहलका’ की ओर से यह स्टिंग ऑपरेशन किया था लेकिन मोदी के डर से उनकी अपनी पत्रिका सहित कोई अखबार, पत्रिका या टीवी चैनल यह स्टोरी करने को तैयार नहीं हुआ। उन्होंने इसे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए एक गंभीर चिंताजनक स्थिति बताया। उन्होंने कहा कि देश में बहुत से पत्रकार सच्चाोई को सामने लाने की जद्दोजहद में लगे हैं और उन्हें सत्ता और रसूखदार लोगों के दबाव और दमन का सामना करना पड़ रहा है।

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यह किताब इस तथ्य को भी सामने लाती है कि गुजरात में दलित उत्पीड़न और भेदभाव कोई नई बात नहीं है बल्कि नीचे से लेकर ऊपर तक समाज और प्रशासन के पूरे ढांचे में मौजूद है। पुस्तक में शामिल साक्षात्कारों में कई दलित व पिछड़े अफसर अपने साथ भेदभाव की शिकायत करते हैं और यह भी कहते हैं कि सरकार ने उनसे अपने गलत काम करवाने के बाद उन्हें किनारे कर दिया।

राणा अय्यूब ने अपनी पुस्तक के कुछ अंशों का पाठ किया और स्टिंग के दौरान के अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए। उन्होंने कहा कि वे अपनी तमाम ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग जांच के लिए बनी किसी एसआईटी को सौंपना चाहती हैं ताकि सही या गलत का फैसला हो सके और न्याय मिल सके। राणा ने कहा कि सरकारें न्याय करने के प्रति गंभीर ही नहीं हैं। जो काम उन्होंने अकेले किया उसे सीबीआई के 70 अफसरों की टीम नहीं कर सकी इसकी क्या वजह है? गुजरात में आतंकवाद के आरोपों में पकड़े गये लोगों की चार्जशीट में शुरुआती 22 पैराग्राफ हूबहू एक जैसे हैं जो सीधे फर्जी होने का साक्ष्य देते हैं लेकिन किसी जांच टीम को यह बात क्यों नहीं दिखाई देती। उल्लेखनीय है कि गुजरात में फ़र्ज़ी मुठभेड़ों पर राणा अय्यूब की स्टोरी को ‘आउटलुक’ पत्रिका ने दुनिया की 20 सबसे ज़्यादा असर डालने वाली मैग्ज़ीन स्टोरीज़ में शामिल किया था। राणा की स्टोरी के आधार पर शुरू हुई जांच से ही गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह को जेल हुई थी और तड़ीपार किया गया था।

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इससे पहले लेखिका का परिचय कराते हुए सत्यम ने कहा कि इस किताब में उजागर तथ्यों पर कोई सवाल उठा सकता है और ज़रूरी है कि इनकी निष्पक्ष जांच कराई जाए। लेकिन राणा अय्यूब का साहस और हर खतरा उठाकर सच को सामने लाने की उनकी ज़िद को सलाम किया जाना चाहिए। आज के वक़्त में इसकी ज़रूरत और महत्व और भी ज़्यादा है। यह किताब न केवल गुजरात में हुई घटनाओं के पीछे का काला सच बयान करती है बल्कि यह उन लोगों की कार्यप्रणाली और सोच का एक दस्तावेज़ भी है जिनके हाथों में आज देश की बागडोर है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कथाकार रविन्द्र वर्मा ने की। उन्होंने कहा कि आज देश में राणा अय्यूब जैसे बहुत से पत्रकारों की ज़रूरत है जो जोखिम उठाकर सच्चाई को सामने लाएं। लेखक अजय सिंह, लविवि के उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. आब्दी, नाइश हसन, संदीप शर्मा, अनहद, लता कुमारी, दीपक कबीर, सुशीला पुरी, अरविन्द राज स्वरूप सहित अनेक श्रोताओं ने राणा अय्यूब से सवाल किये और उनके साहस की सराहना की।

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इससे पहले वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने विस्तारित जनचेतना बुकशॉप का पुनरारंभ किया। उन्होंने कहा कि जनचेतना और अनुराग लायब्रेरी की नई शुरुआत से लखनऊ को एक ऐसा सांस्कृतिक केन्द्र मिला है जिसकी बहुत ज़रूरत थी। इस अवसर पर लेखक शिवमूर्ति, प्रो. रमेश दीक्षित, देवेन्द्र, शीला रोहेकर, कात्यायनी, विजय राय, यादवेंद्र, अनिल श्रीवास्तव, असगर मेहदी, रफत फातिमा, राजीव यादव, आशीष सिंह, अरुण सिंह, सहित नगर के अनेक लेखक, बुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी, छात्र-युवा और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।

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