शाहरुख खान की नई फिल्म ‘रईस’ को न देखने के लिए सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी ग्रुपों ने मुहिम शुरू कर दी है. ये ग्रुप लोगों को फेसबुक, ट्वीटर, ह्वाट्सएप आदि माध्यमों से संदेश भेज कर बता रहे हैं कि इस फिल्म के जरिए शाहरुख खान एक आतंकवादी को हीरो के रूप में पेश कर रहे हैं. भड़ास के पास पहुंचे ऐसे ही एक संदेश को नीचे दिया जा रहा है…
”शाहरुख़ खान की फिल्म रईस एक रियल लाइफ आतंकवादी अब्दुल लतीफ़ की कहानी है। इससे पहले की आप इस फिल्म को देखने का मन बनाये ये अब्दुल लतीफ़ कौन था ये जान लीजिए। अब्दुल लतीफ़ का जन्म अहमदाबाद के कालूपुर नाम के मुस्लिम बाहुल इलाके में हुआ। अब्दुल लतीफ़ के 6 भाई बहन थे। इतने सारे भाई बहन होने की वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ खास नही थी। इसी कारन अब्दुल लतीफ़ पेसो की लालच में दारु बेचने वाले अल्ला रखा से रिश्ता जोड़ लिया। अब दोनों मिल कर दारु की स्मगलिंग किया करते थे । जिससे अब्दुल लतीफ़ ने खूब पैसे बनाये। इतने पेसो से अब्दुल लतीफ़ का मन नही भरा।
1990 के दशक में अब्दुल लतीफ़ ने पाकिस्तान में जाकर दाऊद इब्राहिम से एक मुलाकात की। जिसमे दोनों के बीच साथ में मिलकर धंधा करने और भारत में आतंक फैलाने का फैसला हुआ। अब दाऊद इब्राहिम का साथ मिलने पर अब्दुल लतीफ़ गुजरात में आतंक का पर्याय बन चुका था। अब्दुल लतीफ़ की गैंग पुरे गुजरात में चारो और मर्डर हफ्तावसूली किडनैपिंग ड्रग्स चरस के लिए जानी जाने लगी। इसी बीच अब्दुल लतीफ़ को कांग्रेस पार्टी का साथ मिला और मुस्लिम बहुल इलाके कालूपुर में कारपोरेशन के चुनावो में 5 सीट जीत गया। इसके बाद लतीफ़ ने 1993 बॉम्बे ब्लास्ट के लिए पेसो की फंडिंग की जिसमे 293 लोग मारे गए और बाद में भी कई ऐसे आतंकी काम किये। लेकिन 1995 में गुजरात में लतीफ़ + कांग्रेस के गठबंधन से त्रस्त जनता ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता पे बिठाया। जिसके बाद आतंकवादी लतीफ़ को 1997 में एनकाउंटर करके भाजपा ने गुजरात को आतंक से मुक्त करवाया।
अब मित्रों आप ही सोचिये ये शाहरुख़ खान पाकिस्तान और दाऊद के दोस्त आतंकवादी लतीफ़ को हीरो की तरह क्यों पेश करके जनता को भ्रमित करने में लगा हुआ है। शाहरुख़ खान का पाकिस्तान प्रेम किसी से छुपा हुआ नही है । इस लिए वो फिल्म में एक आतंकवादी को इस तरीके से पेश करेगा जैसे की ये आतंकी कोई रॉबिनहुड हो।
अब फैसला आप का हैं मित्रों कि आप एक आतंकवादी जिसने हजारो की हत्याएं करवाई उसको हीरो के रूप में देखकर आतंकवादियो को हीरो बनाने वालो की हिम्मत बढ़ाना चाहते हो की इस फिल्म का संपूर्ण बहिस्कार करके आतंकवादियो को हीरो के रूप में पेश करने वालो को सबक सिखाना चाहते हो। फिल्म का संपूर्ण बहिष्कार करें।ये सन्देश 25 जनवरी को फिल्म रिलीज होने से पहले हर भारतीय तक पहुंचाये। जय हिंद।”
धीरज
December 16, 2016 at 12:48 am
माने कि वामपंथी जरूर जायें देखने..?