Awadhesh Kumar : लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जब पद के लिए निर्वाचित हुई थीं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि हमारी अध्यक्ष केवल मित्र नहीं सुमित्र हैं। सामान्यतः यह धारणा भी है कि सुमित्रा जी आम कार्यकर्ताओं, नेताओं सबसे सुह्रदयता से व्यवहार करती हैं। हालांकि उनको निकट से जानने वाले कई लोग इसके विपरीत बात भी करते हैं, पर राजनीति में ऐसा होता है इसलिए इसे हम यहां छोड़ दें। हाल में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ सुमित्रा महाजन के घर आये। जब वे आए तो उन्होंने पूछा कि ‘सुमित्रा जी हैं?’ उनसे सुमित्रा जी के सहयोगियों ने पूछा कि ‘आपका नाम क्या है?’ जाखड़ साहब ने कहा कि ‘जी बलराम जाखड़।’ फिर पूछा गया कि ‘आपने पहले से समय लिया है?’ जाखड़ साहब ने कहा कि ‘हां मेरी उनसे बातचीत हुई है।’ तो ठीक है बैठिए। सुमित्रा जी अभी एक जरुरी मीटिंग में हैं। वे बैठ गए।
काफी देर बाद सुमित्रा महाजन किसी काम से बाहर आईं तो देखीं कि जाखड़ साहब बाहर बैठे हैं। उन्होंने पूछा कि ‘आप यहां क्यों बैठे हैं?’ जाखड़ साहब ने कहा कि मुझे कहा गया कि आप बाहर बैठिए, सुमित्रा जी एक मीटिंग में हैं। सुमित्रा जी अपने सहयोगियों पर उबल पड़ीं, उनसे माफी मांगी, फिर अंदर ले गईं। यह सामान्य समझ की बात है कि बलराम जाखड़ बिना पहले से बात किए और समय निर्धारित किए तो वहां गए नहीं होंगे। वे सबसे ज्यादा समय तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे हैं। मध्यप्रदेश के राज्यपाल रहे हैं। संभव है सुमित्रा जी ने ही कोई सलाह लेने के लिए उनसे संपर्क किया हो और उन्होंने कहा हो कि मैं ही आ जाता हूं। या उन्होंने स्वयं कुछ सलाह देने का सोचा हो और फोन पर बात किया हो। लेकिन यदि मध्यप्रदेश के नेता और लोकसभा अध्यक्ष के सहयोगी बलराम जाखड़ को नहीं पहचानते तो इसे क्या कहा जाए? ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है। यह एक प्रतिनिधि घटना के तौर पर मैं आपके सामने रख रहा हूं।
सुमित्रा महाजन ने अपने गृह क्षेत्र से दो सहयोगी लाये हैं- श्री पंकज क्षीरसागर एवं श्री हरीश कश्यप। श्री पंकज क्षीरसागर नई दुनिया के विपणन विभाग में थे। श्री हरीश कश्यप भी सिटी रिपोर्टर के रुप में काम कर चुके हैं। कहा जाता है कि सुमित्रा जी के पुत्र मिलिंद महाजन उनका सारा काम देखते हैं। चूंकि नरेन्द्र मोदी ने रिश्तेदारों को सहयोगी रखने का निषेध किया हुआ है, इसलिए उन्होंने इन दोनों को वहां लाया और इनको सरकारी ओहदा दे दिया है। कई लोग इनसे असंतुष्ट होकर वापस होते हैं।
सुमित्रा जी के पुराने सहयोगी अमोल हैं जो पिछले लंबे समय से साथ रहे हैं। उनको इन दोनों से नीचे रखा हुआ है। सुमित्रा जी से लंबे समय से संबंध रखने वाले बताते हैं कि अमोल इस कारण असंतुष्ट रहते हैं कि मैं इतने दिनों से हूं तो मुझे ऐसी जगह नहीं दी गई। इसलिए वे सामान्यतः हस्तक्षेप नहीं करते। कई घटनाओं को चुपचाप देखते हैं। वे तो बलराम जाखड़ को पहचान ही गए होंगे, पर उनसे उपर के लोग यदि कोई फैसला कर रहे हैं तो वे क्यों उसमें बोलने जाएं। इस कारण वहां ऐसी घटनाएं होतीं रहतीं हैं। जरा सोचिए, यदि बलराम जाखड़ जैसे देश के बड़े नेता के साथ ऐसा हुआ तो फिर आम लोगांे के साथ वे कैसा व्यवहार करते होंगे?
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार के फेसबुक वॉल से.