जोधपुर। राजस्थान के कोरोना माहौल में राज्य सरकार की नाकामियों को छुपा कर गुणगान करने वाला कवरेज करने वाले चुनिंदा बड़े मीडिया संस्थानों के लिए भंयकर तंगहाली में भी सरकारी खजाना खोल दिया गया है। अधिकतर स्वायत शाषी एवं सरकारी संस्थानों के साथ साथ डीआईपीआर में राज्य के प्रमुख अखबार राजस्थान पत्रिका एवं दैनिक भास्कर के साथ साथ दो तीन चहेते इलेक्ट्रोनिक मीडिया संस्थानों के बिलों को करंट देकर दौड़ाया जाना शुरू कर दिया गया है जबकि बाकी बचे छोटे मोटे सभी संस्थानों के बकाया बिलों को लाल बस्तों मे समेट कर रखने के मौखिक निर्देश दिये गये हैं।
इससे पहले आपको बता दें कि राजस्थान में तकरीबन 191 छोटे मोटे जिला स्तर के दैनिक अखबार एवं करीबन 700 साप्ताहिक पाक्षिक अखबार हैं जिनको डीआईपीआर ने राजकीय विज्ञापनों के लिए मान्यता दे रखी है। इन अखबारों को विशेष मौकों पर साल के गिनती के विज्ञापन दिये जाते हैं। लेकिन सरकार के तमाम डिस्पले विज्ञापन बड़े चुनिन्दा एवं चहेते चैनल अखबारों को ही नियमित जारी किए जा रहे हैं जिन पर करोड़ों का खर्च किया जा रहा है।
सूत्रों ने बताया कि चूंकि डीएवीपी से सभी मीडिया संस्थानों को तकरीबन एक साल से नियमित भुगतान नहीं हो रहा है वहीं अब लाकडाउन के कारण निजी एवं प्राइवेट विज्ञापनों का टोटा बना हुआ है। ऐसे में 20 से 24 पेज में निकलने वाले पत्रिका व भास्कर जैसे अखबार 12 से 16 पेज पर आ गये है। ऐसी स्थिति में तंगी के शिकार इन मीडिया हाउसों ने राज्य सरकार की शान में कसीदे पढना जारी रखा हुआ है। इसी का परिणाम है कि राज्य सरकार के निर्देशों पर प्रमुख आईएएस अफसरों ने इन चुनिन्दा मीडिया संस्थानों को लाखों-करोड़ों में भुगतान करवाना शुरू कर दिया है।
डीआईपीआर में तो आमजन की आवाजाही पर रोक होने के बावजूद भी इन बड़े हाउसों के कार्मिक अपने बिलों को प्रोसेस में डालने व नये बिल थमाने के लिए दिन भर घूमते नजर आते हैं। डीआईपीआर की लेखा शाखा की अंदरखाने यह खबर है कि कोरोना के मद्देनजर आफिस नहीं आ सकने वाले कुछ कार्मिकों को कारण बताओ नोटिस भी थमाये गये हैं। जबकि इसी डीआईपीआर में जिला स्तर के दैनिक एवं दूसरे छोटे अखबारों के लाखों के बिल लम्बे अर्से से बकाया पड़े हैं, धूल फांक रहे हैं।
इसी तरह पंचायत राज विभाग के जयपुर में बैठे वरिष्ठ अधिकारी भी जिला स्तरीय अधिकारियों पर लगातार पत्रिका भास्कर अखबारों के बकाया विज्ञापन बिलों की डिटेल बना कर तत्काल भुगतान करने की ताकीद कर रहे हैं। लगातार मानिटरिंग भी कर रहे है। कई जगहों पर बजट नहीं होने से आवश्यक फण्ड भी मांगा जा रहा है। जबकि सीनियर आफिसर यह दबाव बना रहे हैं कि किसी मद में पैसा हो, इन बिलों का भुगतान कर दिया जाये।
इस तरह राजस्थान में मीडिया प्रेमी माने जाने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शासन में चंद चहेते मीडिया संस्थानों को फलीभूत एवं पनपाने का काम अंदरखाने चल रहा है तो दूसरी तरफ छोटे मीडिया संस्थानों को तंगहाली के बुरे दौर में किसी न किसी तरह से और अधिक संकट में डालने की कोशिशें की जा रही हैं।
महावीर जैन
पत्रकार
जोधपुर- मो. 9413306857