Abhishek Srivastava-
कुछ साल पहले रणदीप हुड्डा की ‘लाल रंग’ देख कर मेरी धारणा बनी थी कि कलाकार को यदि उसकी भाषा और संस्कृति से जुड़ी पटकथा मिल जाय, तो वो अपना सर्वोत्कृष्ट दे सकता है। पंकज त्रिपाठी की ‘कागज़’ देख के ये धारणा फंस गई है। पंकज ने अपने करियर का सबसे बुरा इसमें परफॉर्म किया है। तकरीबन नकली और भौंडा।
लंबे समय से मैं मानव कौल को तौल रहा था। ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ देखने के बाद इनकी प्रतिभा का मैं कायल हो गया था, लेकिन ‘नेल पॉलिश’ देख कर यक़ीनन कह सकता हूँ कि हिंदी में इरफ़ान की कमी मानव कौल पूरी करेंगे। मलयाली में इरफान के संस्करण फहद फासिल पर मैं पहले लिख चुका हूँ। इस साल फहद की नई फिल्म ‘मालिक’ का इंतज़ार है।
अब कुछ और नई हिंदी फिल्मों की बात। AK vs AK क्यों बनाई गई है, समझ नहीं आया। एक बार नींद तोड़ के देखी जा सकती है। कूली नंबर वन की रिमेक बहुत घटिया है। संजू बाबा की तोरबाज़ चाटने वाली है, लेकिन अच्छे प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए ठीक है। दुर्गामती के बारे में कुछ नहीं कहूंगा। भूमि पेडनेकर ने इस फ़िल्म को वैसे ही किया है जैसे पंकज त्रिपाठी ने कागज़। लक्ष्मी बम फुस्सी निकली।
दक्षिण भारतीय सिनेमा में Paava Kadhaigal, Jallikattu दोनों ज़बरदस्त हैं। Soorarai Pottu और Maara फुल मनोरंजन हैं। IITKrishnamurthy प्यारी सी हल्की फ़िल्म है। कोरियन फ़िल्म The Call और Sound of Metal बेहतरीन फिल्में हैं, दूसरी वाली थोड़ा स्लो बर्न है। जॉर्ज क्लूनी की The Midnight Sky को देखना अनिवार्य है, इसे आप मिस नहीं कर सकते। इस बीच सबसे अच्छी फिल्म कोई मुझसे पूछे अंग्रेज़ी में, तो मैं A Call to Spy का नाम लूंगा। दक्षिण भारतीय भाषाओं में Andhaghaaram सबसे ताज़गी भरी रही।
इधर बीच मैंने इन सब के अलावा कुछ पुरानी फिल्में भी देखी हैं। इनमें मेक्सिकन ड्रग कार्टेल पर बनी 2018 की फ़िल्म The Mule में मज़ा आया। सिरीज़ कोई नहीं देखी क्योंकि बीते महीने वक़्त कम था।
पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.