दीपक कबीर-
अनामिका जी मे एक स्टाइल है..वो जिसे हम “अदा” कहते हैं। इनका स्त्रीवाद ..तरक़्क़ीपसन्द खेमों के प्रगतिशील डिस्कोर्स को छूता हुआ भी उससे अलग है, ये कई भंगिमाओं, प्रतीकों या कार्यों को पितृसत्ता के दमन के रूप में न देखकर बल्कि कई बार उन्हें “स्त्रीत्व की विशेष उपलब्धि” के रूप में देख कर उसे खारिज करने की बजाय उसे सेलिब्रेट करने की हिमायत करती हैं. खुद भी बोल्ड होकर करती हैं।
करीब 15 बरस पहले सरापा काले कपड़ों में मंच पर बैठी स्त्री को बाहें पीछे कर भरी ऑडियंस में बेझिझक एक लंबी -स्लो अंगड़ाई लेते हुये देख मैं चौंक गया था कि
ये कौन हैं, उसी दिन सुनी थी ..चुटपुटिया बटन और कई कविताएं। शाम चाय पर ही बात हुई..दोस्ती हुई
बाद में अनामिका हमारे भोपाल के राष्ट्रीय कार्यक्रम “बढ़ते कदम” में शामिल हुईं और 2012 के दिल्ली में हुये “मुलाकात” कार्यक्रम में।
एक बार उनकी कविताओं पर जेंडर दृष्टिकोण से उन्हें स्त्री विरोधी साबित करते हुये तीखी बहसें भी शुरू हुईं, उससे वो ज़रा आहत थीं..
वैसे भी तार्किक आलोचना और मिटा देने या ध्वंस कर देने जैसी भिन्न प्रवृत्तियों का फ़र्क़ अब मनुष्यों में कहां बचा तो साहित्य कैसे अछूता रहे।
बीच के कई बरसों अनामिका जी से फोन पर बात हुई तो जैसे आइसोलेटेड सी महसूस कर रही थीं। पिछले कुछ बरसों से कोई संपर्क नहीं था..
मगर अचानक साहित्य अकादेमी सम्मान के बाद जो चारों तरफ उन्हें याद किया गया उससे सचमुच उन्हें लगा होगा..कि लोग उन्हें भूले नहीं थे..बस इंटरनेट की ओवर इंफोर्मेशन्स के जाल में उलझे थे..और वो सारा प्यार चुटपुटिया बटन के लॉक खुलते ही छलक पड़ा है
इस तस्वीर में Maitreyi Pushpa , अनामिका,veena rana और Ginni hain. ये दिन मैत्रयी पुष्पा के जन्मदिन का है।
फिलहाल मैं नहीं हूँ मगर मेरी भरपूर मुबारकबाद मेरी प्रिय अनामिका जी के साथ है..
कविताओं पर बहस तो होती रहेगी।