पांच्यजन्य जिसे अभी तक आरएसएस (संघ) का मुखपत्र कहा जाता था, लेकिन अब संघ इससे साफ़ मुकर रहा है, इसमें विनय कृष्ण चतुर्वेदी उर्फ तुफैल चतुर्वेदी नामक लेखक लिखते हैं कि “वेद का आदेश है कि गोहत्या करने वाले के प्राण ले लो। हममें से बहुत लोगों के लिए तो यह जीवन-मरण का प्रश्न है।” इसका सीधा सा मतलब यही है कि वर्तमान भारत में पांच्यजन्य द्वारा वैदिक विधि के मनमाने प्रावधानों को लागू किये जाने का समर्थन किया जा रहा है। वेद किसने, कब और क्यों लिखे, यह जुदा विषय है, लेकिन भारत का संविधान लागू होने के बाद वैदिक कानूनों को लागू करने और वैदिक विधियों के प्रावधानों का उल्लंघन होने पर वेदों के अनुसार सजा देने की बात का खुल्लमखुल्ला समर्थन इस आलेख में किया गया है।
अखलाक के बारे में मंदिर के पुजारी द्वारा अफवाह फैलाई गयी कि अखलाक द्वारा गाय को काटा गया है। यह खबर भी बाद में असत्य पाई गयी। लेकिन इस अफवाह के चलते वैदिक सैनिकों ने अखलाक को पीट—पीट कर मौत की नींद सुला दिया गया। जिसके बारे में हक रक्षक दल की और से निंदा की गयी और दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की मांग भी की गयी थी। इस अमानवीय घटना के लिये शर्मिंदा होने के बजाय पांच्यजन्य इसका खुलकर समर्थन कर रहा है। एक प्रकार से पांच्यजन्य में प्रकाशित लेख में वैदिक विधि को वर्तमान संविधान से भी ऊपर बतलाकर उसका पालन करने की बात कही गयी है।
इसके विपरीत–
1. वर्तमान भारत के संविधान का अनुच्छेद 13 के उपखण्ड 1 में कहा गया है कि— ”संविधान लागू होने अर्थात् 26 जनवरी, 1950 से पहले भारत में लागू सभी प्रकार की विधियां, (जिनमें विधि का बल रखने वाले अध्यादेश, ओदश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढि, प्रथा शामिल हैं) यदि मूल अधिकारों का उल्लंधन करने वाली हैं तो संविधान के लागू होते ही स्वत: शून्य हो जायेंगी।”
2. वर्तमान भारत के संविधान का अनुच्छेद 51क के उपखण्ड क में कहा गया है कि— ”भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह—संविधान का पालन करे…”
3. भारत के छोट से छोटे लोक सेवक से लेकर प्रधानमंत्री तक प्रत्येक लोक सेवक का अनिवार्य संवैधानिक दायित्व है कि संविधान का उल्लंधन नहीं होने पाये।
4. सम्बन्धित राज्य के निम्नतम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक को और देश के सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि किसी भी माध्यम से संविधान के उल्लंधन की जानकारी मिलने पर स्वयं संज्ञान लेकर तत्काल विधिक कार्यवाही की जाये।
क्या वेद के उपरोक्त असंवैधानिक और अमानवीय आदेश का समर्थन करके वैदिक व्यवस्था की लागू करने वाला लेख लिखने वाले लेखक चतुर्वेदी और पांच्यजन्य के सम्पादक तथा प्रकाशक के खिलाफ किसी प्रकार की कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिये? यदि हां तो पांच्यजन्य के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही में देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका कतरा क्यों रही है? यहां तक की मीडिया भी चुप्पी धारण किये बैठा है!
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जन्मजातीय आधार पर बने दबंगों के विरुद्ध किसी प्रकार की त्वरित कानूनी कार्यवाही नहीं होना ही दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यकों के लगातार उत्पीड़न का मूल कारण है। जिसके लिए राजनीति के साथ-साथ, सीधे-सीधे देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका भी जिम्मेदार है। अंत में सौ—टके का सवाल पांच्यजन्य के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं? कब तक नहीं?
लेखक डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन के राष्ट्रीय प्रमुख हैं.
सत्य प्रकाश गुप्ता
October 23, 2015 at 9:20 am
डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश मूर्ख हैं तो इसके लिए पांचजन्य जिम्मेवार कैसे हो सकता है? वैसे तो उन्होंने लेख पढ़ा नहीं है, अगर पढ़ा है तो वो मेरे अनुमान से भी ज्यादा मंदबुद्धि हैं।
Binod
October 26, 2015 at 8:42 pm
Kya Aalto it I him at hai
Muslim jihad ko embark Quran me sipahi big ker demo.
Aapka kya haal hot hai.