दिल्ली में सोमवार को आठवें रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस अवार्ड प्रदान किए गए। ये पुरस्कार 2013 और 2014 में प्रसारण और प्रिंट पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए दिए गए। मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए भयावह दंगे के दौरान सलामत बचे लोगों की झकझोर देने वाली खबरों से लेकर सीरिया-इराक में इस्लामिक स्टेट की बर्बरता, छत्तीसगढ़ के बंध्याकरण शिविर में हुई मौतें और झारखंड में माओवादी हिंसा से पीड़ित एक गांव में क्रिकेट खेलना सीखती लड़कियों के जज्बे की खुशनुमा दास्तान इन खबरों का केंद्र थीं। इन खबरों के लिए ही देश के उत्कृष्ट खबरनवीसों को ये अवार्ड दिए गए। केंद्रीय वित्त, और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली इस समारोह के मुख्य अतिथि थे।
उन 56 पत्रकारों को पुरस्कृत किया जिन्होंने अपनी खबरों के लिए अतिरिक्त मेहनत करने में कोताही नहीं की। इस मौके पर जेटली ने द इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के लब्धप्रतिष्ठित संस्थापक रामनाथ गोयनका की तारीफ करते हुए कहा कि मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि अब तक मैं जितने भी लोगों से मिला हूं, उनमें वे सबसे दिलचस्प शख्सीयत थे। आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में गोयनका के योगदान की याद करते हुए जेटली ने कहा कि कि जेल से बाहर अगर कोई और प्रतिष्ठान उस समय लगातार संघर्षरत रहा तो वह इंडियन एक्सप्रेस था। उन्होंने कहा कि रामनाथ गोयनका एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म अवार्ड इस मायने में उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है क्योंकि निर्भीक पत्रकारिता के मूल्यों का उनसे बेहतर प्रतनिधि कोई और नहीं हो सकता। उनके नाम पर सम्मान एक ऐसी चीज है जिसके वे हकदार हैं।
एक अखबार समूह के संस्थापक के तौर पर गोयनका के मूल्यों को याद करते हुए जेटली ने कहा कि उनमें काफी गहरे तक इस बात का बोध और फख्र था कि एक अखबार का काम भ्रष्टाचार और नाइंसाफी का पर्दाफाश करना है, चाहे वह जहां भी हो। रामनाथ गोयनका की इस सूक्ति को भी उद्धृत करते हुए कि अखबार निकालने वाले को किसी और पेशे में नहीं होना चाहिए, जेटली ने कहा कि मौजूदा समय की यह एक बड़ी चुनौती है जिससे हम जूझ रहे हैं। दूसरे कारोबारों में लगे लोग मीडिया समूहों पर कब्जा कर रहे हैं। एक बार ऐसा हुआ नहीं कि खबरों में उनके हित झलकने लगते हैं।
इसके बाद वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभ लेखक और लेखक कुलदीप नैयर को पिछले पांच दशकों के लंबे पत्रकारीय जीवन में खासे अहम योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। इंडियन एक्सप्रेस का संपादक रहते हुए कुलदीप नैयर आपातकाल के खिलाफ पत्रकारीय प्रतिरोध के अग्रदूत व प्रतीक बनकर उभरे। इस दौरान सरकारी अत्याचार के खिलाफ विरोध की अगुआई करने पर उन्हें मीसा जैसे दमनकारी कानून के तहत जेल में डाल दिया गया।
टाइम्स ऑफ इंडिया के राधेश्याम बापू जाधव को पुणे में अवैध निर्माणों व उसके वाशिंदों में पसरे डर को उजागर करने पर जनपत्रकारिता (2014) के लिए प्रकाश करदाले मेमोरियल अवार्ड से सम्मानित किया गया। आंध्र प्रदेश की नई प्रस्तावित राजधानी के निर्माण से राज्य के सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक गुंटूर जिले में खेतीबाड़ी पर होने वाले भयावह दुष्प्रभावों की जानकारी देने वाली आउटलुक की माधवी टाटा को पर्यावरण रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कृत किया गया। देश के मानव संसाधनों में कौशल संकट और किस तरह से यह फासला कम होता नहीं दिखता, यह बताने के लिए व्यापार और आर्थिक श्रेणी में इंडिया टुडे की शमनी पांडे को पुरस्कृत किया गया।
द इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टरों दीपंकर घोष और वीएन अपूर्व को मौके पर जाकर रिपोर्टिंग (ऑन स्पॉट रिपोर्टिंग) करने के लिए पुरस्कृत किया गया। इन दोनों को यह पुरस्कार 2013 में मुजफ्फरपुर दंगों के कवरेज के लिए मिला। जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर श्रेणी में द इंडियन एक्सप्रेस की ईशा रॉय को 2013 में मेघालय के एक सुदूर कस्बे में एक लड़की से सामूहिक बलात्कार में मणिपुर से अफस्पा हटाने के लिए सर्वस्व होम कर देने वाली इरोम शर्मिला पर 2014 में लिखी गई रिपोर्ट के लिए पुरस्कृत किया गया।
इस साल इस पुरस्कार में फोटो पत्रकारिता और फीचर लेखन जैसी दो नई श्रेणियां भी जोड़ी गईं। फोटो पत्रकारिता श्रेणी में द इंजियन एक्सप्रेस के ताशी तोबग्याल को यह पुरस्कार मिला जिन्होंने 2013 में उत्तराखंड में बादल फटने से आई विनाशकारी बाढ़ के बाद तीन दिन तक केदारनाथ की पैदल यात्रा के दौरान कुहरे से ढंके पहाड़ों की दिलकश तस्वीरें खींची थी। प्रसारण खंड में अदृश्य भारत श्रेणी में एनडीटीवी की उमा सुधीर (2014) को पुरस्कृत किया गया जबकि राजनीति व सरकार श्रेणी में सीएनएन -आइबीएन की दीपा बालकृष्णन (2013) को पुरस्कृत किया गया। उन्होंने एक डाक्यूमेंट्री में कर्नाटक में नेताओं व खनन माफिया के गठजोड़ को उजागर किया था।
पुरस्कार वितरण के बाद मौजूदा दौर के सबसे मकबूल अभिनेता आमिर खान के साथ एक दिलचस्प संवाद भी हुआ। इससे पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए एक्सप्रेस समूह और रामनाथ गोयनका फाउंडेशन के अध्यक्ष विवेक गोयनका ने कहा कि इस बार रेकार्ड तादाद में 700 प्रविष्टियां मिली थीं और पुरस्कृत खबरों की गुणवत्ता से पता चलता है कि पत्रकारिता में उत्कृष्टता की कोई कमी नहीं है। इसे देखने के लिए आपको सिर्फ अपने स्मार्ट फोन और रिमोट कंट्रोल से बाहर झांकना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अर्थशास्त्रियों की तरह पत्रकार भी ‘मानव की प्रकृति, इसके उल्लास और भय’ के छात्र होते हैं, खास तौर से नकारात्मक और अशांतिमूलक बदलावों के दौर में। उन्होंने कहा कि सुनना और सीखना ही अच्छी पत्रकारिता का मूल है।
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