जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं है। कब न जाने कहां किस घड़ी में सांस टूट जाए, कहा नहीं जा सकता। कुछ वैसा ही रायबरेली में दैनिक जागरण के फोटोग्राफर रहे और वर्तमान में श्री टाइम्स के ब्यूरोचीफ संजय भैया के साथ हुआ। जिसने भी उनके गुजर जाने की खबर सुनी वही सन्न रह गया। अरे ये क्या हो गया? वे तो ठीकठाक ही थे। एक साथी ने कहा कि वह तो खुद डॉक्टर थे। ऐसा हो ही नहीं सकता है। तुम्हारी ये खबर झूठी है। हां, मैंने भी कहा कि ये खबर झूठी हो।
लेकिन मेरे और उसके कहने से कुछ होने वाला नहीं था क्योंकि संजय भैया हम लोगों से दूर दूसरी दुनिया में चले गए थे। वो दुनिया जहाँ जाने के बाद कोई लौट कर नहीं आता है। अब तो हम लोगों के बीच में सिर्फ उनकी यादें ही रह गई हैं। वे यादें जिनके लिए मैं उनका हमेशा आभारी रहूँगा। मैं और रोहित सिंह दोनों जब भी रायबरेली जाते थे, तो उनसे मुलाकात जरूर करते थे। इधर काफी दिनों से मैं उनसे नहीं मिल पाया था लेकिन रोहित अभी तीन दिन पहले ही उनसे मिलकर वापस कानपुर गया था। आज जब उसको ये खबर दोपहर में बताई तो वह फोन पर सन्न रह गया। मैं भी सन्न रह गया था रोहित मिश्रा जी की वाल से ये खबर सुनकर। रायबरेली के भोला भैया का मैसेज और फिर खबर आ गई।
संजय भैया की कुछ बातें मुझे हमेशा ही याद रहेंगी क्योंकि उन्होंने मुझे रायबरेली में तब से देखा जब मैं साइकल से दफ्तरों में अखबार दिया करता और मेरा वह भी समय देखा जब रायबरेली में ही साइकल से हिन्दुस्तान अखबार के लिए रिपोर्टिंग किया करता था। उन्होंने ही मुझे एक साइकल काफी कम दामों पर रायबरेली में दिलाई थी। अभी वह समय नहीँ आया था कि आगे कुछ और खरीदाते, लेकिन सुख दुःख की हर घड़ी में साथ खड़े रहते थे। जब भी उनसे कैफे पर मिलने जाता तो बस वह यही आशीर्वाद देते कि जहाँ भी रहो हम लोगों का और रायबरेली का नाम ऊँचा करते रहो। हम लोग ये कह सके कि अपना प्रवेश तो वहां पर है, कोई दिक्कत नहीं होगी लेकिन वह घड़ी आने से पहले ही संजय भैया हम लोगों को सदा के लिए छोड़कर चले गए। संजय भैया आप बहुत याद आवोगे।
प्रवेश यादव
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