भोपाल। चतुर्दश विधान सभा का दशम् सत्र २३ फरवरी से प्रारम्भ हो गया है। इसी के साथ मध्यप्रदेश विधान सभा की पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति एक बार फिर चर्चाओं में है। समिति के कुछ कथित सदस्यों द्वारा पिछले सत्र में कुछ पत्रकारों के नाम प्रवेश-पत्र सूची से उड़ाने को लेकर भारी हंगामा हुआ था।चालू सत्र में समिति ने कुछ पत्रकारों के प्रवेश-पत्र रोक दिए, आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस काट-छांट का शिकार वह पत्रकार हुए है जो वर्षों से विधान सभा की रिपोर्टिंग कर रहे हैं। प्रवेश-पत्र से वंचित पत्रकारों में भरी आक्रोश है।
नाराज़ पत्रकारों का कहना है कि प्रवेश-पत्र पाने के लिए हम सदस्यों के सामने गिड़गिड़ा कर अपने स्वाभिमान की भेंट नहीं चढ़ा सकते। उनका कहना है कि समिति के सदस्य चाहते हैं कि प्रवेश-पत्र पाने के लिए पत्रकार उनके आगे पीछे चक्कर लगाएं। उनका आरोप है कि इस मामले में विधान सभा सचिवालय के अधिकारियों ने जानबूझ कर पुराने प्रकरणों को समिति की बैठक में रख कर नई परम्परा डाली है। जबकि पूर्व में समिति केवल नए आवेदनों पर ही विचार करती थी।
मध्यप्रदेश विधान सभा के इतिहास में ये पहला मौक़ा है जब समिति के सदस्यों पर अंगुलियां उठ रही हैं। ऐंसा इस लिए हो रहा है क्योंकि समिति में चटाई के चौकीदारों का बोलबाला है, ये स्वयंभू पत्रकार अपने आलावा किसी को पत्रकार मानते ही नहीं हैं। दरअसल समिति के गठन के समय पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति के सदस्यों के लिए जो नियम बने हैं उनका पालन ही नहीं किया गया। सदस्यों के चयन के समय कुछ सदस्यों को छोड़ कर केवल सिफारशी लालों को प्राथमिकता दी गयी, नतीजा सबके सामने है। विधान सभा ने पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति के सदस्यों को नामांकित करने के लिए जो नियम बनाये है उसमे स्पष्ट लिखा है कि ‘समिति का सदस्य उसी पत्रकार को नामांकित किया जायेगा, जिसको संसदीय रिपोर्टिंग का काम से काम पांच वर्ष का अनुभव हो’।
सूत्रों की माने तो वर्तमान समिति में नामांकित आधे से अधिक सदस्यों को संसदीय रिपोर्टिंग का अनुभव ही नहीं है। संसदीय रिपोर्टिंग तो दूर की बात है वह वास्तव में प्राथमिक कक्षा में पढ़ाई जाने वाली बारह खड़ी भी ठीक से नहीं लिख सकते। विडंबना देखिए कि नेताओं की चरणवंदना करके समिति के सदस्य बने अयोग्य लोग बैठक में ये तय करते हैं कि कौन पत्रकार है कौन नहीं। इस मामले में बैठक में मौजूद विधान सभा सचिवालय के अधिकारियों की भूमिका भी हास्यास्पद है क्योकि जो पत्रकार वर्षों से विधान सभा की रिपोर्टिंग कर रहे हैं, उनके नाम पुनर्विचार के लिए बैठक में रखे ही जाने थे। ।यही नहीं नियम कहता है कि ” वह सदस्य जो लगातार तीन वर्ष तक समिति का सदस्य रह चूका हो , पुन : समिति का सदस्य तब तक नामांकित नहीं किया जायेगा जब तक कि उसने विगत सदस्यता दिनांक से दो वर्ष की अवधि पूर्ण न करली हो। ” जबकि समिति में कुछ सदस्य ऐंसे है जिनको नियम विरुद्ध बार – बार नामांकित किया गया है। इस प्रकार विधान सभा सचिवालय अपने बनाये नियमो की अवहेलना कर रहा है।
जब लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाली विधान सभा में अपने बनाये नियम की ही धज्जियाँ बिखेर दी गयी तो दूसरी शासकीय संस्थाओं से नियमों को लागू करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। एक ज़माना था जब लोग व्यक्ति की योग्यता को प्राथमिकता देते थे, अख़बार भी वही बिकते और पढ़े जाते थे जिनमे संपादक योग्य होता था, लेकिन अब बैनर को महत्व दिया जाने लगा है जो जितने बड़े बैनर का पत्रकार है वो उतना बड़ा पत्रकार है। जबकि सच्चाई यह कि बड़े बैनर में उन्हीं लोगो को प्राथमिकता दी जाती है जो बड़ा लाइजनर ( दलाल ) है, और जो वास्तव में पत्रकार हैं या छोटे बैनर से जुड़े हैं उन्हें दर – दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा है। उनके साथ भेद – भाव किया जा रहा है। वास्तविक पत्रकारों को पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति के सदस्यों के आगे प्रवेश – पत्र पाने के लिए गुहार लगानी पड़ रही है।
मध्यप्रदेश विधान सभा के वर्तमान अध्यक्ष श्री सीतासरन शर्मा और उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह कुशल और अनुभवी नेता हैं उन्हें चाहिए कि वह इस भर्राशाही पर अंकुश लगाएं। उचित होगा की पत्रकार दीर्घा सलाहकार समिति की परम्परा को समाप्त करके पत्रकारों को प्रवेश – पत्र देने की बागडोर विधान सभा सचिवालय के अधिकारीयों के हाथ में दे दी जाए जिससे वास्तविक पत्रकारों को प्रवेश – पत्र लेने के लिए अपमानित होने से बचाया जा सके। इससे मीटिंगों के नाम पर जो राशि खर्च होती है वो भी बचेगी।
जय हिन्द
जय भारत
Arshadalikhan Khan
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