हरेंद्र मोरल-
ब्राह्मण होने पर महिलाओं से सामूहिक बलात्कार, बच्चियों की हत्या की छूट मिल जाती है। और ये उस देश में हो रहा है जहां क़ा प्रधानमंत्री पूरे देश के सामने महिलाओं के सम्मान में झूठे आंसू बहा रहा था। वाकई में इस देश क़ा भगवान मालिक है।
सरफ़राज़ नज़ीर-
एक सवाल ज़ेहन में आया अभी, तीन तलाक़ पीड़ित महिलाओं को बहन मान कर जबरिया न्याय दिलाने के लिए आतुर थे तो तलाकशुदा ही बहने मानी जाएंगी या बलात्कार पीड़ित मुस्लिम महिलाएं भी बहनों की कैटेगरी में आएंगी?
जो जस्टिस नहीं मांग रही थी उन्हें तो पकड़ पकड़ कर इंसाफ दिया जा रहा था और बिल्कीस बानो इंसाफ मांग रही है तो अपराधियों को हार माला पहना कर सम्मानित किया जा रहा है।
मैने तो तब भी कहा था तीन तलाक़ वाली गप्प से दूर रहिए, इनका अस्तित्व ही हमारी मुख़ालेफत पर मुन्हस्सर है।
रमाशंकर बाजपेयी-
2002 में 23 बरस उम्र थी और गर्भवती थी… बिलकीस बानो पर हुए गैंगरेप के मामले में अदालत ने 11 दोषियों आजीवन सज़ा सुनाई थी। पर गुजरात सरकार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को न मानते हुए, इन सभी को रिहा कर दिया। जेल एडवयजरी कमेटी में 10 सदस्य जो सरकार द्वारा नामित किये गए थे उनमें से 5 बीजेपी के पदाधिकारी थे।
सरकार की इन बलात्कारियों से इतनी मोहब्बत थी इन सभी को बाइज्जत बरी कर दिया। इन सब का जेल के दरवाजे पर माला पहना कर फ्रीडम फाइटर की तरह सम्मानित किया गया। एक बीजेपी विधायक बोले कि ये सब ब्राह्मण है और उनके संस्कार अच्छे है। वाह रे गुजरात मॉडल!
“मैंने हमारे देश की सबसे बड़ी अदालतों पर विश्वास किया. मैंने सिस्टम पर विश्वास किया. मैं धीरे-धीरे अपने सदमे के साथ जीना सीख रही थी. इन अपराधियों की रिहाई ने मुझसे मेरी शांति छीन ली है और न्याय में मेरे विश्वास को हिला दिया है.” – बिलकिस बानो
हिमांशु कुमार-
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर कैदियों को रिहा करने की नीति के संबंध में केंद्र सरकार ने राज्यों को इस साल जून में पत्र लिखा था।
इसमें साफ-साफ लिखा था की बलात्कार और उम्र कैद की सजा पाए हुए कैदियों को रिहा नहीं करना है। गुजरात की भाजपा सरकार ने उन्हीं को रिहा करा है।
क्या भाजपा सरकार के लिए कानून को मानने की बंदिश नहीं है? भारतीय जनता पार्टी ने भारत के कानून को मानना बंद कर दिया है? कानून की हिफाजत करने वाली अदालतें भाजपा के सामने बेबस हो चुकी हैं?
सौमित्र रॉय-
सरकार हमारी, सत्ता हमारी, कचहरी हमारी और जज भी हमारा- हम तो नंगा नाचेंगे। जो उखाड़ना है, उखाड़ लो। 2020 के दिल्ली नरसंहार के दोषियों और नरसिंहानंद जैसे संघी एजेंटों के मुंह से आपने कई बार यह सुना होगा।
जब सत्ता बहुसंख्यक हिंदुओं के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगती है तो अराजकता की ऐसी ही स्थिति बनती है। गुजरात में 2002 के नरसंहार में यही हुआ था। दो दशक बाद फिर यही हो रहा है।
ज़ाकिया जाफ़री ने नरसंहार की SIT जांच को चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को ही लपेट लिया। अब बात भारत से निकलकर ब्रिटेन, जर्मनी, कनाडा और अमेरिका तक पहुंच चुकी है। करीब एक दर्जन अकादमिक शख़्सियतों ने विरोध जताया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस रुख ने नरेंद्र मोदी सरकार को कानून की धज़्ज़ियाँ उड़ाने को उकसाया है। वैसे भी प्रधानमंत्री 2002 के कत्लेआम का दाग माथे से मिटाना चाहते हैं।
बिलकिस बानो मामले में जिन 11 दोषियों को माफी दी गई है, उनमें से 4 ने पैरोल पर रिहा होने के बाद गवाहों को धमकाया था।
अगर वे या उनके आका नरेंद्र मोदी बेकसूर हैं तो धमकाने की क्या ज़रूरत थी? माफी के बाद अब ये सभी अपना मंसूबा पूरा करेंगे। दाग मिटाने का।
इन सबसे यही साबित होता है कि भले कोर्ट ने मोदी को निर्दोष माना है, लेकिन वे जिस कत्लेआम के सूत्रधार थे, उसके गवाह, नरसंहार की निशानियां, सत्ता के दुरुपयोग और साम्प्रदायिक राजनीति के काले पन्ने आज भी मौज़ूद हैं।
पूरी दुनिया इस वक़्त भारत की इस अराजकता पर थूक रही है।
हम थूक चाटकर लहालोट हैं। भारत को कोई हक़ नहीं कि वह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान पर उंगली उठाए। हम उनसे भी ज़्यादा तबाह हैं।