महक सिंह तरार-
0.1% नेट ब्याज कमाने वालो, आपका मौक़ा आ सकता है!
SEBI ने 2019 में सर्वे कराया था जिसमें 95% भारतीयों ने कहा की वो इन्वेस्टमेंट सिर्फ़ बैंक FD में ही करते है।
—लास्ट 20 साल में बैंक FD के एवरेज रिटर्न रहे 7.12%।
—उसमें से बैंक TDS काट देता है तो आपको मिले 6.4%।
—महंगाई दर रही है 6.29%, FD वालो ने कमाया शुद्ध 0.1%।
—सोना ख़रीदने वालो ने कमाया 11.5%, FD से क़रीब दुगना।
—टॉप रहे Shares वाले उन्होंने कमाया 17% FD वालो से तिगुना।
Share मार्केट एक बार फिर ख़राब होने की ठीक ठाक सम्भावना है। सम्भावना जानने के लिये कमेंट वन पढ़ लेना। युद्ध से बड़ी इकानमीज़ को ज़्यादा फ़ायदा होता है। जो मार्केट सेंटिमेंट्स के कारण गिरते है वो V shape में तुरंत वापस उछलते है। अगर मार्केट गिरे तो कमाने का इससे अच्छा मौक़ा अगले कई सालो तक आपके हाथ नही आयेगा।
आपको बस कुछ काम करने है।
एक अपने बड़े खर्चे रोक दो, पिज़्ज़ा बर्गर वाले फ़ालतू खर्चे भी।
रिस्की ग्लोबल हालत के कारण अभी बच्चों को कमजोर देशों में पढ़ने ना भेजे। वरना फिर इवैकुएशन के लिये रोते रहते है।
कमजोर Cash flow वाली प्रॉपर्टीज़, (जैसे रीहायशी मकान, प्लॉट आदि) ना ले।
सम्भव है हालत ख़राब ना हो, अगर होने लगे तो उनका इंतज़ार करो।
जैसे ही हालत सुधरने लगे, रिवर्सल आये अपना पैसा मार्केट में लगाये।
देखिये भारतीय 3% से कम MF में पैसा लगाते है जबकि अमेरिकी 53%।
मैं प्रार्थना करूँगा की मार्केट ख़राब ना हो मगर ऊपर वाला कौनसा मेरी सुनता है…
तो एक रास्ता है मैं मोदी सरकार को कोसूँ, दूसरा है, की हालात के अनुसार तैयार रहूँ।
तीसरा, स्मार्ट लोग दोनो काम कर सकते है। तैयारी भी करो, व सरकार को कोसते भी रहो।
US मार्केट मंदी में है। हालाँकि US ने खूब डॉलर छापे जिससे उसकी क़ीमत गिरनी थी मगर उसकी position के सामने बाक़ी की position ओर भी ख़राब है तो डॉलर मज़बूत व बाक़ी सारी करंसी मजबूर हुई है, घटी है। देश अपनी अपनी करंसी बचाने में लगे है तो उनके व्यापार घाटे (CAD) बढ़ रहे है व विदेशी मुद्रा भंडार घट रहे है। मतलब मुसीबत आ सकती है।
USA ने अपने नागरिकों को तुरंत रूस छोड़ने को बोला है व रूस ने हफ़्ते पहले अपने नागरिकों को देश से बाहर भागने पर पाबंदी लगाकर उन्हें लड़ायी के लिये तैयार होने का हुक्म दिया है। NATO ने उक्रैन को पैसा हथियार देने जारी रखे उधर रूस ने उक्रैन के कई हिस्सों में (अपने में मिलाने का) रेफ़रेंडम जीत लिया है। उक्रैन रूस से कई इलाक़े वापस जीत रहा है। रूस को व्यापार युद्ध भी लड़ना है। जर्मनी व UK ने काफ़ी गैस का इंतज़ाम खाड़ी देशों से कर लिया है, रूस पर निर्भरता कम कर दी। मतलब हुआ कि मामला फँसेगा अब।
FDI वाली इकानमीज़ के सामने दुधारी तलवार है। एक तरफ़ पूँजी का निकास रोकने का काम है तो दूसरी तरफ़ महंगाई पर लगाम लगाने के लिये पूँजी का इंटर्नल प्रवाह कम करके दाम घटाना। मगर मार्केट में पूँजी महंगी होने पर आर्थिक गतिविधियाँ घटती है। जिसके कारण GDP गिरता है। एक ओर सामान्य ज्ञान की बात बताता चलु। अगर पूँजी बहुत दिनो तक महंगी हो तो उधयोग उसे प्रोडक्ट ख़रीदने वाले को पास कर देते है, याने प्रोडक्ट के दाम बढ़ा देते है उससे उल्टा महंगाई बेक़ाबू होती है। उधयोग की रफ़्तार स्लो होने से बेरोज़गारी भी बढ़ती है जिसकारण ग़रीबी बढ़ती है। बोले तो ये समाधान दुधारी तलवार पर चलने बराबर होते है सरकार के लिये। ये वैसे भी शॉर्ट टर्म समाधान है।
सोचो अगर सरकार लम्बे समय तक ऐसा करे तो घटी हुई आर्थिक दर से टैक्स कमायी घटती है। जिससे गवर्न्मेंट सपेंडिंग घटती है। जिस कारण कमायी ओर ज़्यादा घटती है, जिससे गवर्न्मेंट की आमदनी ओर घटती है जिससे सपेंडिंग ओर घटती है…. मतलब ये साइकल बन कर गले का फंदा बन जाता है। जैसे श्रीलंका का बना था। इसलिये कोई भी समाधान लिमिटेड ही समाधान है। अब तो 2008 की तरह बचाने वाला मनमोहन भी नही है। वैसे भी एक हद के बाद कोई भी सरकार इसे नही सम्भाल सकती। फिर क़र्ज़े लेने के लिये पाकिस्तान अफगनिस्तान लंका की तरह तेल ढायी सौ रुपए लीटर करना ही पड़ता है।