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आयोजन

एक करोड़ आदिवासी करेंगे संसद का घेराव

नई दिल्ली। संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचि के अब तक अनुपालन न होने के कारण आदिवासी समुदाय क्षुब्ध है। अब एक करोड़ से अधिक की संख्या में आदिवासी संसद घेरने की तैयारी में हैं। 16 अक्टूबर 2016 को दिल्ली के झंडेवालान स्थित अंबेडकर भवन में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, ओड़िशा, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम समेत देश के विभिन्न राज्यों से “जय आदिवासी युवा शक्ति” (जयस) के बैनर तले आयोजित “मिशन 2018” बैठक में जुटे आदिवासी प्रतिनिधियों ने सरकार के रवैया के प्रति घोर असंतुष्टि जताई।

<p>नई दिल्ली। संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचि के अब तक अनुपालन न होने के कारण आदिवासी समुदाय क्षुब्ध है। अब एक करोड़ से अधिक की संख्या में आदिवासी संसद घेरने की तैयारी में हैं। 16 अक्टूबर 2016 को दिल्ली के झंडेवालान स्थित अंबेडकर भवन में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, ओड़िशा, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम समेत देश के विभिन्न राज्यों से "जय आदिवासी युवा शक्ति" (जयस) के बैनर तले आयोजित "मिशन 2018" बैठक में जुटे आदिवासी प्रतिनिधियों ने सरकार के रवैया के प्रति घोर असंतुष्टि जताई।</p>

नई दिल्ली। संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचि के अब तक अनुपालन न होने के कारण आदिवासी समुदाय क्षुब्ध है। अब एक करोड़ से अधिक की संख्या में आदिवासी संसद घेरने की तैयारी में हैं। 16 अक्टूबर 2016 को दिल्ली के झंडेवालान स्थित अंबेडकर भवन में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, ओड़िशा, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम समेत देश के विभिन्न राज्यों से “जय आदिवासी युवा शक्ति” (जयस) के बैनर तले आयोजित “मिशन 2018” बैठक में जुटे आदिवासी प्रतिनिधियों ने सरकार के रवैया के प्रति घोर असंतुष्टि जताई।

प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि “सरकार और राष्ट्रपति आदिवासियों के संवैधानिक एवं मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ रहे हैं। जिसके कारण आदिवासी समुदाय भयंकर गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी से जूझ रहा है। वहीं दूसरी तरफ संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचि के उल्लंघन से आदिवासियों खनिजों से परिपूर्ण कीमती जमीन कारपोरेट के हाथ में चली गयी है और कारपोरेट मालामाल हो रहा है।”

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प्रतिनिधियों ने सरकार के कार्यकलापों पर सवाल उठाया कि “संविधान में आदिवासियों को मिले विशेष प्रावधान के बावजूद भी आज आदिवासियों की इतनी बुरी स्थिति क्यों है? पांचवीं और छठी अनुसूचि के होने के बावजूद भी आखिर अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियो की जमीन गैरआदिवासियों के हाथ में कैसे चली गयी?” आदिवासियों के प्रति सरकार के रुखे रवैये के कारण अब आदिवासी आर-पार की आंदोलन करने का ऐलान कर दिए हैं। आदिवासी प्रतिनिधियों ने प्रण किया कि वे लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में एक करोड़ से भी अधिक की संख्या में इकट्ठा होकर संसद का घेराव करेंगे और अपने संविधानिक अधिकार और पहचान की मांग करेंगे। उन्होंने इस आंदोलन को “मिशन 2018” नाम दिया है।

बैठक में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि के तौर पर डॉ हिरालाल अलावा, रविराज बघेल, राजकुमार पावरा, संजयकुमार सरदार सिंह, दीपक अहिरे, टी.आर. चौहान, एम.एल. शाक्य, मुक्ति तिर्की, शुभमदेव ठाकुर, कृष्णा कलम, साहेब सिंह कलम, रोशन कुमार गावित, शरद सिंह कुमरे, रामनारायण ठाकुर, डॉ अजीत मार्को, अवधराज सिंह मरकाम, दिलशरण सिंह शयाम, अवधप्रताप सिंह मरकाम, राकेश कुमार मरकाम, भजनलाल मीना, प्रो. जामवंत कुमरे, श्रीमती राखी कुमरे, रजनी किरन बा, अनिल मरकाम, ध्रुव चौहान, एम.एल. शाक्या, जितेंद्र कुमार मुखी, मिलीता डुंगडुंग, राजेश पाटिल, राजू मुर्मू, कवलेश्वर प्रसाद, अरविंद गोंड, दिलशरण सिंह सरपंच, अवधप्रताप सिंह, धर्मवीर मरकाम, मनोज ठाकुर ने अपने विचार रखे। बैठक का संचालन राजन कुमार ने किया।

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“मिशन 2018” के तहत आदिवासी समुदाय की निम्न मांगे हैं…

1- अनुसूचित क्षेत्रों में पांचवीं और छठी अनुसूची को सख्ती से लागू करना।

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2- संविधान में अनुसूचित जनजाति की जगह आदिवासी को संवैधानिक मान्यता देना।

3- अनुसूचित क्षेत्र के अतिरिक्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों में संविधान के तहत ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) का गठन कर आदिवासियों के सुरक्षा, संरक्षण और विकास कायम करना, उनके अधिकार, पहचान और सम्मान की रक्षा करना।

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4- विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाए।

5- वनाधिकार कानून 2005 को सख्ती से अनुपालन किया जाए।

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Sanjeev Chandan
[email protected]

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