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सुख-दुख

जब से पता चला है कि Ajit Anjum सर ने न्यूज़24 छोड़ दिया है…

Pravin Dubey : सर Ajit Anjum की ऑफिस से विदाई के बहुत सारे पोस्ट पढ़े। कुछ बेहद मार्मिक हैं। अनुभव हमने भी बहुत कुछ किया संवेदनाओं का चरम हमारे पास भी है। हम उनके द्वारा दिए जाने वाले रामनाथ गोयनका अवॉर्ड [सार्वजनिक सराहना ] से भले ही वंचित रहे हों लेकिन फिर भी मैं उनके साथ बिताये और समझाए [चाहें तो इसे सुविधा के लिए डांट पढ़ सकते हैं ] पलों को गूंगे और गुलज़ार साहब, दोनों के गुड़ की तरह महसूस कर रहा हूँ। ये क़तरा- क़तरा पिघल रहा है और मैं क़तरा-क़तरा ही जी रहा हूँ। आपकी विदाई के वक़्त मैं तो मौजूद नहीं था लेकिन मैं भी इस पर महाकाव्य लिख सकता हूँ। अभी सिर्फ गुलज़ार साहब की ही एक हाइकू के साथ अपनी बात समाप्त करूँगा – “उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना देखा ,देर तक हाथ हिलाती रही शाख फ़िज़ा में…… अलविदा कहने को…….. या पास बुलाने के लिए…

<p>Pravin Dubey : सर Ajit Anjum की ऑफिस से विदाई के बहुत सारे पोस्ट पढ़े। कुछ बेहद मार्मिक हैं। अनुभव हमने भी बहुत कुछ किया संवेदनाओं का चरम हमारे पास भी है। हम उनके द्वारा दिए जाने वाले रामनाथ गोयनका अवॉर्ड [सार्वजनिक सराहना ] से भले ही वंचित रहे हों लेकिन फिर भी मैं उनके साथ बिताये और समझाए [चाहें तो इसे सुविधा के लिए डांट पढ़ सकते हैं ] पलों को गूंगे और गुलज़ार साहब, दोनों के गुड़ की तरह महसूस कर रहा हूँ। ये क़तरा- क़तरा पिघल रहा है और मैं क़तरा-क़तरा ही जी रहा हूँ। आपकी विदाई के वक़्त मैं तो मौजूद नहीं था लेकिन मैं भी इस पर महाकाव्य लिख सकता हूँ। अभी सिर्फ गुलज़ार साहब की ही एक हाइकू के साथ अपनी बात समाप्त करूँगा - "उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना देखा ,देर तक हाथ हिलाती रही शाख फ़िज़ा में...... अलविदा कहने को........ या पास बुलाने के लिए...</p>

Pravin Dubey : सर Ajit Anjum की ऑफिस से विदाई के बहुत सारे पोस्ट पढ़े। कुछ बेहद मार्मिक हैं। अनुभव हमने भी बहुत कुछ किया संवेदनाओं का चरम हमारे पास भी है। हम उनके द्वारा दिए जाने वाले रामनाथ गोयनका अवॉर्ड [सार्वजनिक सराहना ] से भले ही वंचित रहे हों लेकिन फिर भी मैं उनके साथ बिताये और समझाए [चाहें तो इसे सुविधा के लिए डांट पढ़ सकते हैं ] पलों को गूंगे और गुलज़ार साहब, दोनों के गुड़ की तरह महसूस कर रहा हूँ। ये क़तरा- क़तरा पिघल रहा है और मैं क़तरा-क़तरा ही जी रहा हूँ। आपकी विदाई के वक़्त मैं तो मौजूद नहीं था लेकिन मैं भी इस पर महाकाव्य लिख सकता हूँ। अभी सिर्फ गुलज़ार साहब की ही एक हाइकू के साथ अपनी बात समाप्त करूँगा – “उड़ के जाते हुए पंछी ने बस इतना देखा ,देर तक हाथ हिलाती रही शाख फ़िज़ा में…… अलविदा कहने को…….. या पास बुलाने के लिए…

Nitin Thakur : मैं फेसबुक पर कुछ भी और कितना ही लिख डालने के लिए बदनाम हूं। फिर भी अपने पेशे,दफ्तर या सीनियर्स- सहयोगियों के बारे में मैंने हमेशा ही कम लिखा। आज बात ही ऐसी है कि लिखना पड़ रहा है। यूं तो Ajit Anjum सर के साथ अपने खट्टे-मीठे रिश्तों के बारे में लोग खूब लिख रहे हैं और बहुत चाहने के बावजूद मैं उनके बारे में कुछ भी लिख पाने में खुद को असमर्थ पा रहा हूं मगर जब न्यूज़ 24 के कर्मचारियों को उनका ‘विदाई मेल’ एक वेबसाइट पर पढ़ने को मिला तो मुझसे रहा नहीं गया। भावनाओं के सैलाब को शब्दों में बांधना यूं मुश्किल होता ही है..फिर भी जो मन में आ रहा है बस लिख रहा हूं। ठीक से तो याद नहीं रहा लेकिन अब से कुछ साल पहले मैंने एसएमएस और फोन करके उनसे मिलने का वक्त लिया था।

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बहुत व्यस्त रहते थे सो फोन पर ही मुझसे मिलने की वजह पूछी। मैंने भी कहा कि मिलकर ही बताऊंगा। एक ही दफ्तर में होने के बावजूद (मैं इंटर्न था) मुझे उनका खाली वक्त नहीं मिल सका। रात को दफ्तर से घर के लिए निकलने का उनका वक्त मैं जानता था सो दो-तीन दिनों तक उनकी कार के पास दो-ढाई घंटे इंतज़ार भी किया। उनको जैसे ही देखता तो सहम जाता। संकोची था तो बड़ी हिम्मत से अपनी बात कह सका। आखिरकार वो दिन भी आया जब उन्होंने मुझे आराम से बात कहने का मौका दिया। मैंने अपनी बात कही और उन्होंने मुझे पूरे वक्त तसल्ली से सुना। लब्बोलुआब यही था कि मुझे न्यूज़ चैनल में नौकरी चाहिए। जवाब में उन्होंने कहा – ठीक है देखेंगे लेकिन फिलहाल हमारे साथ काम करना चाहोगे तो बताओ। अजीत सर उन दिनों बीएजी प्रोडक्शन हाउस का काम देख रहे थे जो न्यूज़ चैनल से हट कर था। मैंने उनके साथ काम करने के लालच में तुंरत हां कर दी और फॉक्स हिस्ट्री चैनल के लिए बन रहे क्राइम शो में खुद को झोंक दिया। कुछ महीनों तक दिन-रात एक किए रहा लेकिन अजीत सर से मुलाकात कम ही हुई।

मैं नहीं जानता था कि वो मेरी रिपोर्ट लगातार रख रहे हैं। शो खत्म हो गया तो अजीत सर एक बार फिर न्यूज़ 24 में चले गए। उन्होंने ना जाने क्यों मुझे याद रखा और खुद चैनल में नौकरी के लिए बुला लिया। मेरे लिए इससे बड़ी बात हो नहीं सकती थी। उसके बाद तो खैर मैं पैकेजिंग में जुट ही गया। लिखने का मौका नहीं मिला था इसलिए घर आकर फेसबुक की दीवार रंगने लगा। मुझे तब अंदाज़ा भी नहीं था कि अजीत सर लगातार मेरी पोस्ट पढ़ रहे हैं। उन्होंने ही मेरा हौसला बढ़ाया और आउटपुट ज्वाइन कर लिखने के लिए कहा। मेरी शुरूआती ना-नुकुर के बाद उन्होंने सख्ती दिखाते हुए मुझे पैकेजिंग से हटा आउटपुट में शिफ्ट कर ही दिया। इसके बाद कई सीनियर्स ने मुझे न्यूज़ स्क्रिप्ट लिखने के बुनियादी तौर-तरीके और रनडाउन के गुर सिखाए (उनकी ही कृपा से नौकरी ठीकठाक चल रही है)। स्क्रिप्ट से तो आज तक जूझ रहा हूं और ना जाने कब तक जूझता रहूंगा..अलबत्ता रनडाउन ठीकठाक सीख गया। अपने काम का अंदाज़ा टॉकबैक पर उनकी आनेवाली आवाज़ों से लगा लेता था।

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जैसे ही टॉकबैक पर उनकी आवाज़ गूंजती- रनडाउन पर कौन है.. मैं अक्सर सहम जाता था। उनके सवाल का संतोषजनक जवाब दे पाता तो राहत की सांस लेता था और अगर कहीं फंस जाता तो अगले दिन तक खुद को कोसता रहता था। न्यूज़रूम में अजीत सर से मिलना कभी मुश्किल नहीं रहा। वो कभी भी केबिन से निकलकर चले आते। खुलकर सबके सामने इतनी तारीफ भी कर जाते कि शर्म-सी आने लगती थी। मन में सोचता भी था कि क्या वाकई मेरा काम काबिले-तारीफ था या सिर्फ मेरा हौसला बढ़ाने के लिए सर ऐसा करते हैं। कई मौकों पर सभी की तरह उनसे डांट भी खाई (स्वीकार करता हूं कि मेरी गलती के मुकाबले उन्होंने मुझे कम डांटा).. फिर उनको माफी मांगते भी अक्सर देखा। किसी को डांट देने के बाद मुझ तक से कह देते थे- मैंने उसको ज़्यादा बोल दिया यार!!

दफ्तर में सब जानते थे कि वो चैनल के लिए जान लगाए हुए हैं सो ऐसे में किसी की एक गलती भी उनको बुरी तरह चुभती रहती थी। मुझे तो डांटने के बाद साथ में एक बार खाना तक खिलाया..तब तो नहीं हुआ लेकिन अब ज़्यादा हैरान होता हूं कि कहां कोई मैनेजिंग एडिटर अपने टिफिन से इंटर्न को खाना खिला देता है। मैंने उनके शो की मुश्किल ही कभी तारीफ की (हालांकि उन्हें तारीफों की कमी कभी रही नहीं)। एक बार मैंने तारीफ का एसएमएस भेजा तो साथ में लिख भी डाला कि मैं आपकी तारीफ करने से इसलिए बचता हूं क्योंकि डर है कि इसे आप चापलूसी ना समझ बैठें। उनका जवाब मुझे आज तक याद है…उन्होंने जवाब में लिखा- मैं तो तुम्हारी इतनी तारीफ करता हूं तो क्या वो भी चापलूसी ही होती है?
मैं दंग था… अपना सिर खुजाता ही रह गया!

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ये अजीत अंजुम थे जिनसे इतना खुलकर एक इंटर्न तक अपनी बात कह पाता था…अपनी राय रख सकता था..अपना मनपंसद काम मांग सकता था। मैंने तो उनसे हमेशा ही यहां तक कहा कि मैं आपको बॉस की तरह कभी देख ही नहीं सका…आप मेरे टीचर हैं। उन्होंने भी हमेशा मेरी इस बात पर भरोसा किया। अब मैं वहां नौकरी नहीं करता और वो भी छोड़ चुके हैं लेकिन वो मेरे टीचर हमेशा रहेंगे। इस पेशे को छोड़ देने के बाद भी.. शुक्रिया सर। (नहीं चाहता था कि लिखूं लेकिन रहा नहीं गया…लिखा भी तो ज़्यादा ही लंबा हो गया। )

Prakash Lalit : सर का आज न्यूज़ 24 के दफ़्तर में आख़िरी दिन था…सुबह से पता था…बस मानना नही चाहता था..सर आए तो हमेशा की तरह आज भी न्यूज़ रूम का दरवाजा झटके मे खुला..सर हमेशा की तरह अपनी रफ़्तार मे थे…लेकिन आज पहली बार सर को छिपते देखा, बचते देखा…लेकिन सब उन्हे ही ढूँढ रहे थे…सर के लिए ये मुश्किल तो था ही, लेकिन कुछ लोग जिन्हें उनकी डाँट, उनकी तारीफ़,उनकी सराहना सुनने की आदत थी..उनके लिए ये देखना और उसपे यकीन करना मुश्किल रहा…सर अपने 19 साल के सफ़र के बारे में जो कुछ भी वो लिख सके अपना संदेश लिख कर बता दिया..मैं तो जो कुछ भी उनसे सिख सका जो भी बीती यादें थी उनमें कुछ और पल जोड़ लेना चाहता था…सर का न्यूज़ रूम में आख़िरी दिन था तो केक भी कटा, जलेबी भी बांटी गई,समोसे खिलाए गये…लेकिन ये कोई जश्न नही था…पाँच महीने में मैने जो कुछ भी सर से सीखा जितना कुछ भी कर सका और उसमें मुझे जो लगा..जैसे खुद आसमान धरती से आकर ये कह रहा हो की परेशानी की बात नही है..सावन आने वाला है…आप एक संस्थान की तरह है..आप पिता की तरह है, आप गुरु भी है…क्या क्या है??कैसे है???बहुत मुश्किल है लिख पाना…आपने सच ही लिखा सर आज आपकी आखें ही बात कर रही थी…talkbak पे आपकी आवाज़ प्रकाश को भेजो अब सपने में ही सुन सकूँगा…प्रकाश तुमने ये नहीं दिया, ये अच्छा है गुड, अरे यार वो तुमने अभी तक कोई बाइट नहीं दी है, मुझे अभी तक कुछ नहीं मिला है, अरे हाँ यार ये इंपॉर्टेंट है गुड, अच्छा प्रकाश सुनो अच्छा काम करते हो आगे जाओगे लिखने पर ध्यान दो, ये लड़का अच्छा काम करता है, प्रकाश आज क्या करें बताओ?? जल्दी करो पाँच बज गये…आज मूड नहीं है करने का… सुनो मैं ही कर रहा हूँ रिसर्च निकालो जल्दी करो…ये कीवर्ड डालो तो मिलेगा..खबर समझो…और ना जाने आपकी वो कितनी बातें वो कितने ही सबसे बड़ा सवाल के एपिसोड्स और उससे जुड़ी यादें…वो सब कुछ आखों के सामने जैसे सपने की तरह, एक इतिहास की तरह,,जो भी था शानदार और खूबसूरत था…वो दिन वो हलचल वो आपकी आवाज़ सब कुछ फिर से उन दिनों को वापस ला पता काश…आपकी याद आएगी सर….आपकी नयी शुरुआत के लिए शुभकामनाएँ…आपका प्रकाश

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Isomes Noida : लरज़ती आवाज़ से, काँपते होठों से विदा कहते हुए भी लग रहा है जैसे कोई गुनाह कर रहे हैं… आज का दिन ISOMES के लिए उदास दिन है। सावन के महीने में पतझड़ सी उदासी है। सब कुछ पहले जैसा है लेकिन अजीत अंजुम सर के जाने से सब कुछ खाली-खाली सा लग रहा है। लग रहा है जैसे ISOMES से उसकी आत्मा निकल गयी। एक आदमी किसी संस्थान के लिए क्या होता है इसका अंदाज़ा आज हम सबको हो रहा है। ISOMES को अजीत सर ने अपने बच्चे की तरह पाला है। उनकी छाँह में ये बच्चा बड़ा हुआ। लेकिन आज दस साल का ये बच्चा खुद को अनाथ महसूस कर रहा है। उसकी आँखें नम हैं। सर, तेज़ी से दरवाज़ा खोल कर घुसने की आपकी अदा, वो डाँट-फटकार, वो प्यार-दुलार, वो बिरयानी और कोरमे की दावतें, वो हँसी मज़ाक, वो छोटी-छोटी डिटेल पर आपकी पैनी नज़र, वो खाने की टेबल पर बारी-बारी से सबको खींचना (प्यार वाला), सबकी ज़रूरतों का ध्यान रखना….और कितना लिखें सर, आपने हम सबके लिए जो किया है उसकी लिस्ट बहुत लंबी है। हमारे मीडिया फेस्ट मंथन में तो आपकी कमी बहुत खलेगी। मंथन की रौनक आपसे ही तो थी। हम सब तो टिमटिमाने वाले छोटे-छोटे तारे थे। आप बहुत-बहुत याद आयेंगे। हर मोड़ पर, हर कदम पर आपकी कमी खलेगी। बेजोड़ हैं,सर आप। “हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है, चमन में दीदावर पैदा” आपके बेहतर भविष्य के लिए टीम ISOMES की तरफ से अनंत शुभकामनाएँ। जीवन में सफलता की बुलंदियाँ छूते रहिए, यही प्रार्थना है।

Zypsy’s Story : जब से पता चला है कि Ajit Anjum सर ने न्यूज़24 छोड़ दिया, मैं कल्पना ही नहीं कर पाता अपने उस पुराने न्यूज़ रूम की…. सर ने हमको क्लास में स्टोरी को बनाने से लेकर इन्वेस्टिगेशंस तक की क्लासेस दी… हमे पत्रकार बनाने के लिए एक पूरा हैक्टिक वीक रचा गया था.. हर दिन हमारा टेस्ट हुआ करता था.. सर का ऐसा ख़ौफ़ था कि पूछो नहीं .. बहुत सारे बच्चे उन्हे देखकर भाग जाया करते थे कि ना जाने कौन सा सवाल रास्ते में ही पूछ डालें … लिफ़्ट में मिल गए तो सांसे रोक कर खड़े हो जाया करते थे… ऐसा नहीं कि वो खौफ़ पैदा करते थे बल्कि ऐसा जहां वो खड़े होते थे वहां बस उन्ही की presence होती थी… बोलने का बेहद शौक .. पूरे टाइम टीवी पर निगाहें… और चलते चलते उनसे पूछ लीजिए सर फलाने साल में वो नेता कहां से सांसद था.. तो जवाब कितनी वोटों से जीता था के साथ मिलता था.. गज़ब की याददाश्त है उनकी…बखिया उखेड़ देते हैं तो प्यार भी बहुत करते हैं… और अपने ही अंदाज़ में पूछा करते थे क्यों त्यागी .. कमियां बता मेरे शो की.. और मैं सहम जाया करता था…. वो न्यूज़ रुम में एंटर करते थे और हर तरफ बस शांति पसर जाती थी हर कोई कंप्यूटर में मुंह सटाकर बैठा सा…. कभी कभी उस न्यूज़ रूम में एक कुर्सी पर ऐसे बैठते थे जैसे परिवार का मुखिया किसी गांव में बैठा हो और देख रहा हो कि आख़िर चल क्या रहा है……अजित सर मिस द टाइम स्पैंट विद यू… और आपका प्रोग्रामिंग सेंस का क़ायल हूं मैं…. आप हमेशा कहते थे कि डोंट बी संतुष्ट तो मुझे पता है कि आपने कुछ करने के लिए ये बड़ा फैसला लिया होगा.

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फेसबुक से.

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0 Comments

  1. ram tripathi

    August 6, 2014 at 2:17 pm

    वाकई अजित अंजूम जी वर्तमान दौर के एक आदर्श संपादक कम टीचर कहैं जा सकता हैं। मुझे आईएनएस बिल्डिंग व उसके बाहर संजय पान वाले की दुकान के बगल में या फिर कांस्टीट्यूशन क्लब के बाहर सड़क की पटरी पर अमिताभ अग्निहोत्री, गीताश्री, दीपक चौरसिया आदि के बीच कुछ संक्षिप्त मुलाकातों का ध्यान है। अजित जी किसी भी बहस या समान्य बातचीत में अपने पक्ष को जल्दी-जल्दा रखते नहीं थे और अगर पत्र रखा, तो उसे दूसरों पर थोपने की कोशिश नहीं करते थे। आपसी स्वस्थ्य संवाद को बनाये रखने के मामले में वह काफी परिपक्व हैं।

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