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सियासत

कोरोना ने बिजनेसमैनों की आंख से अंधभक्ति का चश्मा उतरवा दिया?

-अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

मेरे बचपन के कुछ पूर्व मित्र हैं, जो कोरोना से लगभग बर्बाद हो चुके ट्रैवल- होटल और फिल्म- टीवी जैसे सेक्टर में कोरोना आने से पहले तक बढ़िया खाने- कमाने भर की जगह बना चुके थे. कोरोना आने के बाद उनको सांप सूंघा हुआ है और वे अब या तो तब से मौन साध कर बैठे हैं या कभी- कभार सोशल मीडिया पर कुछ कहते भी हैं तो वह इधर- उधर की बात ही होती है. जबकि पहले वे भी अपनी तरक्की या खुशियां बड़े गर्व से सबको दिखाया- बताया करते थे. जाहिर है, कोरोना ने उनके काम धंधे की वाट लगा रखी है, इसलिए वर्तमान और भविष्य उन्हें भी बाकी लोगों की तरह अंधकारमय लग रहा है.

इसी साल मार्च से, जब से कोरोना आया है तो ज्यादातर सेक्टर ध्वस्त हो गए हैं और कुछ तो ऐसे हैं कि शून्य पर पहुंच गए हैं. ट्रैवल और फिल्म/ टीवी उन्हीं में से एक हैं. हालांकि कोरोना आने से पहले अपने उसी काम- धंधे के कारण बड़े आराम से दो वक्त की रोटी और रोज इतनी दारू- मुर्गा का इंतजाम वे कर ही लेते थे कि खुद भी मौज में रह सकें और अपने कुछ दोस्त- यारों को भी कभी कभार दावत दे सकें. अब मैं तो दारू- मुर्गे का शौक रखता नहीं इसलिए मुझसे उनकी दूरी वक्त के साथ साथ स्वाभाविक तौर पर काफी पहले से ही बढ़ चुकी थी.

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इसके अलावा भी एक नई मगर बड़ी वजह और 2014 से बन गई थी, उनसे मेरी दूरी बढ़ने की … और वह थी मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर उनकी अंधभक्ति. मोदी की किसी आर्थिक नीति का उनके सेक्टर पर कोई असर नहीं पड़ा था इसलिए मेरे मित्र अपने अपने सेक्टरों में खुश थे. देश की अर्थव्यवस्था या अन्य सेक्टरों पर मोदी जी की आर्थिक नीतियों का क्या असर पड़ रहा है, इससे न तो उन्हें कोई सरोकार था और न ही कोई शिकवा शिकायत, लिहाजा उनकी अंधभक्ति का ग्राफ कम तो क्या होता, बढ़ता ही जा रहा था. जबकि मैंने 2016 में नोट बंदी से खुल कर सरकार की आर्थिक नीतियों का विरोध करना शुरू कर दिया था.

इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि मैं खुद जिस सेक्टर से जुड़ा हूं, यानी रियल एस्टेट, उसकी बर्बादी 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से ही ऐसी शुरू हो गई थी कि तरक्की तो दूर अस्त्तित्व बचाना ही मुश्किल हो गया था. इसी विरोधाभास यानी उनकी अंधभक्ति और मेरे विरोध से टकराव इतना बढ़ा कि हमारी दोस्ती ही टूट गई.

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हमारी दोस्ती टूटने के बाद 2019-20 तक सब कुछ उसी तरह चल रहा था कि अचानक कोरोना ने सब कुछ बदल दिया. मगर दिलचस्प बात यह है कि रियल एस्टेट पर कोरोना आने से कोई खास असर नहीं पड़ा. पड़ता भी कैसे? जब यहां नोटबंदी, बेनामी संपत्ति, काला धन, जीएसटी, रेरा आदि के लगातार बम गिराकर मोदी जी इसे पहले ही पूरी तरह से बर्बाद कर ही चुके हैं. तो अब कोरोना भला इसका क्या बिगाड़ लेगा?

कोरोना काल में भी इस सेक्टर की वही हालत है, जो 2016 में नोटबंदी से लेकर मार्च 2020 में कोरोना आने तक थी. यानी जिनमें अपनी आर्थिक क्षमता है, वह इसमें बने हुए हैं. कारोबार हो या न हो, या नाम मात्र के लिए हो… यहां इस रियल एस्टेट सेक्टर में अब वहीं बचे ही हैं, जो अपनी आर्थिक क्षमता इतनी बना चुके हैं कि किसी न किसी तरह गाड़ी खींच ही लेंगे.

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मगर इस साल के आखिर तक या अगले साल तक वैक्सीन आने का इंतजार कर रहे ट्रैवल- होटल और फिल्म- टीवी उद्योगों के लिए एक एक दिन अब अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है. जितनी ही देर से हालात नॉर्मल होंगे, उतनी ही संख्या इन सेक्टरों में ऐसे लोगों की बढ़ती जाएगी, जो हालात नॉर्मल होने के बावजूद सरवाइव नहीं कर पाएंगे. क्योंकि ठप हो चुके बिजनेस को कोरोना काल बीतने के बाद ज्यादातर लोगों को नए सिरे से शुरुआत करनी होगी. बिल्कुल उसी तरह , जैसे कि उन्होंने बिजनेस शुरू करते समय की थी.

इतने लंबे समय से ठप रहे काम के बाद जमा पूंजी घटने और कर्ज की रफ्तार बढ़ने के बाद कितने लोग दोबारा बिजनेस शुरू कर पाएंगे, यह अभी कोई नहीं बता सकता.

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बहरहाल, अंधभक्ति का चश्मा इसके बावजूद उन्होंने नहीं उतारा होगा क्योंकि अब लोग यह तर्क दे रहे हैं कि क्या कोरोना मोदी जी लाए हैं? जब अमेरिका जैसे विकसित देश की अर्थव्यवस्था कोरोना से तबाह हो गई तो हमारी भी हो गई. इसमें मोदी जी का क्या दोष? मोदी जी न होते और कहीं पप्पू होता तो इससे भी बुरा हो सकता था.

अंधभक्ति में चूर ऐसे लोगों की आंख से चश्मा इन तर्कों के जवाब में कोई तर्क देकर तो नहीं उतारा जा सकता लेकिन एक चुटकुला उनको जरूर सुना देता हूं, जो किसी के अंधभक्त या अंध विरोधी न होकर अभी भी अपनी एक समझ रखते हैं.

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“रमेश और सुरेश बड़े अच्छे दोस्त थे. एक दिन रमेश सुबह सुबह सुरेश के घर पहुंचा तो देखा कि सुरेश सो रहा था. रमेश ने सुरेश को जगाकर कहा- यार, तुम्हारे मुहल्ले में पुलिस आई हुई है. इतनी बड़ी वारदात हो रही है और तुम सो रहे हो? पता है, ऑफिस टूर से एक दिन पहले घर पहुंचे बगल वाले घर के विवेक जी ने कल रात अपनी पत्नी और उसके प्रेमी को गोली मारकर खुदकुशी कर ली.

यह सुनते ही सुरेश ने कहा- छोड़ो हटाओ यह बात… कोई और बात करो. क्योंकि इससे भी बुरा हो सकता था.

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रमेश को इस पर गुस्सा आ गया, वह बोला- तुमसे घटिया आदमी नहीं देखा. तुम्हारे बगल में तीन कतल हो गए. एक परिवार बर्बाद हो गया… और तुम कह रहे हो कि इससे भी बुरा हो सकता था!!! आखिर इससे भी बुरा क्या हो सकता था?

सुरेश बोला- अगर विवेक जी कल की बजाय परसों रात घर आ गए होते तो आज मैं जिंदा न होता….”

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पत्रकार और उद्यमी अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से।

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