मैं बॉम्बे वेलवेट क्यों देखना चाहता हूँ! : हर तरफ नेगैटिविटी है! अनुराग कश्यप सबके निशाने पर है! बन्दे ने एक और फ़िल्म ही तो बनाई है. कोई गुनाह तो नहीं किया! नहीं? आखिर ऐसी भी क्या नाराजगी?
दरअसल देव डी के बाद से ही बॉलीवुड़ में इस बन्दे का विरोध चला आ रहा है! क्यों? कोई भी स्टैब्लिशड हर नये की रचनात्मकता से थ्रेटन्ड फील करता है। अगर यह नया एक डिफाइन सर्कल से बाहर का है और डिफाइन, पॉपुलर दायरों, मानको से बाहर जाकर कुछ क्रिएट करता है तो फिर मठाधीशों को मिर्ची लगा करती है। लोग आपा खो देते हैं!
मीडिया तो हमेशा से ही मठाधीशों का साथ देता आया है। इसीलिए एकाध को छोड़कर हर तरफ बॉम्बे वेलवेट के एक जैसे रेव्यु देखने को मिल रहे हैं! कोई भी फ़िल्म सबको एक जैसी कैसे लग सकती है? अगर कहानी सीधी एक लकीर को पकड़ कर आगे नहीं बढ़ रही है और मल्टीपल थीम्स प्लॉट को जटिल बना दे रही हैं, तो बहुत सम्भव है मीडिया के मित्रों के कुछ पल्ले ना पड़ रहा हो!
समझा जा सकता है, आजकल मीडिया वालों का पढ़ने लिखने का लेवल कोई छिपी बात तो है नहीं! लेकिन इसका मतलब ये तो कतई नहीं कि दूसरों की समझ में भी फ़िल्म न आए! तमाम नेगैटिविटी के बावजूद फ़िल्म की मिली जुली प्रतिक्रिया दर्शकों से सुनने को मिल रही है। सच में इस प्रॉपगैंडा युग मैं भरोसे के लिए, अपने सिवाय शायद ही कोई दूसरी जगह हो! इसलिए वक्त मिलते ही एक बार तो बॉम्बे वेलवेट को देखा ही जा सकता है।
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