Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

उत्तराखंड से लगी सीमा में चीनी सैनिकों की घुसपैठ पर सियासत का रंग चढा

उत्तराखंड से लगी सीमा में चीनी सैनिकों (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के सीमा उल्लंघन का मामला सामने आने के बाद इस मुददे पर सियासत भी तेज हो गई है। पहले उत्तराखंड राज्य सरकार व केन्द्र सरकार आमने सामने थे अब संसद के अंदर भी घुसपैठ के मामले में विपक्षी दल केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं। दरअसल यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब उत्तराखंड सरकार के राजस्व विभाग के कर्मचार व अधिकारी सीमा की स्थिति का मुआयना करने के लिए जुलाई महीने के दूसरे पखवाडे में वाडाहोती इलाके में गये थे। उसी दौरान इस इलाके में चीनी सैनिकों द्वारा घुसपैठ की गयी।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p>उत्तराखंड से लगी सीमा में चीनी सैनिकों (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के सीमा उल्लंघन का मामला सामने आने के बाद इस मुददे पर सियासत भी तेज हो गई है। पहले उत्तराखंड राज्य सरकार व केन्द्र सरकार आमने सामने थे अब संसद के अंदर भी घुसपैठ के मामले में विपक्षी दल केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं। दरअसल यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब उत्तराखंड सरकार के राजस्व विभाग के कर्मचार व अधिकारी सीमा की स्थिति का मुआयना करने के लिए जुलाई महीने के दूसरे पखवाडे में वाडाहोती इलाके में गये थे। उसी दौरान इस इलाके में चीनी सैनिकों द्वारा घुसपैठ की गयी।</p>

उत्तराखंड से लगी सीमा में चीनी सैनिकों (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) के सीमा उल्लंघन का मामला सामने आने के बाद इस मुददे पर सियासत भी तेज हो गई है। पहले उत्तराखंड राज्य सरकार व केन्द्र सरकार आमने सामने थे अब संसद के अंदर भी घुसपैठ के मामले में विपक्षी दल केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं। दरअसल यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब उत्तराखंड सरकार के राजस्व विभाग के कर्मचार व अधिकारी सीमा की स्थिति का मुआयना करने के लिए जुलाई महीने के दूसरे पखवाडे में वाडाहोती इलाके में गये थे। उसी दौरान इस इलाके में चीनी सैनिकों द्वारा घुसपैठ की गयी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बताया तो यह भी जा रहा है कि एक चीनी सेना का हैलीकाप्टर भी भारतीय सीमा के अंदर आया। इससे संबधित रिपोर्ट को राज्य सरकार ने केन्द्र सरकार को प्रेषित कर दिया। इसके बाद से ही इस मामले पर सियासत का रंग चढ गया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत खुलेतौर पर कह रहे हैं कि 19 जुलाई को सीमा पर घुसपैठ हुई, जबकि इस सवाल पर पहले गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजु ने कहा कि केन्द्र तय करेगा कि यह घटना घुसपैठ की है या नहीं। अब बृहस्पतिवार को केन्द्रीय रक्षा मत्री मनोहर पारिकर का भी बयान आया है कि यह घुसपैठ का मामला नहीं है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय सीमा के अंदर चीनी सैनिको की घुसपैठ का पहला मामला नहीं है। सिक्किम का सीमांत इलाका हो या फिर अरूणांचल प्रदेष का क्षेत्र या फिर लददाख या उत्तराखंड का सीमांत क्षेत्र में बहुत लम्बे समय से इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं।  लगभग चार सौ किलोमीटर लंबी यह सारी सीमा विवादित है। अंग्रेज साम्राज्य ने इसका निर्धारण का प्रयास किया था। लेिकन इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया। जहां तक सीमा उल्लंघन का मामला है तो यह सिलसिला आजादी के बाद से ही शुरू हो गया था। चीन सरकार ने सन् 1953 से ही भारत तिब्बत सीमा पर संसाधन जुटाने षुरू कर दिये थे। 1960 में हिन्दू चीन भाई भाई के नारे के बाद अक्तूबर 1962 में चीनी आक्रमण की यादें अभी ताजा हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक बार फिर से चीनी सैनिकों के भारतीय सीमा के अंदर घुसपैठ का मामला सामने आया है। इस बार यह मामला अपेक्षाकृत सबसे शांत माने जाने वाले सेंट्रल सेक्टर में हुआ है। सेंट्रल सेक्टर उत्तराखंड के चमोली व पिथौरागढ का तिब्बत से सटा क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र का न तो अभी तक सीमांकन किया गया है और नहीं सर्वेक्षण हो पाया है। हालांकि दोनों पक्षों के पास जो क्षेत्र है वह दोनों को स्वीकार है। सन् 1962 में हुए चीनी हमले के दौरान भी इस सेक्टर में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा तनाव नहीं था। सितम्बर 2009 में अवश्य हिंसा की बात सामने आई थी। यहां के विवादित इलाके को वाडाहोती कहा जाता है। जो लगभग 80 वर्ग किलो मीटर स्लोपिंग पास्चर (ढलान वाला चारागाह) है। यहां भारत तिब्बत सीमा बल की पोस्ट रिमखिम में है। जो तिब्बत दर्रे से 10 किलो मीटर पहले है। इसके अलावा यहां एक छोटी नदी होतीगाढ है जहां से तेंजुला, मटीला व सेलसाला तिब्बती क्षेत्र है।

इस सीमा पर तनाव कम है लेकिन इतना जरूर है कि कभी चीनी सैनिक तो कभी भारतीय सैनिक क दूसरे के क्षेत्र में आते जाते रहते हैं। सीमा संबंधी मामलों के स्थानीय जानकरों का कहना है कि जुलाई या अगस्त माह में साल में एक बार चीनी सैनिक तेजुंला पार कर होतीगाढ नदी तक आते हैं, तब भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के जवान उन्हें चीनी भाषा में लिखे बैनर दिखा कर यह बताते हैं कि यह भारतीय क्षेत्र है। उन्हें वापस जाना होगा। इस प्रकार की छुटपुट बातों के अलावा सेंट्रल सेक्टर में अभी तक कोई बडी घटना सामने नहीं आई है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सीमा विवाद के हल के लिए शिमला में सन् 1914 में तिब्बत तथा चीनी नेताओं के साथ हुई। सभा में यह तय किया गया था कि जिस ऊंचाई से पानी का बहाव जिस ओर है, उसे ही सीमा माना जाय। यदि पानी भारत की ओर आता है तो वह भाग भारत का हिस्सा माना जाय और यदि वह तिब्बत की ओर बहता है तो तिब्बत का। लेकिन इसमें विसंगतियां हैं। जैसे पहाडी ढलान व कई नदियां हैं जिनका उद्गम स्थल तिब्बत है व बहाव भारत में है। अब यदि इनका उद्गम तथा बहाव को सीमा माना जाय तो तिब्बत का एक बढा भाग भारत का हिस्सा बन जायेगा। इसलिए भारत व वीन के बीच यह तय हुआ कि संयुक्त रूप से इस सीमा का सर्वे किया जायेगा। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं लेकिन किसी भी क्षेत्र मे सीमा का निर्धरण नहीं हुआ है। हालांकि इस बात पर जोर दिया जाता रहा कि सरहद पर यथा स्थिति बनाई जाय।

तिब्बत के इस भू भाग पर कभी रूस की भी नजरें रहीं। उसका एक प्रतिनिधि दोर्सियन कुछ समय के लिए ल्हासा में रहने लगा था। यह ब्रगेजी साम्राज्य के लिए चिंता का विषय बन गया था। तिब्बत मामले के जानकार वरिष्ठ पत्रकार हरिश्चन्द्र चंदोला के अनुसार अंग्रेज लेखक फिलिप मेसन दो बार गढवाल के कमिश्नर नियुक्त हुए। सन् 1932 व 1944 में उनको आदेश आया था कि वे गढवाल तिब्बत सरहद पर जा कर पता लगायें कि क्या रूसी लोगों की ल्हासा तक आवाजाही हो रही है या नहीं। चंदोला बताते है कि उसके बाद कमिश्नर ने तब तय किया था कि वो भारत के अंतिम गांव माणा में कैप लगायेंगे और वहां से भारत तिब्बत को विभाजित करने वाले माणा धूरा पास। इस यात्रा का मुख्य उददेश्य स्थानीय लागों से यह पता लगाना था कि क्या रूसी लोगों का ल्हासा आना जाना है या नहीं। चंदाला बताते हैं कि उसके बाद से ही अधिकारी साल में एक बार सीमा पर निरीक्षण के लिए जाते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

उत्तराखंड राजस्व विभाग कि अधिकारियों के चीनी सैनिको की घुसपैठ के खुलासे के बाद एक बार फिर सीमा की सुरक्षा का सवाल खडा हो गया है। बेहतर तो यह होता कि राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप लगाने के वजाय इस संवेदनशील मुददे पर सकारात्मक कदम उठाते। यदि उत्तराखंड राज्य सरकार के अधिकारी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि सीमा उल्लंघन हुआ है तो इस पर केन्द्र सरकार को प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है। 

लेखक बृजेश सती स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं। उनसे संपर्क 9412032437, 8006505818 और [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement