इलाहाबाद। केस नं01- जिला सोनभद्र। डीएम पंधारी यादव के कार्यकाल में 250 करोड़ रूपए मनरेगा में खर्च। जांच में भारी भरकम गड़बड़ियों का जखीरा मिला। कई जगह चेकडैम कागज पर ही बने पाए गए।
केस नं02- जिला बलरामपुर। डीएम एसएन दुबे के कार्यकाल में सात लाख रूपए का फर्स्ट एड किट, डेढ़ लाख रूपए के कैलेंडर, छह लाख की लागत से पानी की टंकी का निर्माण, अस्सी लाख रूपए में टेंट की खरीद।
केस नं03- जिला गोंडा में मनरेगा का कोई कार्य तो नहीं हुआ पर दो करोड़ रूपए के खर्च फावड़े की खरीद में जरूर दिखा दिए गए।
यह तो महज कुछ बानगी है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गांरटी योजना यानि मनरेगा हकीकत में भले ही यह ग्रामीणों को रोजगार की पूरी गांरटी न दे पा रही हो पर कुछ मुट्ठीभर भ्रष्टाचारी अफसर, नेता और दलालों की तिजोरी भरने की सौ फीसदी पक्की गांरटी देने वाली योजना साबित हो रही है।
जानकार लोगों ने इसे कामधेनु योजना का नाम दे डाला है। मनरेगा विभाग से जुड़े सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि पूरे यूपी में कहीं भी कारगर तरीके से जांच करा लीजिए, मनरेगा में भारी भरकम घोटाले की पक्की गांरटी है।
हाईकोर्ट हुई सख्त, हर जिले की जांच
भ्रष्टाचार और लूटखसोट की जननी बनी मनरेगा की दुर्दशा देख आखिरकार हाईकोर्ट को दखल देना पड़ा। सरकारी मशीनरी का ढुलमुल रवैया देख हाईकोर्ट ने यूपी के हर जिले में मनरेगा की जांच का आदेश दे दिया। जांच का फरमान होते ही शासन-प्रशासन से लेकर बिचैलियों के बीच हड़कंप मच गया है।
प्रदेश के 75 जिले में 50 हजार करोड़ रूपए घोटाले की भेंट चढ़ गए हैं। इतनी भारी भरकम रकम को चट कर जाने वाले और कोई नहीं बल्कि बिचैलिए, बेईमान अफसर और नेता ही हैं। बगैर इनकी मिलीभगत के घोटाला करना दूर इसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। जांच एजेंसी का मानना है कि जांच का फंदा सैकड़ों ग्रामप्रधान, ग्रामविकास अधिकारी, बीडीओ से लेकर बड़ी तादाद में पीसीएस और आइएएस अफसरों की गर्दन तक पहुंचने वाला है।
हाईकोर्ट का सख्त रवैया देख सत्ता की आड़ में दलाली चमकाने वाले कई नेताओं के भी पसीने छूट रहे हैं। सात जिलों में हाईकोर्ट ने वर्ष 2011 में ही सीबीआई जांच का आदेश दिया था। महोबा, सोनभद्र, कुशीनगर, गोंडा, संतकबीर नगर, मीरजापुर, बलरामपुर में जांच हुई तो कई चैंकाने वाले तथ्य सामने आए। साठ फीसदी से ज्यादा सामानों की खरीद सिर्फ कागजों पर दिखाकर रकम हजम कर ली गयी। कई जगह फर्जी भुगतान के बिल पकड़ में आए तो कई जगह बाजार से कई गुने महंगे दर पर सामान खरीद के मामले सामने आए।
सीएजी की रिपोर्ट में हजारों करोड़ रूपए के घोटाले की आशंका जाहिर की गई है। डीएम, डीपीआरओ, सीडीओ, डीडीओ, बीडीओ, सेक्रेटरी से लेकर ग्रामप्रधान तक बाकायदा इसमें शामिल हैं। सोनभद्र जिले को ही लें। यहां के डीएम पंधारी यादव बनाए गए। उनके कार्यकाल में मनरेगा लूट खसोट का पर्याय बन गई। कई करोड़ रूपए पानी की तरह बहाने के बाद भी दशा की हालत जस की तस बनी रही।
जांच एजेंसी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, यहां एक ही तालाब की तीन बार खोदाई कागज पर दिखाकर फर्जीवाड़ा किया गया। सिंचाई के लिए कागज पर ही फर्जी डैम बना दिए गए। बलरामपुर जिले में मनरेगा में मची लूट किसी को भी हतप्रभ कर देने वाली है। यहां सात लाख रूपए फर्स्ट एड किट में और आठ लाख रूपए का खर्च केवल टेंट की खरीद में दिखाया गया है। कामधेनु की शक्ल अख्तियार कर चुकी मनरेगा में लूट खसोट किस तरीके से रोकी जाएगी, लुटेरों को सजा मिल भी पाएगी कि नहीं, यह यक्ष प्रश्न बन चुका है।
इलाहाबाद से वरिष्ठ पत्रकार शिवाशंकर पांडेय की रिपोर्ट। लेखक दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान आदि अखबारों में कई साल कार्य कर चुके हैं। संपर्कः मो-9565694757, ईमेलः [email protected]