अक्सर सरकारी दफ्तरों से बंदरों को भगाने के लिए लंगूरों का इस्तेमाल होता है और अगर कभी लंगूर बढ़ गए तो उन्हें भगाने के लिए शायद तेंदुआ लाया जाए। और फिर उन्हें मारा जाएगा। सवाल यह है कि यह पृथ्वी क्या सिर्फ मनुष्यों के लिए है? तो फिर क्यों न पूरी पृथ्वी को मनुष्येतर जीव-जंतुओं से खाली करा ली जाए? मगर कभी ठंडे दिमाग से सोचिए तो लगता है कि मनुष्य यह पूरी सृष्टि सिर्फ अपने लिए बनाए रखना चाहता है। यहां न चूहे बचेंगे न बिल्ली और न कुत्ता। सिर्फ और सिर्फ मनुष्य।
पर मनुष्य ने अपने जीवन में इन जीव जंतुओं के आचरण को उतार लिया है। कभी धर्म का चोला पहनकर तो कभी अपने ही भाइयों को शोषण करने के नाम पर। आज कौन मनुष्य है जो मनुष्य की जिंदगी जी रहा है? कुत्ता, बिल्ली, बंदर से लेकर तिलचट्टे और छिपकली सब के स्वभाव वह अपने में छिपाए है। इसीलिए वह अपने अलावा किसी और को बर्दाश्त नहीं कर पाता। जमीन मेरी, धन मेरा और जोरू मेरी। बस यही है उसकी महत्वाकांक्षा। वह किसी को कुछ बाटना नहीं चाहता।
पर कभी सोचिए कि इस पृथ्वी पर कुत्तों का शासन होता या बंदरों का, भालुओं का अथवा तिलचट्टों का तो शायद उनका खुदा भी उनके जैसा होता और मनुष्य वहां उसी तरह मारे जाते जिस तरह आज ये जीव जंतु मारे जा रहे हैं। पर तब वे धर्म के नाम पर नहीं विश्व शांति के नाम पर नहीं बल्कि इसलिए मारे जाते क्योंकि वे अन्य जीव-जंतुओं के भोजन होते। मनुष्य में अलग क्या चीज है जो उसे अन्य जीवों से अलग करती है और वह है दो पैरों पर चलने की उनकी कला। दो पैरों पर चलने के कारण उनके दो पैर आजाद हो गए और इस आजादी ने उन्हें कुछ नया करने का अन्य जीव जंतुओं से भिन्न दिखने का मौका दिया। पर जिस तरह धर्म मनुष्य को अतीतजीवी बना रहा है, कोई शक नहीं कि एक दिन फिर वही अपनी पुरानी जीवन शैली पर लौट आएगा। इसलिए अगर वाकई कुछ करने की कूवत है तुमको तो अतीतजीवी मत बनो। धर्म को छोड़ो। धर्म जीवन को नष्ट करता है। सोचो ये धर्म और नैतिकता की झूठी बातें शासन करने वालों का हथियार ही तो हैं।
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल के फेसबुक वॉल से.