आज के अखबारों में एक खबर बहुत प्रमुखता से उदारता के साथ छपी है। इसके मुताबिक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था से आगे निकल जाएगी।
नवभारत टाइम्स ने लिखा है, सरदार पटेल जैसे महापुरुषों ने सहकारिता के बीज को बोया जो आज अर्थव्यवस्था के तीसरे मॉडल का नमूना बनके उभरा है, जहां न सरकार का कब्जा होगा न ही धन्ना सेठों का। सहकारिता से किसानों और नागरिकों की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और हर कोई उसका हिस्सेदार होगा।’ राजस्थान पत्रिका ने लिखा है, आंकड़ों से कांग्रेस सरकारों पर साधा निशाना। प्रधानमंत्री रविवार को आणंद जिले में अमूल के आधुनिक चॉकलेट प्लांट, एलएनजी टर्मिनल, संग्रहालय समेत कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया।
आज ही अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में एक खबर है, आईआईटी मुंबई की फैकल्टी को वेतन नहीं मेल मिला। इस खबर के मुताबिक धन की कमी के कारण सितंबर का वेतन समय पर नहीं दिया जा सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से कल शाम तक धन आने की उम्मीद थी पर नहीं आया। हम कल तक पैसे आने की उम्मीद करते हैं …. असुविधा के लिए खेद है। अखबार के मुताबिक चार वरिष्ठ पैकल्टी सदस्यों ने कहा कि दो दशक से ज्यादा के कैरियर में ऐसी स्थिति का समाना पहले कभी नहीं किया है। वेतन हमेशा महीने के आखिरी दिन मिल जाता रहा है।
दूसरी ओर, मंत्रालय के अधिकारियों ने इसके लिए आईआईटी बांबे के अधिकारियों पर आरोप लगाया है और कहा है कि वे समय पर धन का उपयोग करने का प्रमाणपत्र जमा कराने में नाकाम रहे। अखबार ने उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रमण्यम के हवाले से लिखा है कि बजट की कोई कमी नहीं है। मुद्दा यह है कि आईआईटी बांबे ने धन उपयोग करने के प्रमाणपत्र “गए हफ्ते ही” जमा कराए हैं। उन्होंने कहा कि 123 करोड़ रुपए शनिवार को जारी किए गए हैं और संस्थान को सोमवार को मिल जाएंगे। संस्थान के शिक्षक ने कहा कि सॉफ्टवेयर की समस्या के चलते उपयोग प्रमाणपत्र भेजने में देर हुई। आईआईटी बांबे के डायरेक्टर ने इसपर टिप्पणी करने से मना कर दिया।
टेलीग्राफ में ही आज धन की कमी से संबंधित एक और खबर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनवरी में आसियान देशों के छात्रों के लिए 1,000 फेलोशिप की घोषणा की थी ताकि वे आईआईटी में अनुसंधान कर सकें। अखबार ने लिखा है कि कई अधिकारियों ने इस बारे में जानकारी दी जबकि मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्च शिक्षा सचिव आर सुब्रमण्यम ने कहा कि यह योजना अभी तैयार की जानी है। हम व्यय विभाग (एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट) समेत संबंधित विभागों से मंजूरी लेंगे उसके बाद योजना तैयार करेंगे। सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट ने इस साल के शुरू में इस योजना के लिए मंजूरी नहीं दी। यह 300 करोड़ रुपए के खर्च का मामला है।
इस संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फरवरी में ही (घोषणा जनवरी में हुई थी) एक नोट एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट को भेजा था पर विभाग ने धन की कमी का कारण बताया और सलाह दी कि इसे एचआरडी मंत्रालय के प्रस्तावित स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम में शामिल कर दिया जाए। यह एक अलग योजना है जो मुख्य रूप से विदेशों से स्नातक की पढ़ाई करने वाले छात्रों को आकर्षित करने के लिए है। मंत्रालय ने इसकी शुरुआत अप्रैल में की थी। एचआरडी मंत्रालय इस सुझाव पर विचार कर चुका है और सुझाव को स्वीकार करना मुश्किल पाया है। मार्च में उच्च शिक्षा विभाग ने एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट को फिर लिखा कि दोनों कार्यक्रम अलग हैं। विबाग को अभी इसका जवाब नहीं मिला है। स्थिति यह है कि एक्सपेंडिचर डिपार्टमेंट स्वीकृति दे तो यह योजना जल्दी से जल्दी अगले साल ही लागू हो सकती है।
पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क anuvaad@hotmail.com