यही वह जहाज है जो पिछले दिनों यूक्रेन विद्रोहियो के मिसाइल अटैक से बच गया था। यही जहाज मतलब। जी, जिस बोइंग में अभी आप अमृतसर जा रहे हैं दरअसल दिल्ली बरमिंघम रुट का ही यह बोइंग है। और पिछले महीने मलेशियाई विमान से यह सिर्फ २४ किलोमीटर पीछे था। सिर्फ २४ किलोमीटर। हां, आप यह भी कह सकते है सिर्फ २१० सेकेंड पीछे। ओह, चार मिनट से भी कम। जी। तो आप लोगों को जब यह पता चला होगा तब तो कलेजा मुंह को आ गया होगा। आप कुछ भी सोच सकते हैं। उसके बाद से क्रू मेबर को तो लगता होगा कि जिन्दगी की हर उड़ान कहीं आखरी उड़ान ना हो। आप सही कह रहे हैं। लेकिन एयर इंडिया की नौकरी तो यूं भी हर क्षण जान पर भारी पड़ती है। क्यों। कुछ नहीं बस ऐसे ही। आप सफर का मजा लीजिये। कभी बरमिंघम से दिल्ली इस विमान से लौटे हैं। जी, मै कभी गया नहीं हूं।
कभी मौका लगे तो इस बोइंग से जरुर लौटियेगा। क्यों। क्योंकि जब यह बोइंग ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान होते भारत की सीमा में घुसने को आता है तो रात का आखिरी पहर होता है। और लगातार अंधेरे में सफर करते वक्त झटके में जैसे ही रोशनी की कतार नजर आती है वैसे ही हर कोई समझ जाता है कि इंडिया आ गया। इतनी रोशनी दिखायी देती हैं। आप सोच नहीं सकते। एक क्षण तो आपको लगेगा कि जमीन पर दीपावली है। और किसी ने कतार में दीये जला दिये हैं। मुंबई के नरीमन पाइंट के गोल्डन नेक्लेस से भी खूबसूरत। तब तो आप भी हर सफर के दौरान इंतजार करते होंगे। हां, देखते भी है और जो यात्री सो रहे होते हैं, उन्हें पायलट इंडिया की इस खूबसूरती को आसमान से दिखाकर अपने देश पर इठलाते भी हैं। क्योंकि भारत से पहले किसी देश की सीमा पर इतनी रोशनी नहीं चमकती। दिल्ली से अमृतसर के लिये उड़ान भरने के साथ यह दिलचस्प बात एयर होस्टेस ने बतायी। जो ठीक मेरे सामने बैठी हुई थी।
चूंकि बोइंग 787 की सीट नं 11ए इक्नामी क्लास की पहली कतार की पहली सीट थी। और सामने सीनियर एयर होस्टेस की सीट थी। तो झटके में यह बातचीत शुरु हुई। लेकिन जैसे ही मैंने यह कहा कि अब देश में सरकार बदली है। कुछ अच्छा और होगा। इंडिया की चमक दुनिया में और बढ़ेगी। वैसे ही एयर होस्टेस बोल पड़ी एयर इंडिया को भी चमका दें। तब बात होगी। क्यों, सरकार तो एयर इंडिया को अब सुधारने जा रही है। आपके नये मंत्री ने एयर इंडिया के इन्फ्रास्ट्रक्चर की तरफ ध्यान देने की बात कही भी है। जी सुना तो हमने भी है। लेकिन जिस एयर इंडिया के विमान में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सफर करते है, उस एयर इंडिया को चलाने वालों का हाल किसे पता है। खासतौर से वैसे कर्मचारी जो पे-रोल पर हैं। दशकों से एयर इंडिया में काम कर रहे हैं। उसमें हर कोई है। पायलट भी। एयर होस्टेस भी। और ग्राउंड स्टाफ भी। अभी अगस्त का महीना चल रहा है और हमे मई का वेतन अगस्त में मिला है। वह भी पैंतीस फीसदी कम।
अब मुश्किल यही है कि जो कर्मचारी पे-रोल पर है उनके लिये ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि वह नौकरी ही छोड़ दें। अब आप कल्पना कीजिये 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उस वक्त शहनवाज हुसैन नागरिक उड्डयन मंत्री थे। तब एयर इंडिया में करीब डेढ़ हजार भर्त्तिया हुईं। और उसके बाद ग्यारह साल हो चुके है लेकिन किसी को कोई प्रमोशन तो दूर की बात है जो वेतन 2003 में मुझे मिलता था आज यानी अगस्त 2014 में उससे तीस फिसदी कम वेतन मिलता है। उस वक्त तो पे-स्लीप मिल जाती थी। अब तो पे-स्लिप भी नहीं मिलती। चेक या सीधे बैंक अकाउंट में पैसा डाला दिया जाता है। कोई यह पूछ नहीं सकता कि कम वेतन क्यों है। सीनियर से पूछे तो जबाब मिलता है, एयर इंडिया छोड़ क्यों नहीं देते। क्यों कोई महंगाई भत्ता या वेतन में किसी प्रकार की कोई बढ़ोत्तरी हुई ही नहीं। कुछ भी नहीं। लेकिन सरकार तो कह रही है कि निजी एयरलाइंस से ज्यादा सुविधा एयर इंडिया के कर्मचारियों को दिया जा रहा है। हां, जो कान्ट्रैक्ट पर हैं, उन्हें जरुर अच्छा वेतन मिल रहा है।
लेकिन कल्पना किजिये मनमोहन सिंह के दौर में प्रफुल्ल पटेल ही हमारे मंत्री थे। लेकिन 2007 के बाद से उन्होंने कभी एयर इंडिया पर सफर नहीं किया। निजी एयलाइन्स के ही वह मंत्री बन गये। खुद सफर भी निजी विमान में करते और निजी विमानो के लिये हवाई अड्डों से लेकर उड़ानों में सारी सुविधा देते। असर इसी का है कि आज की तारिख में हर सौ यात्रियों में से सिर्फ पन्द्रह ही एयर इंडिया में सफर करते हैं। प्रफुल्ल पटेल ने हमारी यूनियन खत्म की। छह-छह महीने हमारी सैलरी बंद हुई। मेरे तो पति भी एयर इंडिया में ही हैं। आप कल्पना किजिये जब एयर इंडिया के पायलटों ने हड़ताल की उस वक्त मेरा बेटा पांच बरस का था। हड़ताल के वक्त सरकार ने हमारा वेतन देना बंद कर दिया। बेटे के लिये पढ़ाई तो दूर दूध और दवाई की जरुरत पड़ने पर खरीदने के लाले पड़ गये। हमने तब प्रबंधन से कहा भी कि हमें इस वक्त कहीं और काम करने की इजाजत दे दें। लेकिन प्रबंधन ने कहा इस्तीफा दे कर जाइये।
तो आप ही सोचिये काम कहीं कर नहीं सकते और जहां काम कर रहे हैं, वह वेतन नहीं दे रहा है। तो घर कैसे चलेगा। सवाल सिर्फ मेरा नहीं करीब छह हजार स्टाफ का है जो पे-रोल पर है। उनके परिवार के भीतर कभी किसी सरकार किसी मंत्री ने झांक कर देखने की कोशिश की। लेकिन एयर इंडिया तो कंगाल भी नहीं है। बकायदा हर दिन 18 हजार से ज्यादा उड़ान एयर इंडिया भर रहा है। दुनिया के 192 देशों में पहुंच चुका है। तो भी वेतन क्यों नहीं मिल रहा और अब भी 35 फीसदी कम वेतन क्यों। ना, ना पैसे की कमी नहीं है एयर इंडिया के पास। आप कह सकते है लुटने वाले बढ़ गये हैं। क्यों, आपको ऐसा क्यों लगता है। बहुत ही शालिनता से एयर होस्टेस ने एयर इंडिया की तरफ से दिये जाने वाले एयर होस्टेस बैग को कपाट खोल कर निकाला और मुझे देते हुये बोली आप बताइये इसकी क्या कीमत होगी। कोई पांच या छह सौ रुपये। ठीक कह रहे है आप। लेकिन इसकी कीमत एयर इंडिया ने अपने बजट में लगायी है साढे चार हजार रुपये।
और अब हमारी यूनीफार्म फिर बदली जा रही है। पहले साड़ी थी। उसके बाद चटक रंग आया। और अब जो पहने हुये हैं इसे फिर बदला जा रहा है। यूनिफार्म एक बार बदलने का न्यूनतम बजट सिर्फ 20 करोड़ का होता है। इसी तरह यात्रियो को पानी पिलाने के लिये एक बड़ा ग्लास लाया गया। करीब बीस लाख का बजट पास हुआ और बाद में पता चला वह ग्लास हवाई जहाज में रखने के लिये तो हवाई जहाज का डाइनिंग कपाट ही बदलना पड़ता। तो ग्लास गोदाम में चले गये। हो सकता है ऐसे बहुतेरे निर्णय हम लोगों तक नहीं पहुंच पाते हों। क्योंकि हमें तो एयर इंडिया के ड्रीम लाइनर की तरह यात्रियो के सामने सपने सरीखी यात्रा ही करानी है।
तभी पायलट की आवाज गूंज पड़ी। जहाज के दायीं तरफ स्वर्ण मंदिर के दर्शन आप कर सकते हैं। ओह सारी, बातचीत में अमृतसर आ गया। मैं अपनी ही बात कहती रही। फिर रुआंसे शब्दो में कहा, हम किसी से कह भी तो नहीं सकते। मैं खुद ही सोचने लगा लगा कि जिस ड्रीम एयरलाइनर की उड़ान से इंडिया की चमक दमक हर उड़ान के वक्त क्रू हर नये विदेशी यात्री को दिखाता होगा उसकी अपनी जिन्दगी में इतना अंधेरा। इतना दर्द। क्या मैं इस मुद्दे को उठाऊं। जहाज से उतरते वक्त नमस्ते की मुद्दा में खड़ी एयर होस्टेस से मैंने पूछ ही लिया। कुछ हो जाये तो अच्छा ही है। लेकिन इशारो में कहा कि मेरा नाम कहीं ना आये। यानी जो नाम छाती पर किसी तमगे की तरह एयर इंडिया के बैज के साथ हर किसी यात्री के लिये लगा है वह नाम अपने ही दर्द अपनी ही त्रासदी को कहने से बचना भी चाहता है।
इंडिया की रोशनी दिखाने वाले बरमिंघम के इस ड्रीमलाइनर से निकलते वक्त हबीब जालिब याद आ गये जो जियाउल हक के दौर में पाकिस्तान में ही यह कहने से नहीं चूके कि, अंधेरे को यारों जीया कैसे करें…।
जाने माने पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लॉग से साभार।
shashikant
August 30, 2014 at 12:35 am
i like this it true 100%.