वेद रत्न शुक्ला-
चुनावी प्रक्रिया शुरू होते ही खुल गए मोर्चे… गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेसक्लब के चुनाव की तारीख़ अभी घोषित तो नहीं हुई है, लेकिन यह जरूर है कि कुल जमा ‘साढ़े तीन साल’ बाद चुनाव की प्रक्रिया शुरुआती चरण में आ गई है। अब ऐसे में पत्रकार ‘नेताओं’ के कई वाट्सऐप वह अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर धुंआधार प्रचार और एक दूसरे की मौज लेनी शुरू हो गई है।
गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ जब प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो इस जिले की एक लंबे समय के बाद स्वाभाविक रूप से महत्ता बढ़ गई। ऐसे में यहां का प्रेसक्लब भी महत्वपूर्ण हो गया। यह बात अलग है कि खबर लिखता/कवर करता कोई अन्य है और अखबार या चैनल का प्रबंधन तय करता है कि क्या छपेगा और कितना छपेगा। फिर भी पदनाम का महत्व तो होता ही है।
अब फिर ख़बर की तरफ लौटते हैं। आदित्यनाथ जब मुख्यमंत्री बने तो यहां के प्रेस क्लब अध्यक्ष मार्कण्डेय मणि त्रिपाठी थे। उस समय भी लगभग तीन साल से चुनाव नहीं हुए थे। मामला सीएम तक पहुंचा। कहते हैं कि उनके ही निर्देश पर डीएम ने हस्तक्षेप कर चुनाव कराया। तब मार्कण्डेय मणि फिर चुनाव मैदान में उतरे। पूर्व में स्थानीय प्रेसक्लब के मंत्री रहे ओंकारधर द्विवेदी और उपाध्यक्ष कुंदन उपाध्याय तथा तगड़े क्राइम रिपोर्टर कमलेश सिंह भी अध्यक्षी का चुनाव लड़े। मार्कण्डेय फिर विजयी हुए और ओंकार तथा कमलेश को लगभग बराबर वोट मिले। कुंदन पीछे रहे। इस तरह ओंकार और कमलेश रनरअप रहे। मनोज यादव मंत्री और अतुल मुरारी तिवारी उपाध्यक्ष चुने गए थे। सीएम योगी ने कार्यकारिणी को शपथ दिलाई। इससे इस कमिटी का रोब-दुआब लाज़िमी था।
अब जब फिर लंबे समय तक चुनाव नहीं हुआ तो पत्रकार ‘नेताओं’ ने थोड़ी सक्रियता दिखाई और मामला प्रशासन तक पहुंचा कि चुनाव करा दिया जाए। वरिष्ठ पत्रकार गजेन्द्र त्रिपाठी ने प्रेसक्लब गोरखपुर की कार्यकारिणी, जो अब कालातीत हो चुकी है, पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने वित्तीय अनियमितता और संस्था के बायलाज के अनुसार समय पर चुनाव न कराने, आमसभा की कभी बैठक न बुलाने, सदस्यों का नवीनीकरण वगैरह न होने की वजह से कार्यकारिणी के औचित्य पर ही सवाल उठाए हैं। इस शिकायत का संज्ञान लेते हुए सक्षम अधिकारी ने गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेसक्लब के अध्यक्ष और मंत्री से दो हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है। इस आशय की चिट्ठी पढ़ें-