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हरियाणा चुनाव में मीडिया की साख दांव पर, हर बड़ा नेता है एक न्यूज़ चैनल का मालिक

नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने आने वाले हरियाणा विधानसभा के चुनावों में पेड न्यूज पर निगरानी रखने के लिए तो निर्देश कर दिए हैं, लेकिन हरियाणा का आम आदमी जिसका किसी भी राजनैतिक पार्टी अथवा किसी नेता से कोई सम्बन्ध नहीं है, ये सवाल पूछ रहा है कि क्या चुनाव आयोग हरियाणा के उन नेताओं पर भी कोई रोक लगाएगा, जो अपने अखबारों तथा टीवी चैनल का उपयोग अपनी राजनीति चमकाने तथा विरोधियों को ठिकाने लगाने में कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तो प्रमुख टीवी चैनलों पर ज्यातर रिलायंस का कब्जा है। हरियाणा में भी कांग्रेस, भाजपा, इनेलो सहित कई दलों के नेताओं के अपने अखबार तथा टीवी चैनल हैं।

<p>नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने आने वाले हरियाणा विधानसभा के चुनावों में पेड न्यूज पर निगरानी रखने के लिए तो निर्देश कर दिए हैं, लेकिन हरियाणा का आम आदमी जिसका किसी भी राजनैतिक पार्टी अथवा किसी नेता से कोई सम्बन्ध नहीं है, ये सवाल पूछ रहा है कि क्या चुनाव आयोग हरियाणा के उन नेताओं पर भी कोई रोक लगाएगा, जो अपने अखबारों तथा टीवी चैनल का उपयोग अपनी राजनीति चमकाने तथा विरोधियों को ठिकाने लगाने में कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तो प्रमुख टीवी चैनलों पर ज्यातर रिलायंस का कब्जा है। हरियाणा में भी कांग्रेस, भाजपा, इनेलो सहित कई दलों के नेताओं के अपने अखबार तथा टीवी चैनल हैं।</p>

नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने आने वाले हरियाणा विधानसभा के चुनावों में पेड न्यूज पर निगरानी रखने के लिए तो निर्देश कर दिए हैं, लेकिन हरियाणा का आम आदमी जिसका किसी भी राजनैतिक पार्टी अथवा किसी नेता से कोई सम्बन्ध नहीं है, ये सवाल पूछ रहा है कि क्या चुनाव आयोग हरियाणा के उन नेताओं पर भी कोई रोक लगाएगा, जो अपने अखबारों तथा टीवी चैनल का उपयोग अपनी राजनीति चमकाने तथा विरोधियों को ठिकाने लगाने में कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तो प्रमुख टीवी चैनलों पर ज्यातर रिलायंस का कब्जा है। हरियाणा में भी कांग्रेस, भाजपा, इनेलो सहित कई दलों के नेताओं के अपने अखबार तथा टीवी चैनल हैं।

राजनीतिक दखल के कारण कई नेताओं के अखबार लम्बे समय तक नहीं चलते। पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा चलाया गया अंगे्रजी अखबार नेशनल हैराल्ड इसका उदाहरण है। पिछले कई सालों से अखबार तो करीब-करीब छप नहीं रहा, बल्कि अदालत के चक्कर में भी फंसा हुआ है। नेताओं द्वारा अपने अखबारों का इस्तेमाल अक्सर पार्टी में ही अपने विद्रोहियों को ठिकाने लगाने के लिए भी किया जा रहा है। करनाल से बीजेपी सांसद बने अश्विनी चोपड़ा के अखबार ने इन दिनों गुड़गांव से उन्हीं की पार्टी के सांसद राव इंद्रजीत के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। राव इंन्द्रजीत के समर्थकों ने अखबार व चोपड़ा के पुतले भी जलाए हैं।

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इधर अश्विनी चोपड़ा तर्क दे रहे हैं कि वह राजनीति में हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उनका अखबार खबरें छापनी बंद कर दे। उन्होंने यह भी कहा है कि वह राव के खिलाफ लगातार खबरें लगाते ही रहेंगे। काबिलेगौर है कि अश्विनी चोपड़ा तथा राव इंद्रजीत दोनों ही हरियाणा से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। कैप्टन अभिमन्यु के परिवार का भी अपना दैनिक अखबार है। पूर्व मंत्री व हरियाणा जन चेतना पार्टी के सुप्रीमो पंडित विनोद शर्मा का भी अपना अखबार तथा टीवी चैनल भी है। हरियाणा के पूर्व गृह राज्य मंत्री एवं हरियाणा लोक हित पार्टी के सुप्रीमो गोपाल कांडा का भी अपना एक न्यूज चैनल चल रहा है।

उद्योगपति एंव समस्त भारतीय पार्टी प्रमुख सुदेश अग्रवाल और पूर्व विधानसभा स्पीकर रघुबीर सिंह कादियान का भी अपना न्यूज चैनल है। नवीन जिंदल का भी अपना एक न्यूज चैनल है, तो इस बार हिसार से उनकी माता सावित्री जिंदल के खिलाफ भाजपा टिकट पर चुनाव मैदान में उतने वाले सुभाष गोयंका का भी अपना नेशनल न्यूज चैनल लम्बे समय से चल रहा है। नेताओं द्वारा चलाए जा रहे चैनलों पर अक्सर अपने मालिक का किसी न किसी तरीके से गुणगान किया जाता है। नेताओं के अखबार तथा टीवी चैनल होने से पूरे मीडिया की साख पर सवालिया निशान लग गया है।

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पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो सुप्रीमो चौधरी ओम प्रकाश चौटाला का भी अपना अखबार लगभग दो दशक से भी अधिक समय से चल रहा है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल का तो चंडीगढ़ से छपने वाले एक अंग्रेजी अखबार से छत्तीस का आंकड़ा रहा। अपनी सरकार के टाइम में हरियाणा के दफ्तरों में इस अखबार की एंट्री पर उन्होंने बैन लगा दिया था। आम आदमी को इस बात का अंदेशा है कि आगामी विधानसभा चुनावों में नेताओं द्वारा चलाए रहे अखबार व टीवी चैनलों पर अपने राजनीतिक फायदे के लिए अपने हिसाब से चुनावी सर्वे भी प्रकाशित किए व दिखाये जा सकते हैं।

इसलिए अब गेंद चुनाव आयोग के पाले में है। लोगों को चुनाव आयोग से उम्मीद है कि नेताओं द्वारा अपने अखबारों तथा न्यूज चैनलों के माध्यम से मतदाताओं को प्रभावित न कर सकें, इसके लिए चुनाव आयोग को इन पर कड़ी नजर रखनी होगी।

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पवन कुमार बंसल।

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