60 शब्दों में न्यूज देने वाली ऐप इनशॉर्ट्स इन दिनों नकारात्मक वजहों से चर्चा में है। बेहतरीन वर्क कल्चर के चलते सुर्खियों में आई कंपनी में अब कामकाज का माहौल खराब होने लगा है। कंपनी ने पिछले हफ्ते आईआईएमसी के इस सेशन के 5 उभरते पत्रकारों को मामूली-सी बात के चलते बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इन युवा पत्रकारों को संस्थान से जुड़े एक हफ्ता भी नहीं हुआ था। उनके साथ इतना सख्त सुलूक करना उनका मनोबल पूरी तरह झकझोर देने जैसा है।
छात्रों की मन:स्थिति और उनके भविष्य को देखते हुए ‘भड़ास4मीडिया’ ने उनके नामों का खुलासा नहीं करने का फैसला किया है लेकिन कंपनी का यह क्रूर रवैया दर्शाता है कि अब वहां जॉब सिक्योरिटी नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। वहां, मुफ्त में खाने की सुविधा देकर कंपनी बड़ा एहसान जताती है और उसके इस घमंड का अंदाजा वैकेंसी के लिए निकाले गए विज्ञापनों में भी देखा जा सकता है।
इनशॉर्ट्स के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि कंपनी में जॉब सिक्योरिटी पहले भी नहीं रही है और वर्क कल्चर काफी खराब हो चुका है। कंपनी हर बात में ‘ब्रीच ऑफ ट्रस्ट’ का हवाला देते हुए बाहर कर देने की बात करती है। इसी के तहत हाल ही में बिना कोई कारण बताए मैनेजिंग एडिटर सहित 3 पत्रकारों को कंपनी से जाने के लिए कह दिया गया। उन्होंने कहा, ‘मेरी बात उन पत्रकारों से हुई है और वे कंपनी के फैसले के खिलाफ कोर्ट में अर्जी दाखिल करने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। साथ ही, वे तमाम इन्वेस्टर्स को भी मेल के जरिए कंपनी के इस रवैये से अवगत कराने की कोशिश करेंगे।’
जाहिर है, इससे न सिर्फ कंपनी की छवि को खासा नुकसान पहुंच सकता है बल्कि भविष्य में मिलने वाले निवेश भी प्रभावित हो सकते हैं।
इनशॉर्ट्स के साथ काम कर चुके एक अन्य पत्रकार ने कहा कि पिछले साल अप्रैल के बाद हालात बिगड़ने लगे। एक रात 2-3 बजे के लगभग मेल के जरिए एक महिला कर्मचारी को ग्रुप एडिटर बनाने की सूचना दी गई। वहां धीरे धीरे वर्क कल्चर खराब होता चला गया। कंपनी के अंदर के माहौल को लेकर कई बार लोगों ने सवाल उठाए लेकिन कंपनी के सीईओ और को-फाउंडर अजहर इकबाल ने किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।
इनशॉर्ट्स के एक अन्य पूर्व पत्रकार ने कहा कि पद संभालने के चंद दिनों बाद से ही ग्रुप एडिटर ने पुराने व भरोसेमंद कर्मचारियों को बेवजह परेशान करना शुरू कर दिया। इसकी शिकायत कंपनी के अन्य को-फाउंडर से भी की गई लेकिन उनके रवैये से साफ था कि अब कंपनी के किसी फैसले में उनकी कोई भूमिका नहीं रह गई थी और वे सिर्फ नाम के लिए ही को-फाउंडर रह गए थे। इन्हीं सब वजहों से कोर टीम के सद्स्यों के इस्तीफे का दौर शुरू हुआ और एक-एक करके करीब सभी पुराने सदस्य कंपनी छोड़कर चले गए।
फिलहाल कंपनी में काम करे रहे लोगों की हालत एक जेल की तरह हो गई है। वहां ऊंचे पदों पर काम कर रहे कर्मचारी भी कहीं और निकलने की सोच रहे हैं लेकिन इन मामलों को लेकर काफी गोपनीयता बरत रहे हैं। उन्हें लगता है कि कंपनी को भनक भी लगने पर कंपनी उन्हें ‘ब्रीच ऑफ ट्रस्ट’ का हवाला दे सकती है।
कंपनी के सीईओ और ग्रुप एडिटर को यह पता चल जाए कि कंपनी का कोई कर्मचारी किसी दूसरे ऑफिस के किसी कर्मचारी से मिला है, तो भी उसकी नौकरी खतरे में आ सकती है। कंपनी में फैसले लेने के लिए कोई नियम-कानून नहीं हैं और वहां मनमाने फैसले लिए जाते हैं। कंपनी के सारे फैसले सीईओ व ग्रुप-एडिटर के मूड पर निर्भर करता है।
अब इनशॉर्ट्स में काम करने का एकमात्र पैमाना ग्रुप एडिटर की हां में हां मिलाना रह गया है और कंपनी में किसी का भविष्य इस बात पर निर्भर है कि आप ग्रुप-एडिटर और सीईओ की बात में किस हद तक हां में हां मिलाते हैं। उनसे असहमति या उनकी किसी भी बात को नजरअंदाज करने का परिणाम बेहद खराब हो सकता है। यही नहीं, उनकी जासूसी टीम आपके सोशल मीडिय पर भी नजर रखती है। अगर आपने किसी पूर्व कर्मचारी का पोस्ट लाइक कर दिया, तो इस पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं। सीनियर से सीनियर पद पर काम करे रहे पत्रकार भी अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं और सिर्फ नौकरी के लिए उनकी हर बात पर अपनी सहमति दर्ज कराते हैं।