झारखण्ड के ब्यूरोक्रेट्स सिस्टम को अपनी मनमर्जी से चला रहे हैं। मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती से लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक कई बार इसका खुलासा कर चुके हैं लेकिन इस पर लगाम लगाने की कूवत किसी में नहीं है। झारखण्ड के 11 जिलों के उपायुक्तों ने केंद्र सरकार की योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही बरती है। ऐसा खुद मुख्य सचिव ने खुलासा किया है। लेकिन उन पर कार्यवाई का अधिकार मुख्य सचिव को नहीं दिया गया है क्योंकि वे प्रभारी मुख्य सचिव हैं।
झारखण्ड में लूट का बाजार इस कदर गरम है कि जिसे देखो वह नियमों को ताक पर रखकर बहती गंगा में डुबकी मार रहा है। मैं बात कर रहा हूँ झारखण्ड के जनसंपर्क एवं सूचना विभाग की। निदेशक पद पर जूनियर पदाधिकारी अवधेश पाण्डेय की नियुक्ति वर्तमान केंद्रीय सरकार में कार्यरत सचिव आरएस शर्मा की मेहरबानी से की गयी है। उनसे सीनियर पदाधिकारी प्रेम कुमार जो की दलित समुदाय से आते हैं उनकी अनदेखी करते हुए उन्हें अधिकार से वंचित रखने का कार्य किया गया। आरएस शर्मा ने मुख्य सचिव रहते हुए कार्मिक विभाग में अपने प्रभाव का दुरूपयोग किया और नियम विरुद्ध तरीके से पदोन्नति दिलवाकर अवधेश पाण्डेय को निदेशक की कुर्सी पर बैठा दिया।
इतना ही नहीं अवधेश पाण्डेय द्वारा अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए रिटायर्ड अधिकारी शेयमानंद झा उर्फ़ बिंदु झा को पुनः जनसंपर्क विभाग में एडहॉक बेसिस पर लाया गया। फर्ज़ी समाचार पत्रों को करोड़ों रूपए के विज्ञापन देने के इस खेल में दोनों पदाधिकारी पूर्व में भी शामिल रहे हैं। इनके विरुद्ध वर्ष 2009 में मैंने जांच के लिए निगरानी विभाग को पत्र लिखा था। परन्तु पूर्व मुख्यमंत्री की कृपा से यह अब तक बचे हुए हैं। अब इनके विरुद्ध झारखण्ड उच्च न्यायलय में समाजिक संस्था भारतीय एकता मंच द्वारा जनहित याचिका दायर की जाएगी। उर्दू अखबारों को करोड़ों का विज्ञापन देकर ऐसे भ्रष्ट पदाधिकारी निजी लाभ लेते रहे थे।
शाहनवाज़ हसन