विष्णु नागर-
विधानसभा चुनाव में तेलंगाना को छोड़कर कांग्रेस के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है।मगर कांग्रेस की हार किस हद तक किन कारणों से हुई,कितने वोटों से कहां हुई,खुद उसके इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के कारण कितनी सीटों पर हुई,यह विस्तृत परिणाम सामने आने पर ही पता चलेगा।
दो बातें फिर भी आशाजनक हैं। परिणाम बताते हैं कि मध्यप्रदेश को छोड़कर कांग्रेस का बुरी तरह सफाया कहीं नहीं हुआ है। कमलनाथ जीतते भी तो वह भी कांग्रेसमार्का भाजपाई ही थे।उनके पास कोई दृष्टि नहीं है।वह जनता के आदमी कभी नहीं रहे।फिर कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का नेतृत्व बुढ़ा चुका है।जमीनी नेता कोई दिखता नहीं।
कमलनाथ जीतते तो भी राज भाजपाई शैली में चलता।वह भी भाजपाइयों की तरह दिन- रात भजन करते। उनकी चतुराई कांग्रेस को खा गई। उन्होंने कर्नाटक की जीत से कुछ नहीं सीखा और सीखा तो उल्टा ही सीखा। अब कांग्रेस को अंतिम रूप से भाजपाई रास्ता छोड़ देना चाहिए। चुनाव कुछ भी इंगित करते दिख रहे हों, इनके हिंदुत्व से घबराना नहीं चाहिए।दोनों तरफ से हिंदुत्व पनपेगा तो देश भविष्य की और नहीं बढ़ेगा, झूठे अतीत के राग गाएगा। मातम मनाएगा।
अन्य राज्यों में कांग्रेस अच्छे विकल्प के रूप में उभरी है।अभी तक के संकेतों के अनुसार राजस्थान में भाजपा को 115 तो कांग्रेस को 70 सीटें मिलती लग रही हैं। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सीटें 55 तो कांग्रेस की 32 लग रही हैं। तेलंगाना में तो भाजपा की बहुत बुरी गत बनी है।कुल सात सीटें मिलती लग रही हैं। अंतिम परिणाम में कुछ घट- बढ़ हो सकती है पर दिशा स्पष्ट हो चुकी है।
खुशी की बात यह है कि पूरे दक्षिण से भाजपा का सफाया हो चुका है। कर्नाटक में उसकी विनाशक हार के बाद तेलंगाना में भी उसे बेहद करारी हार मिली है।
क्या भारत राजनीतिक रूप से अब दो फांक है?